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जैसे तैसे हमारी बस कानपुर के एक छोटे से गांव में किनारे जा लगी। उम्मीद के हिसाब से वहां कुछ भी नहीं था। जो सोचा था वैसा वहां कुछ भी नहीं नजर आ रहा था। रात हो चुकी थी गांव में शायद बिजली भी नहीं थी। अधिकतर घर मिट्टी के थे जिनमे मिटटी के दिये व ढिबरी जल रही थीं। कहीं कहीं तेल के लैंप व लालटेन भी घरों में टिमटिमा रहे थे। ये देख कर मेरे और देवेंद्र के जोश का गुब्बारा फूट गया। क्या क्या सोच कर बारात करने आये थे सारे अरमानों पर पानी फिर गया। सोचा था गांव की शादी है वहां की सीधी सादी लड़कियां पर अपना प्रभाव आसानी से डाल सकेंगे। लेकिन रात के अंधेरे में रास्ता तो ढंग से दिख नहीं रहा था। लड़कियां अंधेरे में क्या खाक नजर आतीं। कच्चे रास्ते होने की वजह से कपड़ों और चेहरों पर धूल अट गयी थी। कहते हैं कि गुजरा गवाह और लौटा बराती किसी काम का नहीं होता है।
जनवासा था कि भूतों की सराय
उधर दोस्त रवि का कोई अता पता नहीं था। हां कुछ देर के लिये वहां दिखा जहां बारात टिकायी गयी थी। कुछ देर के लिये दिखा था लेकिन फिर जाने कहां नदारद हो गया पता नहीं चला। जनवासे के नाम पर एक मिट्टी का कच्चा मकान था। वहां दो चार बांस की खाटें बिछी थी। ऐसे हुआ था बारातियों का स्वागत। जो लोग पीने के शौकीन थे वो लोग देसी शराब के ठेके पर पहुंच गये। वहीं हमारा दोस्त शौकीनो की सेवा लगा हुआ था। लोग मिट्टी के सकोरे में कच्ची शराब का आनंद ले रहे थे। ऐसे में माहौल में हम दोनों कभी शामिल नहीं हुए थे इसलिये एडजस्ट नहीं हो पा रहे थे। लोग बाग कच्ची पीकर ही मस्त हो रहे थे। बारात में नाचने के पहले लोगों को मेंटली प्रिपेअर होना होता है शायद इसी लिये लोग टल्ली होना पसंद करते हैं। कुछ लोग पी कम रहे थे। नौटंकी ज्यादा कर रहे थे। अंगूर की बेटी ने अब अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था। बस अब बारातियों ने अपना रंग ढंग दिखाना शुरू कर दिया था। बैंड बाजे की धुन पर लोग नाचने का प्रयास करने लगे।
दारुबाजों का नाच और फिल्मी गाने
बारात जब लड़की वालों के घर जाने को तैयार हुई तो कुछ लोग शहनाई व ढोल बजाते हुए लोग वहां दिखे। उनके साथ कुछ लोग पेट्रोमैक्स कंघे पर रखे जमा हो गये। उन्हीं के साथ बाराती भी चलने लगे। ऐसी बारात का अनुभव हम दोनों को कभी नहीं हुआ था। हम दोनों ही उन पलांे को कोस रहे थे जब हमने बाराती बनने का फैसला किया था। घर वालों ने कितना मना किया था कि ऐसी जगह मत जाओ जहां की व्यवस्था के बारे में कोई जानकारी न हो। लेकिन हमारी तो अक्ल पर बारात करने का पर्दा पड़ गया था। लेकिन अब पछताय का होत है जब चिड़िया चुग गयी खेत। गिर पड़े तो हर हर गंगे कहना ही पड़ेगा। मरते क्या न करते बारात में शामिल हुए।
घराती और बराती में कोई अंतर नहीं दिखा
अब बारात के प्रति कोई जोश नहीं रह गया था। किसी तरह फर्ज अदायेगी की जा रही थी। रात के नौ साढ़े बज रहे थे भूख के मारे हालत खस्ता हो रही थी। अब तक रवि का कोई अता पता नहीं था। उस पर गुस्सा करने का कोई मतलब नहीं था। लगभग दस बजे बारात लड़की के घर पर पहुंच ही गयी। सारे मूड का सत्यानाश हो गया था। हम दोनों ने कसम खाली कि आगे से किसी भी ऐसी शादी में नहीं जायेंगे। आज तक लगभग 40 साल बीत गये ऐसी शादी में नहीं गया। वैसे भी अब किसी शादी विवाह में जाने का मन ही नही करता। इस शादी ने तो कसम से इतिहास रच दिया था।
