टीवी जर्नलिस्ट अर्नब गोस्वामी किसी समय में पत्रकारिता के लिये जाने जाते थे लेकिन वर्तमान में वो डिबेट के दौरान सत्ता के पक्षकार बन कर उभरें हैं। दूसरी तरफ वो विपक्षी नेताओं के चरित्रहनन करने से भी बाज नहीं आते हैं। शायद बहुत ही कम लोग जानते हैं कि अर्नब ने अपनी पत्रकारिता के पहला राजनीतिक इंटरव्यू कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का किया था। इतना ही नहीं अर्नब गोस्वामी ने बीजेपी सांसद राजीव चंद्रशेखर के साथ मिलकर रिपब्लिक भारत और आर भारत नाम से टीवी चैनल भी शुरू किया है। इससे साफ हा जाता है कि इस चैनल का काम मोदी सरकार का एजेंडा चलाने के साथ अपोजिशल की छवि खराब करने के लिये फर्जी खबरें चलाना है। लेकिन आज वो बीजेपी के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। सत्ता के पांव दबा रहे हैं। उनके पिता मनोरंजन गोस्वामी 1998 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ वुके हैं। लेकिन चुनाव हार गये थे। इतना ही नहीं उनके मामा असम में आज भी बीजेपी एमएलए है। पहले वो असम बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं।
आजकल अर्नब गोस्वामी को लेकर काफी खबरें गर्म हैं। अर्नब गोस्वामी अपनी पत्रकारिता और अढियल रवैये के लिये काफी समय से जाना जा रहा है। लेकिन अर्नब आज कल एक ऐसे मामले में चर्चा में आये हैं, जिसे लेकर उनका काफी थू थू हो रही है। पिछले चार पांच साल से वो पीएम मोदी और बीजेपी सरकार के पक्ष में खुलकर सामने आये हैं। मोदी सरकार का समर्थन करते समय वो सभी सीमाएं लांघ जाते हैं। दो दिन पहले रिपब्लिक टीवी के एक कार्यक्रम में उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर अभद्र टिप्पणी करते हुए कांग्रेस पर भारी हमले किये। उनके इस रवैये को देखते हुए कांग्रेस ने गोस्वामी के खिलाफ देश व्यापी अभियान छेड़ दिया गया। मुंबई में भी अर्नब गोस्वामी के खिलाफ मामला र्द कराया गया। इतना ही नहीं कांग्रेस शासित राज्यों में अर्नब के खिलाफ संगीन धाराओं में मामले दर्ज कराये गये। इस बीच में गुरुवार की रात में अर्नब पर तथाकथित हमला कर दिया। रात में ही अिर्नब गोस्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी गिरफतारी को लेकर रिट दायर कर दी। हैरानी की बात यह रही कि सुप्रीमकोर्ट भारी व्यस्तता के बावजूद गोस्वामी की रिट को शुक्रवार के दिन सबसे पहले प्राथमिकता के आधार पर सुना और पुलिस को यह आदेश दिया कि 2 सप्ताह तक गोस्वामी को गिरफ्तार नहीं कर सकते हैं। साथ याचिका कर्ता को यह आदेश दिया कि वो फिर से रिट दायर करें।
सुप्रीम कोर्ट के इस रवैये की सभी लोग निंदा कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि जिस सुप्रीमकोर्ट के पास कई अहम् मामलों की सुनवायी के लिये समय नहीं था। उसने अर्नब गोस्वामी की रिट पर इतनी जल्दी सुनवायी क्यों कि इससे साफ जाीहर होता है कि सुप्रीमकोर्ट पर केन्द्र का दबाव है।