कांग्रेस की दिग्गज नेता और दिल्ली में 15 तक जनता के दिलों और सत्ता पर राज करने वाली शीला दीक्षित का चला जाना हर किसी के दिलो दिमाग को झकझोर गया। कांग्रेस की सबसे वयोवृद्ध महिला नेता शीला दीक्षित की मौत से पार्टी की नींव ही हिल गयी। सोनिया, राहुल गांधी से लेकर प्रियंका तक को इनकी मौत ने अंदर से हिला कर रख दिया। न केवल कांग्रेस बल्कि विपक्षी नेता भी उनकी इज्जत करते थे। शीला जी एक सांसद और केन्द्रीय मंत्री और राज्यपाल के रूप सदा ही याद की जायेंगी। मुख्यमंत्री के रूप में तो दिल्ली की जनता और कांग्रेस उन्हें कभी न भुला पायेगी।
उनकी मौत पर देश के प्रधानमंत्री मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृह मंत्री अमित शाह तक विचलित हो गये और ससम्मान भारी मन से उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। शीला जी प्रत्येक राजनीतिक दल के नेता से स्नेह और प्रेम भाव से मिलती थी। प्रत्येक दल का नेता इस बात को मानता है कि आज दिल्ली में जो सुविधाएं और सहूलियते दिखती हैं उनमें शीला दीक्षित का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता है।
81 साल की उम्र में वो सक्रिय रूप से राजनीति में दिखती थी। कांग्रेस ने भी उनकी सक्रियता को देखते हुए। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस की बागडोर सौंपी थी। उनके कमान संभालते ही वो कार्यकर्ता भी सक्रिय हो गये जो काफी समय से छिटक कर दूर हो गये थे। पूर्व मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली जो कुछ समय पहले पार्टी छोड़ कर भाजपा में चले गये थे शीला जी के अध्यक्ष बनते ही कांग्रेस में आ गये ये बात और है कि न शीला चुनाव में जीत हासिल कर पायी और न ही लवली। यहां तक की सातों सीट पर बीजेपी के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की। इससे शायद शीला जी को काफी निराशा हुई होगी। निराश होना भी लाजिमी था। पार्टी ने उनसे को काफी उम्मीदें थी। लेकिन शीला जी ने आम चुनाव में एड़ी चोटी का जोर लगाया था। लेकिन भाजपा की तिकड़मों के आगे किसी भी दल की एक नहीं चली। मीडिया में शीला की लोकप्रियता देखी जाती थी। शीला जी भी पत्रकारों के बीच बड़े ही अपनेपन से घुलमिल जाती थीं। लोग इसे अपना सम्मान ही समझते थे कि एक मुख्यमंत्री का उनके बीच बैठ कर चाय और खाना खा रहा है। वास्तव में शीलाजी का यूं जाना कांग्रेस के लिये तो बहुत बड़ी क्षति है ही राजनीति में भी उनके जैसा नेता दोबारा आना नामुमकिन है।