#My Views# My bloggs# Memoories # Author page# LitratureNews# Storyteller# Lucknow Journalism#

सुबह से ही मन कुछ अनमना सा है। बालकनी से झांक कर देखा तो आस पास के घरों में बच्चों की आवाजें सुनायी दे रही हैं। टीवी पर रक्षा बंधन के मोके पर भाई बहन के प्यार के गाने सुनायी दे रहे हैं। मेरे भैया मेरे अनमोल रतन, बहना ने भाई की कलाई से प्यार बांधा है प्यार नहीं सारा संसार बांधा है। गीत सुनकर आंखों में आंखों में आंसू तैर गये। अफसोस इस बात का है कि अब रिश्तों में वो गरमाहट नहीं रह गयी है। सब के सब लोग अपनी अपनी दुनिया मस्त और व्यस्त हो गये हैं। लेकिन मासूम बच्चों में सब राखी को लेकर काफी उत्साहित हैं। आज वो क्या पहनेंगे और क्या क्या खाने में बनना चाहिये। आज वो क्या पहनेंगे और क्या क्या खाने में बनना चाहिये। लेकिन अब बड़ों में उत्साह नजर नहीं आता है। हिन्दू पर्व है इसलिये दिखाने को खानापूरी तो करनी ही होगी। वो पहले वाला जोश और खुशी रह नहीं गयी है। राखी का त्यौहार भी रस्म अदायगी भर रह गया है। अब त्यौहारों में भी धन संपदा जुड़ गया है। अगर बहन या भाई संपन्न हैं तो उनके हिसाब से तैयारियां की जाती हैं। अगर भाई उतना संपन्न नहीं है तो सिर्फ साधारण ढंग से उसके लिये सब निपटा दिया जाता है। उसके लिये पनीर की सब्जी या कोल्ड्रिक की जरूरत नहीं होती है कौन अपने घर पनीर की सब्जी खाता है इसके लिये बैंगन की सूखी सब्जी और दही का रायता ही बहुत है। वहीं बहन बहुत पैसे वाली नहीं है और भाई अधिक संपन्न है तो वो भी घर की मुर्गी दाल बराबर हो जाती है। उसके लिये भी पत्नी कुछ खास करने के बजाये अपनी ही पुरानी साड़ियों में से ही देने का विचार बना लेती है। कुल मिला कर रिश्तों में अब संपन्नता ने काई जमा ​दी है। सिर्फ रस्म अदायेगी रह गयी है। पहले जैसी रिश्तों में खुश्बू नहीं रह गयी है।आज मेरा मन काफी उदास है। हो भी क्यों न आज फिर रक्षा बंधन का त्यौहार है। फिर उसकी कलाई सूनी रहेगी। कोई उसे राखी नहीं बांधने नहीं आयेगा। यह सिलसिला पिछले आठ दस साल से चल रहा है। आज दिल्ली आये उसे लगभग दस साल होने को हैं। इस बीच उसकी कलाइयां व माथा सूना रहता है। रक्षा बंधन और भइया दूज पर मन काफी उदास हो जाता है। ये दिन भी उसके लिये सामान्य दिनों की तरह लगने लगे है। किसी भी पर्व का उसके लिये कोई महत्व नहीं रह गया है। लाइफ में कोई उल्लास और खुशी नहीं रह गयी है।

रक्षा बंधन पर घर खुशियों से भर जाता था हर तरफ चहकते खिलखिलाती बहनें
एक राखी ही ऐसा भारतीय पर्व है जो भाई बहन के प्यार में खुश्बू महकाता है

सुबह से ही घर में पकवानों की खुश्बू आने लगती
मैं उन दिनों की याद करता हूं जब 15 साल का था। राखी और भइया दूज के लिये सुबह से ही घर में मां काफी व्यस्त हो जाती थी। सुबह से ही घर में पकवानों की खुश्बू आने लगती थी। लगता था कि घर में आने वालों के लिये मां स्वागत सत्कार में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। उन दिनों चाचा और बुआ की लड़कियां सज धज कर रक्षा बंधन मनाने के लिये घर पर आती थी। हम चारों भाइयों की कलाइयों में बारी बारी से राखी बांधती और मिठाइयां खिलाती थीं। उस समय हम सब का मन इतना खुश रहता था कि उसका शब्दों में बताया नहीं जा सकता था। सभी भाइयों की कलाइयों पर कम से कम आठ दस राखी बंधती थीं। दोनों बुआऐं पापा के साथ हम सभी भाइयों को भी राखी बांधती थीं। इस प्रकार बहनों के साथ दोस्तों की बहनें भी इस त्यौहार पर घर आती थीं। इस प्रकार घर में हंसी खुशी और उल्लास का माहौल बन जाता था। इतना ही नहीं हम सभी इस पर्व का बेसब्री से इंतजार करते थे।
लेकिन आज हम सभी अपनी अपनी जिंदगी में इतने बिजी हो गये हैं कि सारी दुनिया सोशल मीडिया में समा गयी है। कुछ भी कहना हो फेसबुक और व्हाट्सअप पर स्माइली और मिठाइयों की फोटो पोस्ट करने तक सीमित हो गया है। कुछ सालों पहले लोग बड़े त्यौहारों पर फोन पर बात कर लेते थे। आज हालात इतने बुरे हो गये हैं कि किसी का फोन भी आता है यह लगता है कि कोई बुरी खबर तो नहीं है। लाइफ इतनी मशीनी हो गयी है कि भावनाओं के लिये किसी के पास न तो समय है और न ही जरूरत। हर मुश्किल का हल पैसे से किया जाने लगा है। लेकिन वास्तविकता तो यह है कि आज के समय में लोगों को पैसों की नहीं भावनाओं की जरूरत है, हर कोई अपने प्रति समय और लगाव चाहता है पेट तो जानवर भी पाल लेते हैं।

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here