कोराना वायरस से पूरी दुनिया जूझ रही है। भारत की हालत भी काफी खराब होने के आसार है। कोराना वायरस के बाद अब देश दुनिया को बेरोजगारी, मंदी और रेवेन्यू के संकट से जूझना पड़ेगा। बुरे हालात से निकलने में भारत को लगभग एक साल से ज्यादा का समय लग सकता है। देश की आर्थिक स्थिति को पांच ट्रिलियन पहुंचाने वालों को वर्तमान हालात बुरी तरह डरा रहे हैं।
कुछ महीने पहले अमेरिकी राष्ट्रपति दोलान्द ट्रम्प ने भारत को विकसित देश बता दिया था। ठीक उसी तरह जैसे मोदी को राष्ट्रपिता कहा गया। फिर क्या, सरकारी प्रोपोगेंडा कर गृहस्थी चलाने वाली भांड मीडिया ने उछलना शुरू कर दिया। फिर दोलान्द ट्रम्प आये, उससे पहले फटेहाली यानी ग़रीबी छिपाने के लिए राष्ट्रपिता को दीवार चुनवानी पड़ी।अब लॉकडाउन ने दुनिया की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था और विकसित देश का दम भरने वाले भारत की हवा निकाल रखी है। विश्व बैंक ने ग़रीबी की रेखा तय कर रखी है। भारत में जो भी रोजाना 3.2$ (₹245) से कम कमाता है, वह ग़रीब है।
इस लिहाज से भारत की 60% यानी 81 करोड़ से ज्यादा आबादी ग़रीबी की रेखा से नीचे है। कोरोना के झटके ने 68% आबादी को ग़रीबी की रेखा से नीचे ला दिया है। यानी अब 136 करोड़ की कुल जनसंख्या में 91 करोड़ लोग ग़रीबी की रेखा से नीचे आ गए हैं। भारत की प्रति व्यक्ति सालाना आय 1.5 लाख रुपये है। लेकिन देश की 22% आबादी रोज 145₹ से कम कमाती है।यूनाइटेड नेशन्स यूनिवर्सिटी का एक अध्ययन बताता है कि कोरोना वायरस के झटके से 10 करोड़ लोग ग़रीबी की रेखा से नीचे आ सकते हैं। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि आय और उपभोग के साधनों में 20% कई कमी से भारत जैसे निम्न आय वाले देशों में ग़रीबी 8% बढ़ सकती है। इसका मतलब हर 10 में से 2 लोगों के ग़रीबी की रेखा के नीचे जाने की आशंका है।ग़रीबी सिर्फ भारत में नहीं, पूरी दुनिया में बढ़ेगी। 1991 के बाद दुनिया ऐसी भीषण ग़रीबी देखने जा रही है। इसी दुनिया ने 2030 तक ग़रीबी को खत्म करने का ख्वाब देखा था। ब्रिटेन में लोगों को कूड़े से खाना बटोरते देखकर भारत याद आता है। लेकिन ताली-थाली और घंटी बजकर अब रामायण देख रहे भारत में आने वाली ग़रीबी की फिक्र किसे है?
सौमित्र रॉय