Vector Illustration of three kids flying kites in the park

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बात उन दिनों की है
हमारा परिवार भी अजीबो गरीब था। पापा मम्मी और बिल्लू सब के सब यूनिक थे। वैसे तो बहुतेरे किस्से हैं लेकिन कुछ किस्से ऐसे हैं जिनको याद रखा जा सकता है। खास तौर से बिल्लू से जुड़े हुए। जैसा कि पिछले एपिसोड में मैंने बताया कि बिल्लू को पंतंगबाजी का बड़ा शौक था। वैसे तो उसे आशितबाजी का भी बड़ा शौक था। दीपावली पर वो पटाखों व लक्ष्मी गणेश की दुकान लगा लिया करता था। घर वाले भी सोचते थे कि चलो इससे कुछ आमदनी हो जायेगी। लेकिन उसके चक्कर में हमारी ऐसी तैसी हो जाती थी। जब सब बच्चे घूम रहे होते थे हमें बिल्लू दुकान पर बैठा कर चला जाता था। हम मन मसोस कर रह जाते। मेरा मन तो दुकानदारी में बिल्कुल नहीं लगता था।

वैसे बात चली रही थी पतंगबाजी की। बिल्लू उसमें काफी मशहूर था। अधिकतर वो दूसरों की पतंग काट देता था। इसके साथ ही वो पतंग लूटने में भी काफी उस्ताद था। बस यही एक बात थी जो पापा को पसंद नहीं थी। उनको लग्घी लिये पतंग लूटते बच्चे बिल्कुल भी पसंद नहीं थे। लेकिन जो जोश और उत्साह पतंग लूटने में दिखता था वो खरीद कर पतंग उड़ाने मे नही ंथा। पतंग का लूट कर लाना वैसा ही लगता था जैसे कोई जंग जीत कर लौटे हों। वो विजयी भाव चेहरे से झलकता था। हो भी क्यों न सात आठ लड़कों के बीच में पतंग पर कब्जा पाना कोई युद्ध जीतने से कम नहीं होता था।
सबसे पहले तो पतंग हर किसी के बस की बात नहीं जो उसे आसमान की सैर करा दे। उसकी भी टैक्नीक होती है जो हर किसी के पास नहीं होती थी। बिल्लू उस्ताद पतंग को आसमान में टांगने के मामले में पारंगत थे। हम तो बस चरखी पकड़ते या पतंग को छुड़इयां देने तक सीमित थे। अक्सर पतंग लूटते लूटते अक्सर चोटें लग जाती थीं। लेकिन उनको कभी घर पर नहीं दिखाते नही ंतो पापा हाथ पैर और तोड़ कर रख देते। पैदल चलते समय हमारी निगाहें आसमान पर ही टिकी रहती थीं।

हम लोग यही सोचते थे कि हमेशा शाम बनी रहे। आसमान में पतंगों का संसार बना रहे। गर्मियों के आने से हम लोग अन्य खेल में कम पतंग उड़ाने के बारे में ज्यादा सोचते थे। लेकिन सावन के माह में विशेष रूप पतंग उड़ाने का मौसम माना जाता है। अब भी लोग राखी और गुड़िया के दिन सुबह से ही सभी लड़के पतंगबाजी के मैदान में पहुंच जाते और देर शाम तक पतंग उड़ाने में व्यस्त रहते। दिन भर वो काटा और ये काटा के जोशीले नारों से इलाका गूंजता रहता। उस दिन तो पापा भी पतंगबाजी में हाथ साफ करते थे। उस दिन हम लोगों को पापा पतंग उड़ाने से नहीं रोकते थे। जब कभी भूख सताती तो घर पहुंचते ममी से भूख लगने कीे बात बताते तो वो हाथों में आलू की कचौड़ियां थमा देती और हम लोग उन्हें रोल कर के खाते खाते मेदान की ओर दौड़ लगा देते। वो दिन आज याद आते हैं तो चेहरे पे मुस्कान आ जाती है। उस समय हमारे घर की लड़कियां भी पतंग उड़ाने का मजा लेने से नहीं चूकती थी। उस समय पांच पैसे की पतंग आ जाती थी। पांच पैसे की पतंग और पांच पैसे का मंझा और सद्दी। आज कल रील आती है उस समय सद्दी आती थी। उस समय दस पंद्रह पैसे भी बड़ी मुश्किल से जुट पाते थे। सद्दी का गुल्ला बना कर रख लिया जाता था। पतंग के पंेच लड़ाने के लिये मंझा भी जरूरी होता था।

