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मेरी आंख लगभग 5 बजे ही खुल गयी थी। मैं चूंकि खिड़की के पास बैठा था इसलिये वहां से प्राकृतिक नजारे देख रहा था। जैसे ही ट्रेन ने पंजाब क्रास किया और जम्मू की सीमा में प्रवेश किया वैसे ही एक अजीब सी खुशी का अहसास होने लगा। वहां की हवा में एक अजब सा नशा था। लग रहा था कि जैसा सुना था उससे कहीं ज्यादा खुशी और सुकून मिल रहा था। प्राकृतिक नजारों से दिल बाग बाग हो गया था। ऐसा लग रहा था जैसे हम किसी और भी दुनिया आ गये हैं। जहां सिर्फ शांति और सुकून ही सुकून महसूस हो रहा था। तब तक पत्नी की आंख भी खुल गयी थी। दोनों बैठ कर जम्मू के नजारे लेने लगे।
जम्मू बस अड्डे पर प्राईवेट बस आपरेटरों की मनमर्जी
लगभग आठ बजे ट्रेन ने हमे जम्मू रेलवे स्टेशन पर ला दिया था। जम्मू सेे कटरा जाने के लिये हमें बस या कैब से जाना होता है। पहले हम लोगों तय किया कि पहले चाय नाश्ता कर लेते हैं लेकिन बाहर निकलते ही यह तय हुआ कि पहले कटरा जाने के साधन के बारे में जानकारी कर लेते हैं। प्राइवेट बस अड्डा काफी करीब था। उसी के पास सरकारी बसें भी खड़ी होती थी लेकिन उनकी संख्या काफी कम थी। यह भी हो सकता है कि प्राईवेट बस आपरेटरों ने उनसे साठगांठ कर ली ताकि उनके धंधे पर प्रभाव न पड़े। प्राईवेट बस आपरेटरों की पूरी मनमानी अड्डे पर चलती है। हम लोग भी चाय पी कर एक प्राईवेट बस में बैठ गये। बस वाले ने यह कह कर बैठाया कि बस आधा घंटे में बस कटरा को चल देगी।
हम लोगों यह सोचा कि आधे घंटे में बस चलेगी तब तक आराम से बैठने को मिलेगा। टिकट भी पर सवारी 80 रुपये बताया गया था। तब तक हम लोग चाय पी चुके थे। चाय पीने के बाद हम सभी लोगों का प्रेशर बनने लगा था। लेकिन आस पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी कि हाजत को मिटाया जा सकता। सभी प्रेशर पर कंट्रोल करने में लगे थे। बस में हम लोगों बैठे हुए एक घंटे से अधिक समय बीत चुका था लेकिन बस चलने का नाम नहीं ले रही थी। पूछने पर हर बार ड्राइवर यह कह कर टाल मटोल कर रहा था कि अभी सवारी फल नहीं हुई है। सवारी फल होती ही वो बस चला देगा। हर पांच मिनट बाद वो बस को हिलाता डुलाता और फिर दूसरी जगह खड़ी कर देता। इस तरह बस में बैठे बैठे दो घंटों से अधिक समय बीत गया।
प्राइवेट बसों की अव्यवस्था से मन घबराया
अब बस में बैठे सभी लोग तिलमिलाने लगे थे। सबके सब ड्राइवर पर राशन पानी लेकर चढ़ गये। लेकिन उसने साफ कर दिया कि जब तक उसके हिसाब से बस नहीं भरेगी वो बस को आगे नहीं बढ़ायेगा। ड्राइवर की हिमाकत देख कर तो लगने लगा कि हम लोगोंं का बस में बैठने का फैसला ठीक नहीं था। दूसरी बात यह थी कि कोई दूसरा बस सवारियों को बैठाने को भी राजी नहीं था। सबकी आपस में सलाह रहती है। एक बात और थी कि बसों में बैठने वाली सवारी से जो किराया बताते उसकी जगह सौ पचास रुपये की टिकट काटते थे। इस बात की शिकायत सुनने वाला कोई नहीं रहता है। पुलिस की सिपाही भी इन लोगों से मिले रहते हैं। इन्हीं की शह पर वो पर्यटकों को ठगने और बेवकूफ बनाने का काम करते है। अब बस में बैठने वाले सभी पर्यटकों ने यह तय कर लिया कि वो समझ गये कि हम लोग प्राइवेट बस आपरेटरों की साजिश का शिकार हो गये है। सब ने यह फैसला किया कि वो अब दूसरे साधन से जायेंगे या जो लोग ग्रुप में आये थे उन्होंने एक पूरी बस चार्टर कर ली और उन्हें लेकर वो सब कटरा की ओर रवाना हो गयी।हम लोगों के पास दूसरा साधन करने के अलावा कोई और चारा नहीं था।
बड़ा बेटे के साथ छोटे बेटे ने प्राइवेट कैब करने की जानकार ली। वहां से 1800 रुपये में कैब कटरा तक जाने तय हुई। धीरे धीरे दिन चढ़ता जा रहा था। उसके साथ धूप भी कड़ी होती जा रही थी। यही फैसला हुआ कि प्राईवेट कैब से कटरा जायेंगे। हम लोगों ने एक टाटा सफारी को रेंट पर लिया और उसमें सारा सामान रखा और उसमें बैठ गये तब जा कर चैन की सांस ली। अब यह तय हो गया था कि अब एक डेढ़ घंटे में हम लोग कटरा पहुंच ही जायेंगे। जब कैब वहां से निकली तब सबके चेहरे पर सुकून नजर आया।
लगभग एक घंटे कैब चलने के बाद ड्राइवर ने एक पेट्रोल पंप पर गाड़ी रोकी और सबसे कहा कि जो लोग फ्रेश होना चाहते हैं वो यहां फ्रेश हो लें। इस मौके की तलाश सभी को थी। सभी लोग वहां फ्रेश हुए तब जा कर सबकी जान में जान आयी। लगभग 12 बजे हम लोग कटरा पहुंच गये।
—-शेष अगली कड़ी में