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लेकिन बात समझाने के लिए फ्रांस की क्रांति को समझना पड़ेगा। जो हर इंजीनियर, सीए, मैनेजर, दुकानदार और पुजारी को समझना चाहिए। फ्रेंच रिवोल्ल्यूशन, मानवीय इतिहास का एक टर्निंग प्वाइंट है, जिसने हमारी मौजूदा सभ्यता को शेप किया है। इसलिए हर देश मे, आज तक इसे पढा, पढाया और बांचा जाता है। आदि मानव से लेकर सत्रहवी सदी तक, हमेशा आम आदमी .. किसी राजा की प्रजा रहा। पहली बार सत्रहवी शताब्दी मे फ्रांस के लोगों ने कहा- उन्हे भी गरिमा से जीने का अधिकार है। राजा को अपने कुकर्म, अपने खर्च काबू रखने चाहिए। अगर आपको टैक्स चाहिए, तो नागरिकों को भी कुछ अधिकार देने होगे।

जीवन का अधिकार , कि राजा आपको जब चाहे मार न डाले। न्याय का अधिकार, राजा जब चाहे जेल न भेज दे। राइट टू प्रोपर्टी- राजा आपकी संपत्ति न लूट ले। बोलने का अधिकार हो, कहने वाले की जुबान न खीच ली जाए। आप अपनी मर्जी के देवता की पूजा कर सकें। राजा का दखल न हो। कोई आपका शोषण न कर सके, राजा इसका इंतज़ाम रखे। ये नागरिक के फंडामेण्डल राइट्स थे। जो पहली बार डिफाइन किये गए।
सदियों से राजा की मर्जी ही कानून
राजा को मंजूर न था। सदियों से राजा की मर्जी ही कानून थी। सृष्टि के आरंभ से वो सब नियमों से उपर था, देवतुल्य था। जिसकी चाहे बीवी उठवा ले, जिसे चाहे फांसी टांग दे। सब उसका अधिकार था। इतिहास मे तो आज तक सिर्फ राजा के अधिकार की बात हुई थे। प्रजा के अधिकार भला क्या होते है। उसने इस नई चीज को नकार दिया। तो फ्रांस की जनता चढ बैठी। तख्तो ताज उछाल दिया। राजा का सर कलम कर उसपे फ्रेंच रिपब्लिक बनाया। जहां जनता का शासन था।

नागरिक के अधिकार भी उतने ही जरूरी
वहां सरकार के अधिकार तो थे, पर नागरिक के अधिकार भी उतने ही जरूरी थे। यह एक इतिहास पलटने का क्षण था। समाज को पलटने का भी …लिबर्टी, इक्वलिटी, फ्रेटर्निटी, जस्टिस – फ्रेंच रिवोल्यूशन से निकले ये शब्द पूरी दुनिया की आजाद सरकारो का एंथम है। आजादी, समानता, भाइचारा, न्याय हमारे संविधान के पहले पन्ने पर उद्येशिका मे लिखे है। ये आजाद भारत मे आजादी का उद्घोष था। आजादी सिर्फ अंग्रेजो से नही। मुगलो से नहीं। हमारी रवायतों के पिंजरे से। इतिहास की शुरूआत से चले आ रहे फ्यूडल सिस्टम से, सम्राटों, महाराजाधिराजों, राजे रजवाड़ों और उनके चंगुओं मंगुओं से। आजादी, संंविधान में लिखे वह फंडामेण्डल राइट्स ही हैं। अब चुनी हुई सरकार को अपने कुकर्म, खर्च काबू रखने होगे। चाहिए। अगर टैक्स चाहिए, तो नागरिकों के अधिकार बचाने होगे। जीवन का अधिकार-कि सरकार आपको जब चाहे मार न दे।
