अधिकांश का जवाब होगा- नहीं। ठीक है। लेकिन इकॉनमी का क्या होगा? यह सवाल सभी की बोलती बंद कर देता है। यही बड़ा पेंच है जो मोदी सरकार को लॉक डाउन खोलने मजबूर कर सकता है। अगर मोदी सरकार रेड ज़ोन और ग्रीन ज़ोन के बीच बंटवारा कर लॉक डाउन खोलती है तो भी इसका खास असर होने वाला नहीं है।
भारत के 9 बड़े राज्य कोरोना वायरस से सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं। महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश सभी तटवर्ती राज्य और बिज़नेस हब हैं। सबसे ज़्यादा हॉटस्पॉट्स भी यहीं हैं। मोदी जी को भी पता है कि भारत की इकॉनमी गांव से नहीं, शहरों से चल रही है।
लॉक डाउन 2.0 में यानी 3 मई तक भारत को 17.78 लाख करोड़ का नुकसान हो चुका होगा। बार्कलेस की रिसर्च के अनुसार यह नुकसान 234 बिलियन डॉलर का होगा।
मार्च से शुरू हुए वित्त वर्ष में भारत की ग्रोथ 0% रही है। मोदीजी ने आज सीएम से बात करते हुए साफ कहा कि जून-जुलाई में कोरोना के मामले और बढ़ेंगे। मतलब आगे 3 महीने जोखिम वाले हैं। यानी साल की दो-तिमाही कोरोना से लड़ते हुए निकलेगी। फिर भारत की ग्रोथ इस साल 0.9% रहने का अनुमान बिल्कुल ठीक है। लॉक डाउन 2.0 में भारत का औद्योगिक उत्पादन 80% ठप है। मांग में 50-90% गिरावट है।
सप्लाई चेन ठप है। अब अगर गुरुग्राम में मारुति कंपनी कार बनाना शुरू करे तो शोरूम तक पहुंचाने और बेचने की समस्या है। एक्सपोर्ट जरूर चल सकता है और हाल की छूट में चल भी रहा है। जैसे JSW स्टील जो उत्पादन का 30% एक्सपोर्ट करती है, माल भेज रही है। भारत की 3000 घरेलू उड़ानें रोज होती हैं, जो बंद है। विस्तारा के 30% कर्मचारी बिना वेतन के घर पर बैठे हैं।
संगठित रिटेल और रेस्टॉरेंट इंडस्ट्री दोनों मिलाकर 10 ट्रिलियन डॉलर का बाजार है। लॉक डाउन 3.0 में भी दोनों बंद ही रहेंगे। खासकर शहरों में। यानी 1.30 करोड़ लोगों का रोजगार छिन जाएगा। एक बार फिर बार्कलेस के अनुमान पर आते हैं। तमाम निर्धारकों को देखते हुए ब्रोकर फर्म ने भारत के लिए इस साल 0% और अगले साल के लिए 0.8% की ग्रोथ का अनुमान लगाया है। यह भारत में भयानक बेरोजगारी, ग़रीबी और भुखमरी पैदा करेगा। इस बीच भी विलन की तरह कोरोना होगा। साथ में मलेरिया, डेंगू और बाकी बीमारियां भी।
मोदी सरकार के पास राज्यों को GST के 5 महीने के बकाए के भुगतान की क्षमता नहीं है। कंपनसेशन 4 महीने का बकाया है। राज्यों की हालत यह है कि लॉक डाउन 3.0 में अपने कर्मचारियों को सैलरी तो दूर, रोजमर्रा के खर्चों के लिए पैसा नहीं होगा।आखिर में ग़रीबी, बेरोज़गारी, भुखमरी पर। तीनों समस्याओं का मोदी सरकार 6 साल में हल नहीं निकाल सकी। इनकी जड़ भी अर्थव्यवस्था से जुड़ी है। ग्रोथ पर निर्भर है। लॉक डाउन खुले, यही अच्छा होगा। हॉटस्पॉट भले बंद हों, लेकिन उत्पादन और सेवा क्षेत्रों को खोलना ही पड़ेगा। अगर अब नहीं तो भारत कहीं नहीं होगा। और हम-आप भी।
वरिष्ठ पत्रकार सौमित्र रॉय