बिहार के रहने वाले डा.राजेंद्र प्रसाद न केवल एक भारत के राजनीतिज्ञ थे बल्कि वो आजाद भारत के पहले राष्ट्रपति भी थे। उन्होंने आज के दिन 24 जनवरी 1950 को पहले भारत के राष्ट्रपति का पद भी संभाला था। उन्होंने 1950 से 1962 तक इस पद को पूरी ईमानदारी और निष्ठा से निर्वहन किया। उन्होंने महात्मा गांधी से प्रेरित हो कर देश की आजादी के संघर्ष में सक्रिय हो गये। वो इंडियन नेशनल कांग्रेस के वरिष्ठ और सक्रिय नेता थे।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। वह उस संविधान सभा के अध्यक्ष थे जिसने संविधान की रूप रेखा तैयार की। उन्होंने कुछ समय के लिए स्वतन्त्र भारत की पहली सरकार में केंद्रीय मंत्री के रूप भी में सेवा की थी। राजेन्द्र प्रसाद गांधीजी के मुख्य शिष्यों में से एक थे और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रारंभिक जीवन
डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम महादेव सहाय और माता का नाम कमलेश्वरी देवी था। राजेन्द्र प्रसाद अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। महादेव सहाय फारसी और संस्कृत भाषा के विद्वान थे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद को अपनी माँ और बड़े भाई से काफी लगाव था।
पांच वर्ष की आयु में राजेंद्र प्रसाद को उनके समुदाय की एक प्रथा के अनुसार उन्हें एक मौलवी के सुपुर्द कर दिया गया जिसने उन्हें फ़ारसी सिखाई। बाद में उन्हें हिंदी और अंकगणित सिखाई गयी। मात्र 12 साल की उम्र में राजेंद्र प्रसाद का विवाह राजवंशी देवी से हो गया।
भारतीय राष्ट्रीय मंच पर महात्मा गांधी के आगमन ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद को काफी प्रभावित किया। जब गांधीजी बिहार के चंपारण जिले में तथ्य खोजने के मिशन पर थे तब उन्होंने राजेंद्र प्रसाद को स्वयंसेवकों के साथ चंपारण आने के लिए कहा। गांधीजी ने जो समर्पण, विश्वास और साहस का प्रदर्शन किया उससे डॉ. राजेंद्र प्रसाद काफी प्रभावित हुए।
डा. राजेंद्र पसाद द्वारा लिखी पुस्तकें— यूनिटी आफ इंडिया, चंपारण में महात्मा, आत्मकथा डा.राजेंद्र प्रसाद, बापू के कदमों में व इंडिया डिवाइडेड, आइडिया आफ नेशन।
इसके आलावा उन्होंने इलेक्ट्रानिक स्ट्रक्चर आफ मैटरियल, फंडामेंटल आफ इलैक्ट्रानिक्स।