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नौ जून को नरेंद्र मोदी ने पीएम पद की शपथ लेते ही अपनी तीसरी बार पीएम बनने की मनोकामना पूरी कर ली। ये बात दीगर है कि इस बार उनको उतनी आजादी नहीं मिलने वाली है। अब तक नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री और पीएम तक बहुमत की सरकारों का नेतृत्व किया है। यह पहला मौका होगा कि उन्हें अपने एनडीए गठबंधन के दलों की सलाह और सहमति से सरकार चलाना है। ये मोदी के लिये थोड़ा मुश्किल दिख रहा है। फिलहाल एनडीए सरकार की स्थिरता के दो पावर प्वाइंट हैं जो सरकार के भविष्य को तय कर रहे हैं। यूं कहा जाये कि पीएम मोदी कब तक देश के प्रधानमंत्री रहेंगे नितीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू तय करेंगे। नरेंद्र मोदी के लिये ये एक नये तरह का अनुभव होगा। अभी तक तो भाजपा और मोदी समर्थक मोदी सरकार के नारे बुलंद करते नहीं थकते थे अब उन्हें एनडीए सरकार कहने की आदत डालनी होगी।
बैसाखी पर टिकी एनडीए सरकार
दस साल तक देश की कमान संभालने वाले मोदी ने किसी भी दल के नेताओं को कुछ नहीं समझा। वैसे कहने को दस साल तक एनडीए की सरकार थी लेकिन वहां सिर्फ भाजपा का ही वर्चस्व रहा। पिछले दस सालों में एनडीए की कितनी बार बैठकें हुईं यह देखने की बात है। पिछले साल जुलाई में जब नितीश कुमार ने इंडिया गठबंधन की नींव रखी तब पीएम मोदी और शाह को भी एनडीए की याद सताने लगी। इससे ये तो साफ हो गया कि इंडिया गठबंधन ने मोदी शाह की नींदे उड़ी दी थी। लोकसभा चुनाव परिणाम से भाजपा को तगड़ा झटका लगा है। चुनाव प्रचार के दौरान मोदी और भाजपा ने अबकी बार 400 पार के नारे बुलंद किये थे। लेकिन नतीजे भाजपा और मोदी के खिलाफ आये। भाजपा 240 पर ही सिमट कर रह गयी। यूपी, राजस्थान, कर्नाटका, बिहार, महाराष्ट्र आदि में भाजपा को जनता ने नकार दिया। खासतौर से यूपी में भाजपा को करारा झटका लगा। आधा दर्जन केन्द्रीय मंत्री चुनाव हार गये। इससे पहले दो बार लोकसभा चुनाव में यूपी से बंपर सीटें भाजपा ने निकाली थी।
एनडीए सरकार की संजीवनी एन चंद्रबाबू नायडू
फिलहाल एनडीए सरकार चंद्रबाबू नायडू पीएम मोदी के लियेी आक्सीजन का काम कर रहे हैं क्यों कि इस समय टीडीपी के 16 सांसद हैं और भाजपा के पास 240 सांसद हैं जो बहुमत के आंकड़ों 272 से 32 कम हैं। अगर टीडीपी एनडीए में शामिल न होते तो मोदी तीसरी बार पीएम नहीं बन सकते थे। चंद्रबाबू नायडू इससे पहले भी एनडीए की अटल बिहारी सरकार में शामिल रहे हैं। इसलिये मोदी शाह के लिये नायडू काफी अहमियत रखते हैं। 2014 में नायडू एनडीए के सदस्य थे। लेकिन 2018 में वो एनडीए छोड़ कर चले गये थे इतना ही नहीं उन्होंने मोदी के खिलाफ तीसरा मोर्चा बनाने का प्रयास भी किया था। तब भाजपा ने उन पर काफी गंभीर आरोप लगाये थे। केन्द्र सरकार की जांच एजेंसियों ने उनके घर पर रेड भी डाली थी। नायडू 1995 से 2004 तक आंध्र के सीएम भी रहे थे। तेलगू देशम पार्टी ने 2024 में विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत से आंध्र में सरकार बनायी है। इसके अलावा लोकसभा चुनाव में भी उनकी पार्टी के 16 सांसद जीते हैं। एनडीए में टीडीपी सबसे बड़ा दल है जिसके पास 16 सांसद हैं।
NTR-चंद्रबाबू नायडू और विवाद
12 जून को चंद्रबाबू नायडू चौथी बार आंध्र पदेश के चौथी बार सीएम पद की शपथ लेने वाले हैं। 175 सदस्यों वाली आंध्र प्रदेश विधानसभा में टीडीपी ने अपने सहयोगी समेत 164 सीटेंं जीती हैं। जगनमोहन रेड्डी की पार्टी के हिस्से में मात्र 11 सीटें ही आयी है। 27 साल बाद एक बार फिर एन चंद्रबाबू नायडू केन्द्र सरकार के लिये महत्वपूर्ण हैं। साथ एक बार फिर वो प्रदेश की कमान संभाल रहे हैं। इससे पहले तेलगू देसम पार्टी के संस्थापक एन टी आर तीन बार सीएम पद संभाल चुके हैं। चंद्रबाबू नायडू पर यह आरोप है कि उन्होंने सत्ता की चाह में अपने ससुर एनटीआर के साथ दगाबाजी की। एनटीआर की मृत्यु 1984 में गंभीर बीमारियों के कारण हो गयी थी। एनटीआर का अपने पनिवार के प्रति रवैया काफी उदासीन रहता था। लेकिन उनकी पत्नी ने अपने पति का जीवनपर्यंत साथ दिया। एनटीआर हमेशा फिल्मोद्योग से जुड़े लोगों से घिरे रहते थे। मुख्यमंत्री पद रहते हुए भी वो राजनीति में ज्यादा सक्रिय नहीं रहते थे। इस बात को लेकर उनके दामाद नायडू ने पार्टी सरकार में अपनी विशेष पकड़ बना ली। एनटीआर अपने विधायकों तक से नहीं मिलते थे। इन बातों का फायदा चंद्रबाबू नायडू उठाया। इस बीच एनटीआर के जीवन में एक महिला लक्ष्मी पार्वती का प्रवेश हुआ। वो एनटीआर की प्रशंसक के रूप में सामने आयी और उनकी बायोग्राफी लिखने के दौरान उनके ​काफी करीब आ गयी। बाद में एनटीआर ने उन्हें अपनी दूसरी पत्नी बना लिया था। इन सब बातों को लेकर चंद्रबाबू नायडू ने एनटीआर के बच्चों को लक्ष्मी पार्वती के खिलाफ बरगलाया। इसका नतीजा यह हुआ कि सियासी और पारिवारिक रूप से एनटीआर को काफी नुकसान हो गया। एक समय यह आया कि चंद्रबाबू नायडू ने अपने ससुर एनटीआर की सत्ता को हथिया लिया और पार्टी की कमना अपने हाथ में ले लिया।

