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जनता ही जनार्दन है!
आखिर कार पीएम मोदी को जनता के दर्शनों की जरूरत हो चली है। आज कल वो दक्षिण भारत के कोने कोने में मंदिर और मठों में मत्था टेक रहे हैं। इस समय भी वो जनता के सामने कांग्रेस सरकार के घोटालों का जिक्र करने से नहीं चूक रहे हैं। जबकि पिछले दस सालों से उनकी सरकार केन्द्र में है। वो कांग्रेस के अलावा डीएमके को भी पानी पानी पी कर कोस रहे है। वो जनता को बता रहे हैं कि डीएमके और कांग्रेस दोनों ही दल परिवारवादी हैं। नरेंद्र मोदी का प्रयास है कि किसी तरह वो तीसरी बार देश के पीएम बन जायें। इसके लिये उन्होंने देश की इकोनॉमी को भी दांव पर लगा दिया है। पिछले पांच सालों में उन्होंने जनहित में क्या किया इसकी बातें वो न करके विपक्ष की कमियों का बखान करते हैं। वो आने वाले 2047 की बात करते हैं कि न नौ मन होगा न राधा नाचेंगी। वर्तमान में देश की आम जनता किस हालत में उसकी उन्हें चिंता नहीं है। जनता की थाली से सामान्य व मूलभूत खाने की वस्तुएं गायब हो रही हैं। लेकिन वो पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था की कोरी गप्पें हांक रहे हैं। जनसमस्याओं के बारे न तो पीएम को चिंता है और न ही उनकी सरकार को। उनके साथ देश की मुख्यधारा की मीडिया भी बेशरमी से खड़ी है।

निकम्मी होते मेन मीडिया हाउसेस
मेन मीडिया में सिर्फ सत्ता के फायदे के लिये डिबेट और समाचारों को दिखाया जा रहा है न कि जनसमस्याओं के बारे में बताया जा रहा है। सरकारी योजनाओं का भोंपू बन कर रह गया है देश का मेन स्ट्रीम मीडिया। मेन मीडिया डिबेट के दौरान एंकर पार्टी प्रवक्ता बन कर विपक्षी नेताओं को घेरने और अपमानित करने का काम कर रहा है। जनता के सामने सच को न लाने और सरकार की तारीफों में मीडिया जुटा हुआ। पिछले दस सालों में जनता को भी समझ में आने लगा है कि सरकार प्रचंड बहुमत होने का नाजायज फायदा उठाते हुए विपक्ष को जांच एजेंसियों का उत्पीड़न कर रही है। क्या आने वाले आम चुनाव में जनता सच को झुठलाने वाले वादों और दावोंं के झांसे में आयेगी या उनके विकल्प को मौका देना चाहेगी।

इन भयानक वारदातों को भुला देगी जनता!
पिछले पांच सालों में देश ने ऐसी वारदातों को देखा है। उसमें मणिपुर की हृदयविदारक और भयानक यौन शोषण् और अमानवीय यातना हो, देश क बहादुर और मान सम्मान बढ़ाने वाली बहन बेटियां होंं, पुलवामा कांड में शहीद होने वाले 40 जवान हों। मोरबी कांड हो या किसान आंदोलन हो। बेरोजगार युवकों पर पुलसिया दमन हौ। बीजेपी सांसद ब्रजभूषण शरण की काली करतूतें हो। बीजेपी के नेताओं का कारनामा हो। देश की जनता की याददाश्त इतनी कमजोर है कि इन सब दिल दुखाने वाली यादों को भूल जायेगी। इसके अलावा देश में सिर पर सवार होती महंगाई हो या खेती किसानी में बढ़ती दुश्वारियां हों जिसके चलते किसान आत्म हत्या करने पर मजबूर हैं। लेकिन सरकार की इन समस्याओं के प्रति उदासीनता हो। ये सब बातें भुलाई नहीं जा सकती हैं। अगर अब भी जनता नहीं चेती तो यह समझ ले कि लोकसभा का चुनाव आखिरी चुनाव होगा। लोकतंत्र की हत्या कर दी जायेगी।
सिर्फ झूठे वादों और प्रचार का सहारा
देश के प्रधानमंत्री आजकल चुनावी प्रचार में सक्रिय हैं। ये बात तो तय है कि जिस सक्रियता से नरेंद्र मोदी और भाजपा चौबीसोंं घंटे चुनावी मोड में रहते हैं उसमें उनका कोई मुकाबला नहीं कर सकता है। पार्षद का चुनाव हो या ग्राम पंचायत का चेहरा प्रधानमंत्री मोदी का ही होता है। इसका मतलब साफ है कि नयी बीजेपी में सिर्फ एक चेहरा बचा है जो किसी भी चुनाव की गारंटी के रूप में सामने आता है। ये भी साफ हो गया है कि भाजपा में अब कोई नेता नहीं सब कार्यकर्ता हैं। किसी का कोई वजूद नहीं है मोदी शाह ने जो कह दिया वही ब्रह्म वाक्य होता है किसी की हिम्मत नहीं जो उसके खिलाफ आवाज उठा सके।

उद्योगपतियों का लाखों करोड का लोन माफ
गजब देश की व्यवस्था है कि किसान का 50 हजार का कर्ज न वापस होने पर उनके घर की कुर्की कर दी जाती है। उसके घर पर पुलिस और बैंक के अफसर पहुंच जाते है। वहीं दूसरी ओर लाखों करोड़ों का लोन लेकर डिफाल्टर घोषित हो कर विदेश भागन जाते हैं उन पर सरकार चुप्पी साध लेती है। उनका कर्ज सरकार बट्टे खाते में डाल देती है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 सालों में अब तक 17 लाख करोड़ रुपये सरकार ने बट्टे खाते में डाले हैं। वहीं किसालों का कुल कर्जा लगभग 16 लाख है उसे वसूलने का बैंक और पुलिस किसानों के घरों को कुर्क कराने पहुंच जाती है। विपक्ष का आरोप है कि मोदी सरकार देश के गरीब किसानों और मजलूम जनता के बारे में नहीं सोचती है। मोदी सरकार में देश के उद्योगपतियों की चल अचल संपत्ति में जबरदस्त उछाल देखा गया है। गरीब और गरीब और अमीर और अमीर हो गये हैं।