
सौमित्र रॉय
लद्दाख में पेंगांग लेक से 200 किमी दूर एनगारी गुन्सा एयरपोर्ट पर चीन ने अपने लड़ाकू विमान तैनात कर दिए हैं। कुछ ओपन सोर्स इंटेलीजेंस विशेषज्ञों ने इसकी तस्वीरें ली हैं, जो दिखाती हैं कि चीन के लड़ाकू विमान रनवे पर उड़ने के लिए बिल्कुल तैयार खड़े हैं।
कल मैंने लद्दाख में भारत और चीन की सीमा पर बेहद खतरनाक हालात के बारे में बताया था। चीन के अखबार ग्लोबल टाइम्स ने एक बार फिर भारत के खिलाफ जहर उगला है। उसका कहना है कि भारत ने चीन के इलाके में सड़क बनाई है, जो कि पूरी तरह निराधार है। डार्बुक-शायलॉक-दौलतबेग ओल्डी रोड वास्तविक नियंत्रण रेखा के 10 किमी भीतर भारतीय क्षेत्र में है। भारत ने इस सड़क के बनने के बाद फीडर रोड बनाना शुरू कर दिया है।
असल में चीन अपने क्षेत्र में सड़क, कामचलाऊ हवाई पट्टी सब कुछ बना रहा है। लेकिन भारत के ढांचागत विकास पर उसे ऐतराज है। आर्मी चीफ एमएम नारावणे आज सेना के टॉप कमांडरों की दो दिवसीय बैठक में हिस्सा लेंगे। माना जा रहा है कि इस बैठक में संभावित जंग की रणनीतियों को अंतिम रूप दिया जाएगा।
1962 की जंग के बाद भारत और चीन के बीच बीते 28 साल में एक भी गोली नहीं चली है। लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि 62 की जंग भी गलवन घाटी की सीमा को लेकर ही हुई थी। 23 जुलाई 1962 को चीनी विदेश मंत्रालय ने बीजिंग में भारतीय दूतावास को गलवन नदी के दक्षिण में भारतीय सेना की घुसपैठ का आरोप लगाते हुए पहला पत्र दिया था। इसमें कहा गया था कि 19 जुलाई को भारतीय सेना ने चीनी फौज पर बेवजह फायरिंग की।
3 अगस्त को भारत ने पत्र का कड़ा जवाब दिया और कहा कि जिन तीन जगहों की बात चीन कर रहा है, वे सभी भारतीय इलाके हैं। लेकिन 4 अगस्त को चीन ने आरोप लगाया कि भारतीय फौज गलवन नदी के दक्षिण में सिंकियांग प्रांत में घुसी। 8 अगस्त को भारत ने इसका भी खंडन किया।
हफ्तों तक इस मामले में आरोप-प्रत्यारोप का अंत जंग के रूप में हुआ और नक्शे पर हमारा इलाका अक्साई चिन के रूप में वजूद में आया। चीन पहले गलवन घाटी के बहुत छोटे से इलाके को अपना बताता था। लेकिन 28 साल में चीन ने तीन बार अपना रुख बदला और अब वह समूची गलवन घाटी को अपना इलाका बताता है।
इसमें कोई शक नहीं कि कोरोना वायरस संक्रमण को फैलने से रोकने में चीन की लापरवाही रही है और इस मामले की वैश्विक जांच में भारत के शरीक होने को लेकर चीन की दादागीरी नाजायज है। बीते 28 साल में गलवन नदी में काफी पानी बह चुका है। भारत अब अपनी संप्रभुता को चुनौती देने के लिए तैयार है।
मुमकिन है चीन सीमित युद्ध के जरिए अपने पड़ोसी की ताकत आजमाना चाहता हो। अगर ऐसा हुआ तो भारत को भी बताना होगा कि हम 28 साल में बड़ी ताकत बनकर उभरे हैं।
शायद यही सीमित युद्ध अगले 10-15 साल तक दोनों देशों के रिश्तों को बराबरी और सम्मान के साथ देखने के काबिल बनाएगा, वरना चीन बातों से मानता नहीं दिख रहा है।