एक दिन की बात थी कि बिल्लू पीली बिल्डिंग वाले पार्क के पास पतंग उड़ाने गया हुआ था। उस वक्त पापा कहीं किसी काम से गये हुए थे। उनके जल्दी आने की उममीद कम थी। इसलिये बिल्लू बेफिक्र हो कर पतंग उड़ा रहा था। पीली बिल्डिंग में लड़कियों की पढ़ाई होती थी। पार्क काफी बड़ा था जिसके चारो ओर पक्की दीवार बनी हुई जिसे लड़कों ने कुछ जगहों से तोड़ लिया था वहीं से लड़के घुस जाते और वहां क्रिकेट और पतंगबाजी करते थे। पार्क में जंगली झाड़ियों के अलावा अन्य पेड़ लग जाते थे। वहीं पर बिल्लू पतंग तानने में लगा हुआ था। पतंग काफी ऊंचाई पर थी। पास ही एक दूसरी पतंग बराबरी पर आ गयी। बिल्लूू ने अब उसे काटने का मन बना लिया। वो अपनी पतंग को उस पतंग के काफी करीब ले गया। वो उस पतंग को तेज घसीट कर काटने की फिराक में था। लेकिन दूसरी ओर जो पतंग उड़ा रहा था वो भी कम शातिर नहीं था। उसने बिल्लू की मंशा को भांप लिया और अपनी पतंग को दूसरी ओर ले गया। अभी दोनों के बीच दांव पेंच चल रहा था कि बिल्लू ने देखा कि पापा साइकिल से उसी ओर चले आ रहे थे। ये बात और थी कि पापा ने उसे पार्क में पतंग उड़ाते हुए नहीं देखा था।

अब बिल्लू को यह समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। आस पास कोई जानने वाला लड़का भी नहीं था जिसे वो पतंग थमा देता। पतंग इतनी ऊंचाई पर थी कि इतनी जल्दी उतार सके। वो समझ गया कि कुछ न कुछ तो करना ही होगा। नही ंतो पापा की पिटाई से बचना नामुकिन है। काफी हद तक पतंग को उसने उतार लिया लेकिन अभी भी वो काफी ऊंचाई पर थी। अब उसने पतंग का लोभ छोड़ दिया और डोर को हाथों ढील दिया। पतंग आसमान से कटी पतंग की तरह इधर उधर डोलने लगी। इसके साथ बिल्लू ने जल्दी से झाड़ियों में जंप लगा दी।

जिस समय बिल्लू झाड़ियों में जंप लगा रहा था उसी समय एक बूढ़ा आदमी उस पर निगाहें रख रहा था। बिल्लू के छलांग लगाता देख वो तेजी से बिल्लू की ओर लपका। इधर बिल्लू इस नयी आफत के लिये बिल्कुल तैयार नहीं था। वो झाड़ियों में सिर छुपाने की कोशिश में था। बूढ़े ने पास आ कर उसका चेहरा ऊपर कर यह जानने की कोशिश की कि उसे अचानक क्या हुआ जो एकदम से झाड़ियों में गिर पड़ा। अब तक वहां काफी लोग जमा हो गये। ये देख कर पापा भी वहां आ गये। अचानक उनकी निगाहें बिल्लू पर पड़ गयीं। अब उनको पूरा माजरा समझ में आ गया। उन्होंने बिल्लू से कहा चलो बेटा तुम्हारी बीमारी मुझे समझ आ गयी है। घर पर चलो वहीं उसका इलाज हो जायेगा। अब बिल्लू ने समझ लिया कि बचने की कोई सूरत नहीं पिटाई तो होना तय था।

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