आज टीचर्स डे है पूरी दुनिया शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं दे रहे हैं। लेकिन आज एक दुखद खबर यह है कि एक छात्र की अस्पताल में इलाज के दौरान मौत भी हो गयी है। इस बात को बताने का आशय सिर्फ इतना है कि हम लोग क्या इतने निर्मम हो गये हैं कि किसी को भी बिना रीजन पीटने जुट जाते हे कि उसकी मौत हो जाये। संवेदनाये हमारी मर चुकी हैं कि सामने मरते हुए व्यक्ति को बचाने की हिम्मत नहीं जुटा पात है। क्या यह वही देश है जिसके लिये महात्मा गांधी ने अहिंसा का आन्देलन चलाया था और देश को अंग्रेजों के चंगुल आजाद कराया था। गांधी के सिद्धांतों और उनके बताये हिंसा के मार्ग पर लोगों ने छोड़ दिया है। हम अपने बच्चों को स्कूल व कालेजों में शिक्षा ग्रहण् करने के लिये भेजते हैं। क्या वो स्कूल कालेजों में पढ़ने जाते हैं क्या कभी हम लोग खैर खबर रखते हैं। शायद यहह वजह है कि आज बच्चे कालेजों में पढ़ाई करने नहीं बल्कि अवारगी करने जाते है। शायद अमीरजादों के माता पिता अपनी जिंदगी में इतने मशगूल रहते हैं कि उन्हें अपने बच्चों की परवाह ही नहीं रहती है।
इसका जीता जागता उदाहरण नोयडा के एमिटी यूनिवर्सिटी में देखने को मिला है। धनसंपन्न घरों की अमीरजादियों ने हाल ही में अपने ही कालेज के तीन लड़कों को सिर्फ इस बात के लिये बुरी तरह पिटवाया क्योंकि उन छात्रों ने उनसे चारपहिया वाहन किनारे करने की हिम्मत कर दी थी। यह बात उन अमीरजादियों को इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने अपने साथ के दो ढाई दर्जन साथियों को बुलवाया और उन तीन छात्रों को लाठी, डंडों और हॉकी से इतना पिटवाया कि वो गंभीर रूप से घायल हो गये। बाद में मामला बढ़ता देख कालेज प्रशासन ने तीनों लड़कियो और उनके साथियों को संस्पेंड कर दिया है। लेकिन उन तीनों लड़कों में से एक की इलाज के दौरान मौत हो गयी है। दो अन्य लड़कों की भी जिंदगी खतरे में है।
इस घटना से साफ जाहिर होता है कि आज कोई भी करे उन्हें कोई टोका टाकी पसंद नही। चाहे वो लड़का हो या लड़की। अमीर घरों के बच्चों पर लगाम कौन लगायेगा। उनके घर वाले या कालेज प्रशासन के लोग। यह एक गंभीर सवाल बनता जा रहा है।