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यूपी में लोकसभा की दो सीटो पर मुकाबला काफी रोमांचक हो गया है। वहां कांग्रेस ने ऐसे उम्मीदवारों को उतारा है जिससे मोदी और भाजपा के माथे पर शिकन साफ नजर आ रही हैं। रायबरेली और अमेठी की सीटों को परंपरागत कांग्रेस की सीटें माना जाता है। इन सीटों पर पिछले कई दशकों से कांग्रेस का दबदबा बना रहा है। 2019 में भी रायबरेली सीट पर पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जीत हासिल की थी। लेकिन वहीं राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार गये थे। भाजपा इसे कांग्रेस की सबसे बड़ी हार बताया था। राहुल गांधी यहां से तीन बार सांसद चुने गये थे। राहुल गांधी ने अमेठी के अलावा केरल के वायनाड से भी चुनाव लड़ा था वहां उन्होंने शानदार जीत हासिल की थी। इस बार कांग्रेस ने राहुल के चुनाव लड़ने की बात पर इतना रहस्य रखा कि मीडिया और भाजपा भी हतप्रभ रह गयी कि राहुल गांधी कहां से चुनाव लड़ेंगे। तीन मई की सुबह कांग्रेस ने यह ऐलान किया राहुल सोनिया गांधी की सीट रायबरेली से चुनाव लड़ेंगे। यहां से राहुल गांधी के पिता,माता दादी और दादा सभी लोगों ने राजनीति की शुरुआत यहीं से की थी। राहुल गांधी ने कहा कि मैंने जब यहां से चुनाव के लिये पर्चा भरा तो काफी गर्व महसूस किया।
भाजपा, मीडिया और स्मृति इरानी को अफसोस
अमेठी से सांसद और केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने जब से चुनाव जीता है तब से उनके निशाने पर राहुल गांधी रहे हैं। ये बात सभी जानते हैं कि अमेठी का चुनाव राहुल गांधी की वजह से ही हाई प्रोफाइल बनता है। उनकी वजह से ही स्मृति ईरानी को भी मीडिया में काफी स्पेस मिलता है। स्मृति ईरानी कभी भी अपने कामों और काबिलियत की वजह से चर्चा में नहीं आती हैं उनकी चर्चा राहुल गांधी को कोसने और आलोचना की वजह से होती है। वो पीएम मोदी की तरह राहुल गांधी को शर्मिंदा करने के लिये ही मुंह खोलते हैं। ये तो जगजाहिर है कि इस बार के चुनाव में प्रचार के दौरान भाषण में भाषा का स्तर इस कदर गिर गया है सिर शर्म से झुक जाता है। अफसोस की बात हे कि अपने राजनीतिक दुश्मन को नीचा दिखाने को पीएम मोदी ने अपने पद की गरिमा को भी भुला दिया है।
चुनाव आयोग में जमा किया था फर्जी शपथ पत्र
स्मृति ईरानी ने जब दो हजार चौदह में चुनाव के वक्त जो शपथ पत्र जमा किया था उसमे शैक्षणिक यौग्यता कुछ और दर्ज की थी। लेकिन जब उन्होंने राज्यसभा सदस्य के शपथ पत्र में उसमें शैक्षिक योग्यता अलग भरी थी। यह एक फ्राड माना जा सकता था। लेकिन मामला भाजपा से जुड़ा हुआ था इसलिये इसे दबा दिया गया। अगर ये मामला विपक्ष के किसी नेता को होता तो उसे सरकार और चुनाव आयोग चौतरफा हमलावर हो जाते है। आरोपी नेता पर चार सौ बीसी के मामले में जेल भेज दिया गया होता।
2014 में राहुल ने स्मृति ईरानी को हराया था
2014 के चुनाव में राहुल गांधी ने ही स्मृति ईरानी को हराया था। वैसे भी गांधी परिवार के किसी सदस्य के खिलाफ चुनाव लड़ने मात्र से ही मीडिया में स्पेस मिल जाता है। इस बार कांग्रेस ने अमेठी से राहुल को न उतार कर अपने पुराने कांग्रेसी विश्वसनीय कार्यकर्ता किशोरी लाल शर्मा को स्मृति के आगे उतारा है। किशोरी लाल पिछले 40 साल से कांग्रेस सांसदों के प्रतिनिधि के रूप में अमेठी और रायबरेली संसदीय क्षेत्र में प्रतिनिधि के रूप में सक्रिय हैं। शर्मा को अमेठी और रायबरेली की स्थानीय समस्याओं और कार्यकर्ताओं की जानकारी है। अमेठी के चप्पे चप्पे की जानकारी रखते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि स्मृति ईरानी के लिये इस बार का चुनाव आसान नहीं है। भाजपा अगर ये मान रही है कि किशोरी लाल को आसानी से चित कर देंगे तो ये उनकी भूल होगी। एक तरफ शर्मा दिग्गज पुराने कांग्रेसी हैं वहीं राहुल प्रियंका गांधी रायबरेली और अमेठी को जीतने को एड़ी चोट का दम लगा देंगे। जब से राहुल गांधी और किशोरी लाल ने चुनावी पर्चा भरा है तभी से दोनों संसदीय क्षेत्रों में यह चर्चा हो रही है कि मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है।
रायबरेली और अमेठी में होगा रोमाचक मुकाबला
इस बार का लोकसभा चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक होने वाला है। अगर भाजपा इस बार चुनाव जीतने में सफल होती है तो पहली बार कोई राजनीतिक दल सत्ता पाने की हैट्रिक लगायेगी। नरेंद्र मोदी पहले पीएम होंगे जो लगातार तीसरी बार देश की कमान संभालेंगे। लेकिन आज के समय और 2019 के आम चुनाव में काफी अंतर आ गया है। उस समय पुलवामा कांड ने देशवासियों को देश प्रेम से प्रभावित किया था। उस पर मोदी ने देशवासियों से शहीदों के नाम पर वोट भी मांगे थे। जो कि आचार संहिता का उल्लंघन था लेकिन आयोग ने कोई भी ऐक्शन नहीं लिया। ये पहला मौका नहीं था कि जब चुनाव आयोग उदासीन रहा। चुनाव आयोग ने कभी भी सत्ताधारी दल के नेताओं पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं की। पीएम की हेट स्पीच पर भी आयोग ने पार्टी अध्यक्ष को नोटिस दिया। विपक्ष कहता है कि जब पीएम मोदी और शाह चुनाव आयुक्तो की नियुक्तियां करेंगे तो आयुक्तों की क्या बिसात कि वो पीएम और शाह के खिलाफ कोई कार्रवाई करने की हिम्मत जुटा पायें। कांग्रेस ने जो तरकीब लगायी है अगर सफल होती है तो ये उसका मास्टर स्ट्रोक माना जायेगा।