#My Views# My blogs# Memoories # Author’s page# Litratures# Storyteller# Lucknow Journalism# Indian Festivals# Shri Krishna Janmashtmi#
उन दिनों मैं सातवें या आठवें क्लास में पढ़ता था। सावन के महीने में काफी पर्व पड़ते थे। उनमें रक्षा बंधन गुड़िया और श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का विशेष महत्व होता था। महत्व तो आज भी लेकिन वो उत्साह और लगन नहीं रह गयी है। जब से देश में सूचना क्रांति हुई तब से लोगों में पर्वों के प्रति वो लगाव नहीं दिखता है। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की एक दो माह पहले से तैयारियां शुरू हो जाती थी। लेकिन एक है तब बच्चों के हाथ में मोबाइल नहीं होता था। हर बच्चा घर के बाहर निकलने को बेताब रहता था। जन्माष्टमी के लिये घर की महिलाएं दो एक माह पहले खरबूजे की बीज छील कर रखती ताकि जन्माष्टमी उसकी खोआ चाशनी मिलाकर बर्फी बनायी जाये। लेकिन आज कल कोई भी इस तरह के खटराग में पड़ना नहीं चाहता है। ज्यादा हुआ तो बाजार से जा कर छिले हुए बीज खरीद लिये या बनी बनायी बर्फी ही खरीद लाते हैं। समय और मेहनत की दोनों की बचत हो जाती है।
घर घर सजती थीं झांकिया
हमारे घर में तो कोई झांकी सजाने की अनुमति नहीं थी। लेकिन आस पास कई घरों में कृष्ण जी की झांकिया सजायी जाती थी। एक घर छोड़ दूसरे घर में झांकिया सजायी जाती थी। उनके घर में चार पांच बड़े बड़े बच्चे थे। वो घर पर ही झांकियां सजाने में आगे रहते थे। कमरे के एक जगह पर बुरादे को रंग कर, रंगोली बनायी जाती थी। झांकी सजाने में उर्मिला जीजी, अशोक विजय भैया और छाया मधु सभी खुशी खुशी मेहनत करती। उन दिनों झांकी में सजाने को झोंपड़ी, गाय, संतरी, जेल और तालाब बनाया जाता था। तालाब बनाने के लिये टब् का इस्तेमाल किया जाता था। उसी टब में स्टीमर चलाया जाता था। स्टीमर के अंदर एक जगह कपूर रखा जाता था उसे जलाते तो स्टीमर खुद ब खुद आगे चलता था। ये सब बाते उस समय बच्चों में रोमांच भर देती थी। जिस घर में झांकी सजायी जाती उसे विशेष दर्जा मिलता था।
कांच की शीशियों से सजती झांकी
हमारे ब्लॉक मे आर्यवंशी जी रहते थे उनके तीन चार लड़कियां और चार पांच लड़के थे। उनके यहां भी झांकी सजायी जाती थी। उनकी सबसे बड़ी लड़की लता जीजी थी उन्हें इन सब में काफी रुचि थी। उनसे छोटी ऊषा, सुधा और संघ्या थी। संध्या तो काफी छोटी थी। लेकिन लता, ऊषा और सुधा मिल कर सुंदर झांकी सजाती थीं। मुझे आज भी याद है कि उन्होंने इंजैक्शन की शीशियों को जोड़कर काफी सुंदर और अनोखी झांकी सजायी। उनकी इस झांकी को देखने काफी दूर दूर से आते थे। सबसे दिलचस्प बात यह थी कि इन दिनों घर से बाहर निकलने की छूट पापा से मिल जाती थी। हम लोगों को तो घूमने से मतलब होता था। मैं, बिल्लू और जीजी इसी बहाने बाहर खेल लेते थे।
झांकियां देखने को बेकरार रहते थे
जन्माष्टमी के दिन तो हम लोग आस पास के घरों में झांकी देखने तो जाते ही थे। सेंटर पार्क में भी श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का भव्य आयोजन होता था। उस समय वहां मोटर से चलने वाली झांकी सजायी जाती थी। उन दिनों ये सबसे आधुनिक तकनीक माना जाता था। आजकल तो किसी बच्चे को झांकियों का कोई रुझान नहीं है। न ही उन्हें इस बात से मतलब की झांकी भी सजायी जाती है। हम लोग दस पंद्र बच्चों की टोली जिसमें आधी लडकियां होती थी, सेंटर पार्क में झांकी देखने को जाते थे। वहां लाइन में लगकर श्रीकृष्ण की बाल लीला का चित्रण देख कर खुश हो जाते थे। उन दिनों हम बच्चों के लिये मनोरंजन के नाम पर यही कुछ मौके हुआ करते थे। आज तो जब मन चाहा घर से घूमने निकल जाते हैं बच्चे। मां बाप की अनुमति भी लेने की जरूरत नहीं समझते हैं।
फायर ब्रिगेड स्टेशन पर झांकी का आयोजन
श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर वैसे तो शहर भर में झांकियां सजायी जाती थीं। लेकिन फायर ब्रिगेड विभाग इस मौके पर विशेष रूप से झांकी का आयोजन करता था। यह माना जाता है कि श्री कृष्ण का जन्म कंस के कारावास में हुआ था। जन्म के समय सभी संतरी बेहोश हो गये थे। उसी समय वसुदेव श्रीकृष्ण को सूप में लेकर यमुना पार कर मथुरा नंद बाबा देवकी के घर पहुंच गये। इसी बात को मान कर फायर बिग्रेड के सिपाही जन्मोत्सव पर भव्य झांकी का आयोजन करते थे। अब करते हैं कि नहीं क्यों यह बात लगभग 45 साल पहले की बात है। लेकिन एक बात तो मानने की है कि जो मजा उस जमाने में हम बच्चों को आता था आज उसके लिये तरस जाता है।