दूल्हे को तो ससुराल वाले अंदर ले गये। बराती खाने के लिये टेंट के भीतर घुस गये। खाने में थीं तो पूड़ी सब्जी लेकिन ठेठ गांव के स्टाइल की। पूड़ियां काफी समय पहले निकाली गयी थी। इस लिये एंेठ गयी थी। लेकिन कहते हैं कि भूख में किवाड़ पापड़ लगते हैं। हम लोगों की हालत ऐसी नहीं थी कि ताजी पूड़ियों का इंतजार करते किसी तरह पेट भरने के लिये खाना ढकेला। भूख के कारण हम लोगों को अैर कुछ सूझ नहीं रहा था। इसी बीच रवि के दूर से ही दर्शन हुए उसने इशारों से खाना खाने को कहा। हम लोगों ने भी इशारों में कहा कि हम खाना खा रहे हैं।
लौट के बुद्धू घर को आये
अब तो इस बात का इंतजार था कि कब दुल्हन विदा हो और हम लोग वापस अपने घर पहुंचें। थकान के मारे बदन बुरी तरह टूट रहा था। म नही मन हम दोनों रवि को कोस रहे थे। उसने एक बार भी हमारे हाल चाल नहीं पूझे। हमें शक था कि उसे भी ससुराल में किसी ने पूछा होगा। दो चार देसी शराब के पैग लगा कर वो कहीं उल्टा पड़ा रहा होगा। सुबह तक फेरों की रस्म हुई। यह सुनने में आया कि दो एक घंटे बाद दुल्हन विदा होगी।
कैमरे का भी हुआ प्रदर्शन
कुछ लोगों ने यह तय किया कि आये हैं तो गांव और आम के बाग घूम लिया जाये। वैसे भी हमें समय काटना था ऐसे में समय कटता भी नहीं है। हम दोनों लोेगों ने किया कि क्यों न हम लोग भी गांव घूमें और आम के बाग का नजारा देखें। इस बीच मैंने अपना कैमरा भी कंधे पर टांग लिया। लोग इसी बहाने हमें देखने को मजबूर हो रहे थे। राहत तो तब मिली जब हम लोगों को हैंड पंप और कुएं पर पानी भरती औरतें और युवतियां नजर आयीं। चलो कुछ तो हरियाली के दर्शन हुए। मैंने शान दिखाते हुए कैमरा कंधे से उतार कर फोटो खींचने का नाटक किया। क्यों कि उन दिनो कैमरे में रील पड़ती थी और फ्लैश के लिये बैटरी भी जरूरी होता था। लेकिन हमने ऐसा शो किया कि कैमरा और रील दोनों ओके हैं। लड़कियां और औरतें भी शर्माते हुए फोटो खिंचाने का लोभ संवरण नहीं रख सकीं। हम जानते थे कि कितना भी पोज दे लो फोटो तो किसी की आनी नहीं थी। लेकिन हम ऐसा शो कर रहे थे कि जैसे हम लोग बहुम बड़े प्रोफेशनल कैमरामैन हैं। इतने में सुनायी पड़़ा कि दुल्हन विदा हो गयी है। बस विदायी को तैयार हो गयी है। जल्दी से हम लोग भागते हुए बस के पास पहुंचने चाह रहे थे। हम दोनों ने बस के पास पहुंच कर ही चैन ली। गर्मी के दिन थे। पसीने के मारे बुरा हाल हो रहा था। बस यही इच्छा थी कि कब बस चले और गर्मी से निजात मिले। एक दो घंटों के बाद बस ने कानपुर वापसी के लिये दौड़ लगा। ये तय था कि कानपुर पहुंचने में दो तीन घंटे लगेंगे। हम दोनों ने बस की कोने की दो सीटों पर कब्जा जमाया। रात भर जगने के कारण हमारी नींद पूरी नहीं हुई थी। इसलिये जैसे ही बस चली हम लोगों को नींद ने घेर लिया और हम घोड़े बेच कर सो गये। आंखे तब खुलीं जब शोर हुआ कि चलो बारहदेवी पर पहुंच गये हैं तुरंत बस से उतरना है।