Home Editorial विश्व विजयी तिरंगा प्यारा, झण्डा ऊंचा रहे हमारा

विश्व विजयी तिरंगा प्यारा, झण्डा ऊंचा रहे हमारा

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विश्व विजयी तिरंगा प्यारा, झण्डा ऊंचा रहे हमारा

ये गीत हमने और बहुत से लोगों ने अपने बचपन में सुना होगा। हाथ में तिरंगा लेकर भागते रहे होंगे। उन दिनों आज की तरह तिरंगा हाथ में लेने की प्रथा नहीं थी। केवल गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर ही हम लोग झण्डा फहरा सकते थे। लेकिन आज आप किसी भी दिन किसी समय अपनी इच्छा के अनुसार झण्डा फहरा सकते हैं और तो और अपनी गाड़ी पर प्रतिष्ठा बनाकर शान से गुजर सकते हैं। किसी भी दिन तिरंगा फहराने की छूट मिलने से इसके अपमान की भी घटनाएं अक्सर देखने को मिलती हैं। देश पर कुर्बान हाने वाले शहीदों ने इसी तिरंगे की शान के लिये अपने प्राणों की आहुतियां दी वही तिरंगा कभी सड़कों पर तो कभी कार्यक्रम के अंत में लोगों के कदमों तले रौंदा जाता है। यह हमारे लिये बड़े अफसोस की बात है।
समझ में नहीं आता कि उन दिनों झण्डे की शान होती थी या आजकल 12 माह लोग झण्डे को फहराने में। आज के समय में तिरंगे का इस्तेमाल राजनीति में कुछ ज्यादा ही होने लगा है। झण्डा देशभक्ति की नहीं प्रतिष्ठा का सवाल बनता जा रहा है। जिसकी गाड़ी में बड़ा और बढ़िया कपड़े का झण्डा वो उतना बड़ा देशभक्ति वाला भले ही उसके सारे धंधे काले हों बस उसका दिखावा देशभक्ति का होना चाहिये। उसकी गाड़ी पर सत्ताधारी दल का झण्डा भी जरूरी है। कुछ भी कर लो तिरंगा हाथ में लेकर आप देशभक्त बन जाते है। यही वजह है कि कुछ तिरंगा हाथ में लेकर दिनदहाड़े किसी को भी मौत के घाट उतार देते हैं और वंदे मातरम और भारत मां के नारे लगा कर शान से निकल जाते हैं। प्रशासन हाथ पर हाथ रख कर खड़ा रहता है। ऐसा ​इसलिये कि उनके हाथों में देश का राष्ट्रीय ध्वज जो होता है। इसका मतलब लोग तिरंगा हाथ में लेकर कुछ करने के लिये आजाद हो जाते हैं।
मुझे आज भी याद है कि 15 अगस्त या 26 जनवरी को अपने देश के प्यारे तिरंगे को अपने हाथों में लेने के लिये कितने बेताब रहते थे। दो चार दिन पहले ही स्कूल और घरों के आसपास कागज से बने झण्डे और तिरंगे बैज लेकर बेचने वाले आते थे। उस समय झण्डा 10 से 15 पैसे में मिलता था लेकिन उन दिनों इतने पैसे भी हम लोगों के लिये बड़ी बात होती थी। इतने पैसे के लिये हमें मां बाप से मिन्नतें करनी पड़ती थी। बचपन में तिरंगा हमारे लिये एक प्रतिष्ठा व शान का प्रतीक माना जाता था। महीनों घरों के अंदर बड़ी हिफाजत और शान से रखा जाता था। लेकिन अफसोस की बात यह है कि लोगों न तो देश के प्रति वो जज्बा है और न ही तिरंगे के प्रति कोई श्रद्धा। यह माना जाता है कि यह तो मात्र एक कपड़े का टुकड़ा जिसे कभी भी कहीं खरीदा जा सकता है।
अफसोस की बात तो यह है कि जिन महात्मा गांधी ने हमें आजादी दिलायी और खुली हवा में सांस लेने का अधिकार दिलाया आज चंद लोग उनकी तस्वीर पर गोलियां चला कर मिठाइयां बांटते है। लेकिन सरकार की ओर से उनके खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठाया जाता है। कुछ लोग गांधी का इस्तेमाल तो राजनीति में तो करते हैं लेकिन उनके अपमान पर चुप्पी साध लेते है।

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