भारत का दुर्भाग्य है कि यहां आपराधिक चरित्र के दागदार लोग उस सिस्टम को चला रहे है- जिसे संविधान में जनता के लिए, जनता के द्वारा और जनता का लोकतंत्र कहा गया है। अब्राहम लिंकन की लोकतंत्र की परिभाषा का आज यह हाल है कि संसद के 539 सदस्यों में 233 यानी तकरीबन आधे सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।
29% पर बलात्कार, हत्या और अपहरण जैसे गंभीर मामले हैं। भारत के वोटरों ने झूठ, झांसे, पैसा, धर्म, जाति, आरक्षण जैसे निर्भरता के लालच में इन्हें चुनकर भेजा है। अब ये बेशर्मी से आत्मनिर्भरता की बात करते हैं। इससे भी बड़ी मूर्खता यह कि हम इनसे प्रवासी मज़दूरों के लिए करुणा, संवेदना, राहत की उम्मीद कर रहे हैं।
रवींद्रनाथ टैगोर के जन-गण-मन के भारत भाग्य विधाता अब कौन हैं? कभी फुरसत में सोचिएगा। हमारा समाज बलात्कारियों को पूजता रहा है। हम अपनी प्रार्थनाओं में खुद को मूर्ख, खलगामी के रूप में पहचानते रहे हैं।
आज 136 करोड़ अवाम के सामने कोई आदर्श नहीं, कोई लक्ष्य नहीं, भारत भाग्य विधाता के प्रति कोई विश्वास नहीं, कोई भविष्य नहीं। अज़ीम प्रेमजी का सर्वे कहता है कि 12 राज्यों के 80% शहरी और 57% ग्रामीण कामगार रोजगार खो चुके हैं।
मोदी सरकार क्या कर रही है? लोन बांट रही है। झूठ बोल रही है। मज़दूरों के प्रति हमदर्दी के नाम पर पिछले दरवाज़े से श्रम कानून हटाये जा रहे हैं। इस लॉक डाउन में पूरी दुनिया ने देखा कि भारत के लोग जीने के लिए भी आज़ाद नहीं हैं। उनकी गरिमा, उनके अधिकार सब शून्य हो चुके हैं। अगर कुछ बचा है तो वह घर हैं। जिसकी चारदीवारियों में जन-गण-मन गाकर गौरवान्वित महसूस कर सकते हैं। फिर भी हमें शर्म नहीं आती। मुमकिन है कि 2024 में हम फिर अपराधियों, गुंडों, रेपिस्टों, डकैतों को भारत भाग्य विधाता बना दें।
क्योंकि हमें अपना धर्म पसंद है। क्योंकि हमारे दिल में दूसरे धर्म के प्रति नफरत है। झूठी श्रेष्ठता का घमंड हमें हमेशा डुबोता रहा है। आगे भी डुबोयेगा। क्योंकि हम झूठे राष्ट्रवाद में बहकर अपनी सत्ता, जमीन, इज़्ज़त सब कुर्बान करते आये हैं। क्योंकि हम मूर्ख हैं। हमने इतिहास से कुछ नहीं सीखा।
क्योंकि हम व्यक्ति पूजक हैं। हमने गांधी को पूजा। नया गांधी नहीं बना पाए।
क्योंकि हमारे भीतर कोई नैतिकता नहीं बची। हमने सब बाज़ार के हवाले कर दिए। इसलिए हम भीतर से मर चुके हैं।
लड़ने की, आत्मशक्ति खो चुके समाज को अपना तर्पण कर शून्यता की ओर बढ़ना चाहिए।