Modi with ginping (1)
China is envolved to capture land for Laddakh

अब जो चीजें साफ हो रही हैं उससे यह दिख रहा है कि, लद्दाख क्षेत्र में जो हमारे सैन्य बल की शहादत हुयी है वह एक बड़ा नुकसान है। कहा जा रहा है कि सैनिकों के पीछे हटने हटाने को लेकर यह शहादत हुयी है। अखबार की खबर के अनुसार, 43 सैनिक चीन के भी मारे गए हैं। हालांकि, इस खबर की पुष्टि, न तो हमारी सेना ने की है और न चीन ने। यह एएनआई की खबर है। एएनआई को यह खबर कहां से मिली, यह नहीं पता है। शहादत की भरपाई, दुश्मन देश की सैन्य हानि से नहीं आंकी जा सकती है। एक भी जवान की शहादत युद्ध के नियमों में एक बड़ा नुकसान होता है। यह बस, एक मानसिक तर्क वितर्क की ही बात होती है कि, उन्होंने 20 हमारे मारे तो 43 हमने उनके मारे। पर इतने खो कर हमने पाया क्या, यह सबसे महत्वपूर्ण है।

असल सवाल यह है कि अपने 20 जवानों को शहीद करा कर, और उनके 43 को मार कर हमने हासिल क्या किया ?

इस पूरे घटनाक्रम को देखें तो, यह मामला दस पंद्रह दिन से चल रहा है और ऐसा भी नहीं कि, दबा छुपा हो । डिफेंस एक्सपर्ट अजय शुक्ल पिछले कई दिनों से चीनी सेना की, लद्दाख क्षेत्र में, सीमा पर बढ़ रही गतिविधियों पर, जो स्थितियां है उसके बारे में लगातार ट्वीट कर रहे हैं। उन्होंने लेख भी लिखा और यह भी कहा कि, 60 वर्ग किमी चीन हमारी ज़मीन दबा चुका है। उनके अलावा अन्य रक्षा विशेषज्ञ चीन की हरकतों पर उसकी अविश्वसनीयता के इतिहास के मद्देनजर हमे सतर्क करते रहे है। लेकिन, सरकार ने इन सब चेतावनियों पर या तो ध्यान नहीं दिया, या ध्यान दिया भी तो समय से उचित रणनीति नहीं बना पायी।

गलवां घाटी के पास, आठ पहाड़ियों के छोटे छोटे शिखर जिन्हें फिंगर कहा जाता है, के पास यह सीमा विवाद है। सीमा निर्धारित नहीं है और जो दुर्गम भौगोलिक स्थिति वहां है उसमें सीमा निर्धारण आसान भी नहीं है तो, कभी हम , चीन के अनुसार, चीन के इलाके में तो कभी वे हमारे अनुसार, भारत के इलाके में गश्त करने चले जाते रहे हैं। लेकिन यह यदा कदा होता रहा है। सीमा निर्धारित न होने के कारण, यह कन्फ्यूजन दोनो तरफ है।

लेकिन जब चीनी सैनिकों का जमावड़ा उस क्षेत्र में बढ़ने लगा और इसकी खबर भी असरकारी स्रोत से मिलने लगी तो उस पर सरकार ने क्या किया ? हो सकता है सरकार ने डिप्लोमैटिक चैनल से बात की भी हो, पर उसका असर धरातल पर नहीं दिखा। अन्ततः, चीनी सेना की मौजदगी, 7,000 सैनिकों तक की, वहां बताई जाने लगी।

क्या इतनी शहादत के बाद हम पूर्ववत स्थिति में आ गए हैं ? यह सवाल सबसे महत्वपूर्ण है। अगर इतने नुकसान के बाद भी हमने चीन को उनकी सीमा में खदेड़ दिया है और अपनी सीमाबंदी मुकम्मल तरीके से कर ली है तब तो यह एक उपलब्धि है अन्यथा यह शहादत एक गम्भीर कसक ही बनी रहेगी।

युद्ध का मैदान शतरंज की बिसात नहीं है कि उसने हमारे जितने प्यादे मारे हमने उससे अधिक प्यादे मारे। युद्ध का पहला उद्देश्य है कि जिस लक्ष्य के लिये युद्ध छेड़ा जाय वह प्राप्त हो। यहां जो झड़प हुयी है वह अआर्म्ड कॉम्बैट की बताई जा रही है, जिसकी शुरुआत चीन की तरफ से हुयी है। हमारे अफसर, सीमा पर पीछे हटने की जो बात तय हुयी थी, उसे लागू कराने गए थे। अब इस अचानक झड़प का कोई न कोई या तो तात्कालिक कारण होगा या यह चीन की पीठ में छुरा भौंकने की पुरानी आदत और फितरत, का ही एक, स्वाभाविक परिणाम है, यह तो जब सेना की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी होगी तभी पता चल पाएगा।

इस समय सबसे ज़रूरी यह है कि
● हम जहां तक उस क्षेत्र में इस विवाद के पहले काबिज़ थे, वहां तक काबिज़ हों और चीन की सीमा पर अपनी सतर्कता बढ़ाएं।
● चीन को हमसे आर्थिक लाभ भी बहुत है। उसे अभी अभी 1100 करोड़ का एक बड़ा ठेका मिला है और गुजरात मे जनवरी में देश के सबसे बड़े स्टील प्लांट बनाने का जिम्मा भी। इस परस्पर आर्थिक संपर्क को कम किया जाय न कि टिकटॉक को अन्स्टाल और झालरों के बहिष्कार तक ही सीमित रहा जाय।
● भारत को अपने सभी पड़ोसी देशों से संबंध बेहतर बनाने और उन्हें साथ रखने के बारे में गम्भीरता से सोचना होगा। इन्हें चीन के प्रभाव में जाने से रोकना होगा।
● पाकिस्तान से संबंध सुधरे यह फिलहाल तब तक सम्भव नहीं है। इसका कारण अलग और जटिल है।
#vss

पत्रकार विजय शंकर सिंह की कलम से

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here