‘एनटीआर अ पोलिटिकल बॉयोग्राफ़ी’

23 अगस्त, 1995 को एनटीआर सत्ता के शिखर पर थे लेकिन आठ दिनों के भीतर सत्ता उनके हाथ से छिन चुकी थी वो पूर्व मुख्यमंत्री बन गए थे. कहा जाता है कि अगर लक्ष्मी पार्वती एनटीआर के जीवन में नहीं भी आई होतीं तब भी चंद्रबाबू नायडू उनको सत्ता से हटाने की अपनी कोशिश पर विराम नहीं लगाते.हाल में प्रकाशित पुस्तक ‘एनटीआर अ पोलिटिकल बॉयोग्राफ़ी’ के लेखक रामचंद्र मूर्ति कोंडूभाटला लिखते हैं, “दरअसल, एनटीआर कोई भी सलाह मानने के लिए तैयार नहीं होते थे. वो मनमानी करते थे और निरंकुश थे. अक्सर वो भावनात्मक हो जाते थे और हर बात पर शक करते थे. लक्ष्मी पार्वती का उन्हें एक तरह का जुनून हो गया था. जिस तरह से नायडू ने एनटीआर के ख़िलाफ़ माहौल बनाया वो उनकी रणनीतिक चतुराई का नमूना था. नायडू को अच्छी तरह मालूम था कि उन्हें किसे, किसके खिलाफ़ और कब इस्तेमाल करना है.” चंद्रबाबू नायडू ने अपने साले डॉक्टर दग्गूबती वैंकटेश्वर राव को उप-मुख्यमंत्री पद का लालच देकर अपनी तरफ़ किया जबकि उनको मालूम था कि वो इस वादे को पूरा नहीं कर पाएँगे.

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