न्याय का अधिकार– जब चाहे जेल न भेज दे। संपत्ति न लूट ले। आपको बोलने का अधिकार हो, आप अपने देवता की पूजा कर सके, सरकार का दखल न हो। आपका कोई शोषण न करे, यह निर्वाचित सरकार को सुनिश्चिित करना है। ये जो हिंदुत्व, चाणक्य, चंद्रगुप्त, पृथ्वीराज और शिवाजी और श्रीराम का नाम लेकर आपके गले उतारते है, वो गर्व दरअसल भांग है। वो थ्योरी कहती है कि फ्यूडल राजा के दिन बढिया थे। उसका दौर बढिया था। हम तब सोने की चिडिया थे, हीरे का कौआ थे, विश्वगुरू थे, वगैरह। वो सोना-हीरा राजा और जमींदार के घर मे भरा था साहब। ब्राह्मण तो हर कथा मे गरीब था। ठाकुर, क्षत्री, तेली, दलित तो फिर छोड़ ही दीजिए।
सब जना हाथ जोड़े आराधना करो, और कृपा की उम्मीद करो
याद रहे, श्रीराम से शिवाजी तक, आम आदमी के कोई सिविल राइट न थे। न वूमन्स राइट न थे, न जात पांत को बराबर हक। सब जना हाथ जोड़े आराधना करो, और कृपा की उम्मीद करो। मिले ठीक, न मिला तो हरिइच्छा। राम राज और शिवाजी तो सदियो मे इक्का दुक्का आते। बाकी तो जालिम सिह और अय्याश कुमार ही गद्दी पे लोटते रहे। उनकी हाथजोड़ी, कृपाकांक्षा करते रहो.. 5 किलो राशन पाओ।
क्या ऐसा गर्वीला जमाना चाहिए आपको ??
सोचकर बताइये।
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400 पार होने पर संविधान बदलेगा।यह बोलने वाले को भले चुप करा दिया गया हो। लेकिन यह तो RSS में जनरल कन्सेसस है। ये कब से बदलने को तैयार बैठे है। और जब बदलेंगे…तो आपके अधिकार बढेगे नही।
घटेगे … !!!याद रहे। संपूर्ण संविधान मे आपके काम का कुछ नहीं।सिर्फ मूल अधिकार ही आपका है। बाकी तो सब सरकार का – राष्ट्रपति के अधिकार, मंत्रीपरिषद के अधिकार, कोर्ट के अधिकार। बंगला कोठी, सैलरी।
भला उनके अधिकार से आपको क्या मिलना है ??
आपका है फण्डामेटल राइट।अच्छी सरकार, अच्छा नेता, जो जनता का ख्याल रखे. वो अपने अधिकार काटकर जनता को देता है। छोटा जिगर, छोटा दिल, अपनी ताकत को जनता के अधिकार काटकर ताकत बढाता है। आफकोर्स, देश हित मे, देश सुधारने को लिए बढाता है। लेकिन ऐसे लोग पास्ट मे जीते है। खुद को रोमन एम्प्ररर, सम्राट, हरदिल अजीज मसीहा समझते है। इतनी ताकत ले लेते है कि जनता के इंस्टीट्यूशन के लिए कुछ नही बचता। पूरा सिस्टम उपर की ओर मुह ताकने वाला बनकर रह जाता है। नाकारा और यूजलेस हो जाता है। ऐसे लोग, सबकी ताकत छीन-छीन, अपनी कुर्सी के नीचे गाड़ते रहते है। एक दिन जब ईश्वर के पास चले जाते है। तो पीछे साम्राज्य, नेशन, देश, सल्तनत भहरा जाती है। भारत और विश्व का इतिहास (हां वही, वामपंथी वाला), जिन्होने पढा है, वो इस बात को समझते है। विकसित और सुलझे हुए लोग इस बात को समझते है। इसलिए कहा –
ये बयान… एक उलझी हुई, अविकसित सोच का ननूना है।
— रॉबिन चौधरी
स्वतंत्र पत्रकार व लेखक