Rahul Vs Modi
Congres shoul think about frontal organistion and root level workers

हाल ही में आम चुनाव के परिणाम आये जिसमें विपक्ष लगभग साफ हो गया है। मोदी लहर में विपक्ष तो विपक्ष कांग्रेस के नेतृत्व पर ही सवालिया निशान लग गया। कांग्रेस के लिये सबसे बड़ी शर्म की बात तो यह है कि पार्टी अध्यक्ष अपनी पुश्तैनी सीट ही नहीं बचा पाये। अमेठी की सीट उन्हें विरासत में उनके पिता की मृत्यु के बाद मिली थी यहां से वो कई बार सांसद बने थे। लोग वहां उन्हें पूर्व पीएम राजीव गांधी के उत्तराधिकारी के रूप में मानते थे। लेकिन इस बार ऐसा क्या हुआ कि वहां के मतदाताओं ने अपने पूर्व सांसद को नहीं चुना। पिछली बार की हारी बीजेपी की प्रत्याशी स्मृति ईरानी पर अपना विश्वास जता दिया और अमेठ का सांसद बना दिया। क्या राहुल गांधी को इस बार यहां के मतदाताओं पर विश्वास नही रहा था इसीलिये वो केरल के वायनाड से चुनाव लड़ने चले गये। शायद वो सही सोच रहे थे। उन्हें संसद तो बनना ही था इसलिये उन्होंने वायनाड से पर्चा भर दिया साथी दल वामदलों ने भी राहुल के इस फैसले पर अपनी आपत्ति जतायी थी।
इस चुनाव में एक बात साफ नजर आयी कि कांग्रेस के पास तेज तर्रार नेताओं की काफी कमी है। पूरे चुनाव प्रचार की कमान केवल राहुल और प्रियंका गांधी के कंधों पर रही। ऐसा नही कि इन दोनों ने अपने प्रयासों में कोई कमी रखी। लेकिन उनका साथ देने के लिये उनकी टक्कर का कोई नेता साथ नहीं दिखा। वैसे ज्यातिरादित्य सिधिया ने अपने राज्य से निकल कर गुजरात और यूपी में कुछ जनसभाओं को संबोधित किया। लेकिन वो बीजेपी का सामना नहीं कर पाये। बीजेपी और एनडीए के चुनाव प्रचार के लिये पीएम मोदी और शाह के अलावा योगी, राजनाथ सिंह, शिवराज, कैलाश विजय वर्गीय के अलावा और बीजेपी के नेता कमर कस कर मैदान में उतरे हुए थे। इसके अलावा संघ के भारी तादाद में कार्यकर्ता भी जी जान से मोदी और बीजेपी के लिये जुटे हुए थे। कांग्रेस इस बात पर भी मंथन करे कि वो कुछ ऐसे नेताओं को तैयार करे जो फ्रंटलाइन पर मुकाबला कर सकें।
राहुल गांधी का यह फैसला शायद अमेठीवासियों को भी पसंद नहीं आया और बीजेपी उम्मीदवार स्मृति ईरान ने इसे हथियार बना कर मतदाताओं पर डोरे डाले और जीत हासिल की।
आज हालात यह है कि कांग्रेस के अध्यक्ष अपना पद छोड़ना चाहते हैं लेकिन पार्टी के दिग्गज नेता उन्हें यह समझाने में लगे हैं कि उन्हें पद नहीं छोड़ना चाहिये। लेकिन उनके पद न छोड़ने से या छोड़ ने पार्टी की हैसियत में कोई तो आने से रहा। लेकिन कांग्रेस को उन बातों पर तो चिंतन जरूर करना होगा जिसकी वजह से कांग्रेस दिन ब दिन गर्त में पहुंचती जा रही है। कभी देश की सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस के ये हालात है कि 16 राज्यों में उनकी पार्टी का खाता नहीं खुला। क्या ये कांग्रेस के लिये शर्म की बात नहीं है।

पिछली बार गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पहले से काफी बेहतर प्रदर्शन करते हुए 80 विधायकों को विधानसभा में पहुंचाया। लेकिन आम चुनाव तक आते आते कांग्रेस का एक भी उम्मीदवार गुजरात से सांसद नहीं बन पाया। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि गुजरात में काग्रेस संगठन बिल्कुल ही नहीं रह गया है। आम चुनाव में 80 विधायकों का क्या योगदान रहा क्या इस बात पर चर्चा नहीं होनी चाहिये। संगठन केवल तभी तक ऐक्टिव रहता है जब तक वहां राहुल और प्रियंका गांधी वहां चुनाव प्रचार करते हैं। इस बात को कांग्रेस के नेतृत्व को जरूर सोचना चाहिये। क्या सत्ताधारी दल के नेताओं और सरकार को कोसने से चुनाव जीता जा सकता है।
लेकिन कांग्रेस तो यह काम भी ढंग से नहीं कर पाती है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल का इश्यू चार विधानसभा चुनावों में जमकर खींचा और सफल भी रहे। लेकिन ये तो मानना होगा कि कांग्रेस बीजेपी से हर मामले में 19 नहीं 15 ही रही है चाहे वो सोशल मीडिया वाररूम हो या चुनावी रणनीति या किसी मुद्दे पर विपक्ष को घेरना। बीजेपी संगठन पिछले पांच सालों में इतना मजबूत हो गया है कि प्रचार के दौरान उसे अन्य पार्टियों की तरह कार्यकर्ता ढूंढने पड़ते।
आपको यह जानकर हैरत होगी कि यूपी, बिहार, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड समेत 16 प्रदेशों मे कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला है। जबकि कर्नाटक, मध्यप्रदेश और छततीसगढ़ में उनकी सरकार है। बिहार में राजद, हम, रालोसपा और कांग्रेस का महागठबंधन मिलकर बीजेपी का सामना नहीं कर पाया। बीजेपी अमित शाह इस बात का प्रचार वो अपनी हर सभा में बड़ी शान से करते है। इन हालातों कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी क्या देश के पीएम बन सकते हैं इस बात पर कांग्रेस को काफी गहरायी से मंथन करना चाहियै। इस बात को समझना चाहिये कि देश का मतदाता अब बहुत समझदार हो गया है उसे आसानी से बरगलाया नहीं जा सकता। कांग्रेस को अपने संगठन को मजबूत बनाने के साथ इस बात पर भी ध्यान देने की जरूरत हे कि कांर्यकर्ता के साथ पदाधिकारी भी एसी केबिन से निकल कर गांव गांव गली गली क्षेत्र में संपर्क करें। ताकि पार्टी एक बार फिर से अपना खोया जनाधार पा सके।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here