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इंडिया का नाम विश्व के मानचित्र पर सुनहरे अक्षरों में अंकित
23 अगस्त का दिन भारत के लिये ऐतिहाकिस उपलब्धि का दिन रहा है। इस भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने इंडिया का नाम विश्व के मानचित्र पर सुनहरे अक्षरों में अंकित कर दिया। ये ऐसा अवसर है कि जिसे हर भारतीय और इंडिया में रहने वाला गर्व का अहसास कर रहा है। हर भारतीय का सीना चौड़ा व सिर गर्व से ऊंचा हो रहा है। ये दिन हमारे देश के लिये ऐतिहासिक वा गौरवाशाली बन गया है। इसमे हमारे वैज्ञानिकों का अतुलनीय योगदान है जिन्होंने रात दिन एक कर भारत को ऐतिहासिक पल जीने का मौका दिया है। भारत के चंद्रयान अभियान 3 ने ऐसा अनूठा और उत्कृष्ट कार्य किया जो आजतक किसी देश ने नहीं किया है। चंद्रयान 3 के तहत भारत चंद्रमा के दक्षिण हिस्से में पहुंचा और वहां सफलता पूर्वक लैंडिंग भी की है। भारत पहला देश बन गया जिसका चंद्रयान 3 चंद्रमा के दक्षिणी हिस्से में पहुंचा है। लेकिन हमे इस बात को भी याद रखना चाहिये कि ये सिर्फ आठ दस साल की मेहनत का फल नहीं है। इसरो की इस गौरवशाली यात्रा की शुरूआत आज से पचास साठ साल पहले हुई थी जिसकी पहल देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इसरो की स्थापना से की थी।

इसरो की स्थापना देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने की
इसरो यानि इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गनाइजेशन अंतरिक्ष विभाग की स्थापना देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल के अथक प्रयास से हुई थी। इसरो आजाद भारत की पहली अंतरिक्ष विभाग की भारत सरकार की एजेंसी है। इसका मुख्यालय बंगलुरू के श्रीहरि कोटा में है। नेहरू जी की वैज्ञानिक और प्रगतिशील सोच का परिणाम है। सोचिये अगर पेड़ ही नहीं होता तो फल कहां से मिलता। इसका मुख्य उद्देश्य जनहित और देश के प्रगतिशील कार्यक्रम व रिसर्च करना होता है।
प्रो.डा.विक्रम साराभाई की सोच है इसरो
1962 में इसरो की स्थापना भारत सरकार ने की थी तब इसका नाम इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च रखा गया था। इस विभाग की सोच महान और विख्यात वैज्ञानिक डा.विक्रम साराभाई की थी। उन्होंने 15 अगस्त 1969 में उन्होंने इस विभाग की कमान संभाली थी। उन्होंने इस विभाग की गतिविधियों में हारनेस स्पेस तकनीकि को भी जोड़ दिया था। 1972 में इसरो को विज्ञान मंत्रालय में सम्बद्ध कर दिया गया।
डॉ. विक्रम साराभाई ने 1962 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) बनाई। डॉ. साराभाई के नेतृत्व में INCOSPAR ने तिरुवनंतपुरम में थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (TERLS) की स्थापना की।
डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम, जो बाद में भारत के राष्ट्रपति बने, रॉकेट इंजीनियरों की शुरुआती टीम में से थे जिन्होंने इन्कोस्पर की स्थापना की थी। बाद में टेरिल्स का नाम विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र रखा गया।
पहला रॉकेट 21 नवंबर 1963 को यहीं से लॉन्च किया गया था। इसने भारतीय स्पेस प्रोग्राम की ऐतिहासिक शुरुआत की। इन्कोस्पार 15 अगस्त 1969 को इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) बन गया।
एपीजे कलाम समेत अनेक वैज्ञानिकों की मेहनत है इसरो
इसरो का प्रमुख उद्देश्य अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में प्रयोग व अनुसंधान राष्ट्रीय जनहित में करना है। इसरो ने कम्यूनिकेशन, टीवी, प्रचार प्रसार के क्षेत्र में काफी महत्वपूर्ण और उपयोगी रिसर्च और अनुसंधान किये है। इसके अलावा इसरो ने सैटेलाइट लांच करने वाले साधन पीएसएलवी और जीएसएलवी की खोज की है। भारत के अंतरिक्ष और विज्ञान के क्षेत्र में इस ऊंचाई तक पहुंचाने मेें डा. होमी जे भाभा, सतीश धवन, मेघनाद साहा शांति सवरूप भटनागर, देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे कलाम समेत अनेक वैज्ञानिकों ने अहम् भूमिका निभाई है।