pm cares fund
PM announced an account for corona virus relief fund to donate

पिछले एक डेढ़ माह से पूरी दुनिया कोरोना वायरस के चपेट में है। लाखों लोग इससे संक्रमित हैं और होते जा रहे है। अमेरिका, स्पेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, ईरान समेत सैकड़ों अन्य देश कोविड19 के शिकंजे में जा फंसे हैं। भारत भी इन देशों में एक है जहां कोराना वायरस अपने पंजे कसता जा रहा है। अब तक भारत में 15 हजार के लगभग लोग संक्रमित है और पांच सौ लोग काल के गाल में समा चुके हैं। इतना ही नहीं देश में लगभग 15 सौ लोगों ने कोरोना की जंग जीतने में सफलता प्राप्त की है। भारत ने कोरोना से जूझने के लिये पिछले 23 दिनों से पूरे देश में लॉकडाउन कर रखा है। इसका कोरोना के संक्रमण में काफी सकारात्मक असर देखने को मिल रहा है। देश में 14 अप्रैल के बाद 19 दिनों का लॉकडाउन बढ़ा दिया गया है। तालाबंदी का सीधा असर दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ रहा है। कामकाज न होने से उनके जीवनयापन का संकट उत्पन्न हो गया है। यही वजह है कि वो लोग किसी भी सूरत में अपने घर वापस जाना चाह रहे हैं। लेकिन लॉकडाउन के कारण ट्रेन, बसें और हवाई सेवा बंद है। इसके बावजूद भारी संख्या में लोग हजार पांच सौ किमी. पैदल चल कर घर पहुंचने का जोखिम उठा रहे हैं लेकिन सुरक्षा बल उन्हें अपने घरों में जाने नहीं दे रहे हैं। केन्द्र व प्रदेश सरकारें मजदूरों को वहीं रुकने की अपील कर रही हैं उन्हें यह भरोसा दिलाने की पुरजोर कोशिश की जा रही है उनके रहने खाने की सारी व्यवस्था की जायेगी। लेकिन दिहाड़ी मजदूरों को विश्वास दिलाने में असफल दिख रही है।
पूरे देश में हालात यह है कि पलायन का भारी हुजूम उमड़ता दिख रहा है। दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, हरियाणा और यूपी जैसे प्रदेशों में बिहार के दिहाड़ी मजदूर अपने घरों की ओर जाने की जिद पकड़ चुके है। दिहाड़ी मजदूरों का कहना है कि सरकारें दावे बहुत कर रही हैं लेकिन सच्चाई कुछ और है। मुश्किल से दिन में एक ही वक्त खाना मिल रहा है। एक टाइम खाने के लिये लंबी कतारों में लग कर खाना मिल रहा है। इसके लिये घंटों लाइन में खड़ा रहना पड़ता है।
दूसरी ओर 22 दिनों के लॉक डाउन होने के कारण सरकारों को आर्थिक संकट झेलना पड़ रहा है। उद्योग घंधे, होटल, रेलवे, बस और एयर लाइंस आदि बंद हैं। लोगों को तो सिर्फ जहां तहां रहने की परेशानी है लेकिन वहीं सरकार के लिये रेवेन्यू की दिक्कतें हो रही है। लॉकडाउन कोरोना से निपटने के लिये सरकार की जरूरत है लेकिन यह ज्यादा दिनों तक लागू नहीं किया जा सकता है। पीएम मोदी ने पहले कहा कि जान है तो जहान है। लेकिन इस बार उन्होंने कहा कि जान भी और जहान भी। उनका इशारा देशवासियों के साथ देश की सलामती था। सरकार पूरी तरह से कोरोना से निपटने में एड़ी चोटी लगा रही है।
लेकिन यह भी सही है कि केवल लॉकडाउन के सहारे भी नहीं बैठा जा सकता है। अर्थव्यवस्था को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। लॉकडाउन से सोशल डिस्टेंसिंग का प्रभाव तो पड़ रहा है लेकिन इकोनॉमी खत्म हो रही है। ये हालात केवल भारत के हों ऐसा नहीं है पूरे विश्व में आर्थिक मंदी बतायी जा रही है।
इकोनॉमी स्लोडाउन होने का असर उद्योग धंधों पर भी पड़ेगा इससे उबरने में काफी वक्त लग सकता है। मंदी के कारण ही काफी उद्योग धंधे और कारखाने बंद होने के कगार पर आ जायेंगे। इससे बेरोजगारी में काफी इजाफा आयेगा। पर्यटन संबंधी उद्योगों के विशेषज्ञों ने हालात देखते हुए केन्द्र से दस लाख करोड़ का बेल आउट बजट मांगा है। अगर ऐसे में सरकार ने राहत पैकेज नहीं दिया तो लगभग तीन करोड़ लोग बेरोजगारी की लाइन में आ जायेंगे।

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