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हम रोज हाकी फील्ड में 500 ml दूध लेकर जाना जरूरी था, मेरे मां-बाप सिर्फ 200 ml ही दे सकते थे,
मैं बिना किसी को बताए उसमें पानी मिला देती थी, ताकि प्रैक्टिस ना रुके,! घर में घड़ी भी नहीं थी, इसलिए मेरी मां सुबह जल्दी उठकर तारे देखती थी ताकि मैं अपनी ट्रेनिंग मिस ना करूं
इन शब्दों में संघर्ष साफ झलक रहा है, लेकिन उतना ही साफ दिख रहा है उस लड़की का जुनून जो आज टोक्यो ओलंपिक मैं भारतीय टीम की कप्तान है यह कहानी है रानी रामपाल की, जिसने हर मुश्किल को गोल में तब्दील किया,
हरियाणा के शाहबाद की रहने वाली रानी रामपाल ने 6 साल की उम्र से ही हॉकी शुरू की!
भारतीय हॉकी इस वक्त टोक्यो ओलंपिक मैं जलवे बिखेर रही है! इस टीम को अपने जुनून से आगे बढ़ा रही रानी के यहां तक पहुंचने का सफर मुश्किलों भरा था!
रानी हरियाणा की एक बहुत गरीब परिवार में पैदा हुई थी! पिताजी रेहड़ी लगाते थे, दिन की कमाई मुश्किल से ₹80 मां घरों का काम करती थी, कभी घर में लाइट नहीं रहती थी, तो कभी-कभी बारिश में पूरा घर बह जाता था,
रानी इन परेशानियों से बाहर निकलना चाहती थी लेकिन आगे का रास्ता साफ नहीं था,
घर के सामने एक हॉकी एकेडमी थी, वह रोज प्लेयर्स को प्रैक्टिस करते देखती और एक बार सीधा कोच के पास पहुंच गई, कोच ने उन्हें यह कहकर रिजेक्ट कर दिया कि वह कुपोषित थी, और ना खेलने का स्टैमिना था,
रानी को इस एकेडमी से एक पुरानी हॉकी स्टिक मिली और उसी से प्रैक्टिस शुरू कर दिया, उसकी जिद के आगे कोच ने भी हार मान ली, वह धीरे-धीरे प्रैक्टिस करने लगी!
वह जिस पेरिवेश जिस समाज मैं पली बढ़ी थी वहां औरतों को घर के काम के अलावा और कुछ नहीं करने दिया जाता था! उनके सामने जब रानी ने हॉकी खेलने की इच्छा जाहिर की तो कोई तैयार नहीं हुआ सभी ने उसका विरोध किया, रिश्तेदारों ने भी यह कह दिया हॉकी खेल कर क्या करोगी,” लड़कियां सिर्फ घर के काम के लिए बनी है
लेकिन जब से इस लड़की ने हॉकी खेलना शुरू किया और फिर कप्तानी संभाली, और समाज को उन लोगों को जवाब अपने खेल से दिया!
हमें गर्व है तुम पर रानी रामपाल