
बीते दो दिन से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज को सही साबित करने की नाकाम कोशिश कर चुकी हैं।
दूसरी तरफ भारत की सड़कों पर प्रवासी मज़दूरों का हुजूम घर लौट रहा है। भूखे-प्यासे, पैदल, हज़ारों किलोमीटर- खुद को घसीटते हुए। यही वजह है कि मोदी के राहत पैकेज की ज़मीनी असलियत कुछ और ही नज़र आ रही है।
हक़ीक़त भी यही है। चलिए इस बात को समझते हैं कि मोदी के राहत पैकेज से किसे सबसे ज्यादा फायदा मिला? और 20 लाख करोड़ के ऐलान के बाद भी हालात संभलते क्यों नहीं दिख रहे हैं। सबसे पहले यह जानिए कि 20 लाख करोड़ के हवाई बुलबुले को छोड़ने से पहले बैंकों से कर्ज़ बांटने के क्या हालात थे?
1. बैंकों के पास करीब 70 खरब रुपये जमा थे, क्योंकि एनपीए के डर से बैंक कर्ज़ नजिन बांट रहे थे। इस लिहाज से यह पैसा सरकार के पास ही जमा था।
2. इसी में से मोदी सरकार ने 46 खरब रुपये वापस बैंकिंग सिस्टम में डाल दिए। क्योंकि लॉक डाउन ने उद्योगों और रोजगार की कमर तोड़ दी थी।
3. मार्च 2020 तक बैंक 2-3% कर्ज़ ही बांट रहे थे।
4. फिर RBI ने 1 लाख करोड़ रुपये बैंकिंग सिस्टम में वापस झोंके। वित्त मंत्रालय के सूत्र बताते हैं कि छोटी और मझोली कंपनियों ने इसका फायदा नहीं उठाया।
5. लेकिन रिलायंस, टाटा, एलएंडटी और महिंद्रा ने पूरा पैसा लोन के रूप में उठा लिया।
6. उसके बाद RBI ने छोटे बैंकों के लिए दूसरा पैकेज दिया। उसमें से 250 करोड़ ही बैंकों ने उठाया। ये बैंक छोटे माइक्रो फाइनेंस कंपनियों को कर्ज़ देती हैं।
दोस्तों को पहले ही मालामाल करने के बाद कहानी यहां से यू-टर्न लेती है। भारत की इकॉनमी में 30% का योगदान करने वाली जिन NBFCऔर पावर सेक्टर को निशाना बनाकर वित्त मंत्री बुधवार को 6 लाख करोड़ का पैकेज लेकर आईं, उसकी असलियत यह है कि वित्त मंत्री ने सिर्फ चेक दिखाया, उसमें लिखा अमाउंट नहीं बताया।
लॉक डाउन से पावर सेक्टर की देनदारी 94000 करोड़ हो गयी थी तो वित्त मंत्री ने 90 हज़ार करोड़ बांट दिए। पीएम ग़रीब कल्याण योजना के लिए 1.70 लाख करोड़ का अमाउंट बताया गया, पर मोदी सरकार की जेब से निकले 73000 करोड़। आरबीआई की लिक्विडिटी के लिए 5.65 लाख करोड़ का अमाउंट बताया गया, पर चूंकि पुराना पैसा फिर वापस लौटाया गया इसलिए सरकार की जेब से अठन्नी भी नहीं गई। दूसरे पैकेज में वित्त मंत्री फिर एक चेक़ लेकर आईं। इस बार की रकम 5.94 लाख करोड़ की थी। लेकिन वास्तव में सरकार की जेब से निकले 16500-55 हज़ार करोड़।
अब बचा एमएसएमई यानी मझोली और लघु इकाइयां। इनके लिए वित्त मंत्री 3 लाख करोड़ की क्रेडिट गारंटी योजना लेकर आईं। यानी, अगर ये इकाईयां 3 लाख करोड़ का लोन न चुका पाएं तो सरकार उनके लोन का पैसा चुकायेगी।
ज़रा सोचिए भारत के 6.8 एमएसएमई के बारे में। इन इकाईयों की हालत नोटबन्दी के बाद से ही इस कदर खराब है कि बैंक भी इन्हें लोन देने से कतराते हैं। लेकिन सरकार अपनी जेब से गारंटी दे रही है।
एसबीआई रिसर्च के मुताबिक भारत की 45 लाख एमएसएमई पर 1 मार्च 2020 की तारीख तक 14 लाख करोड़ बकाया थे। वित्त मंत्री ने इमरजेंसी क्रेडिट के तहत लोन की सीमा और बढ़ा दी है। यानी इन्हीं इकाईयों को अब 2.8 लाख करोड़ और दिए जा सकेंगे।
वित्त मंत्री ने MSME की बेहतरी के लिए जिस 50 हज़ार करोड़ के फण्ड का ऐलान किया है, उसकी सच्चाई यह है कि मोदी सरकार ने अपनी जेब से सिर्फ 10 हज़ार करोड़ रुपए दिए हैं। बाकी पैसा SBI और LIC को देना है। SBI की हालात NPA ने खराब कर रखी है और LIC पहले ही निचोड़ी जा चुकी है।
अब बताइए, प्रवासी मज़दूरों, ग़रीबों को राहत पैकेज का कितना फायदा मिलने वाला है?
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