आखिर लॉकडाउन ने आपके बॉस को क्यों बना दिया है सख़्त?


भारत में इतने बड़े स्तर पर पहली बार लोग घर से काम कर रहे हैं. जानकारों का मानना है कि अभी ‘वर्क फ्रॉम होम’ के कॉनसेप्ट को पूरी से समझा नहीं गया है.

नई दिल्ली: लॉकडाउन लागू होने के बाद घर से काम करने वाले कई लोगों की यह शिकायत है कि ऑफिस उन पर ज्यादा प्रेशर डाल रहा है. कई घंटे एक्स्ट्रा काम करवा रहा है और अक्सर गुस्से में बात की जा रही है. दरअसल, यह पहली बार है कि भारत में इतने बड़े स्तर पर लोग घर से काम कर रहे हैं. जानकारों का मानना है कि अभी भारत में कंपनियां ‘वर्क फ्रॉम होम’ के कॉनसेप्ट को पूरी तरह से नहीं समझ पा रही हैं.

वर्क फॉर्म होम के बाद कई लोगों ने यह कहा कि वह ज्यादा तनाव में हैं और उनकी प्राइवेसी पूरी तरह से भंग हो गई है किसी भी वक्त कोई मेल या ऑर्डर आ जाता है जिसे पूरा करना ही होता है. कोरोना काल में अर्थव्यवस्था की बुरी हालत देख कर्मचारी नौकरी छोड़ने या बदलने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं. इसलिए लोग इस दबाव को झेलने के लिए मजबूर हैं.

ऐसा अक्सर देखने में आ रहा है कि काम के घंटे पूरे होने के बाद अक्सर रात में 9 या 10 बजे मैसेज आता है और वर्कर से तुरंत रेस्पॉन्स की उम्मीद की जाती है. इस तरह का प्रेशर कुछ समय के लिए काम आ सकता है लेकिन आगे चलकर इससे नुकसान ही होगा. इस तरह से अपने कर्मचारी से ज्यादा से ज्यादा काम लेने की कोशिश पूरी तरह से अनैतिक है.

ऑफिस कल्चर पर गहरी नजर रखने वाले कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि अचानक बॉस के रवैये में बदलाव आने की एक वजह यह भी है कि वह खुद तनावग्रस्त है. दरअसल कोरोना संकट अर्थव्यवस्था के लिए बिल्कुल नया अनुभव है और इस संकट में फंसी सभी कंपनियां कम से कम नुकसान सहना चाह रही हैं. लेकिन इसका कोई क्रिएटिव हल खोजने की जगह ज्यादातर कंपनियों ने पुराना मॉडल अपनाया है जिसमें  कर्मचारियों के काम के घंटे और काम की मात्रा दोनों ही बढ़ा दी जाती है.

कौन्ट्रेक्ट पर काम करने वाले कर्मचारियों पर प्रेशर कहीं ज्यादा है. इस अनिश्चितकाल में वह एक दिन भी ऑफ नहीं ले रहे हैं. कोई नहीं चाहता कि उनकी नौकरी चली जाए इसलिए खामोशी से काम करने के सिवा कोई चारा नहीं है. प्रोजेक्ट बेस्ड काम में किसी कंपनी या कर्मचारियों को टारगेट दिया जाता है और इस समय कोई भी ऐसे मौके को हाथ से नहीं जाने देना चाहता, लिहाजा ज्यादा से ज्यादा काम करने के अलावा और कोई चारा नहीं बचता है.

जानकारों का कहना है कि कुछ कंपनियां अपने कर्मचारियों पर कड़ा नियंत्रण चाहती हैं. वहीं कुछ कर्मचारी इस मुश्किल वक्त को भी एक मौके की तरह देख रहे हैं और दिखाना चाह रहे हैं कि उनसे बेहतर कोई नहीं है. वे ज्यादा काम कर रहे हैं जिसके चलते दूसरों को भी काम करना पड़ रहा है.

लेकिन क्या काम में खुद को झोंक देने का प्रेशर लंबा खींचेगा? जानकारों की माने तो कुछ दिनों तक कर्मचारी अपनी सेहत को दांव पर लगाकर रात दिन काम में जुटे रह सकते हैं लेकिन यह लंबा नहीं चलेगा. आज नहीं तो कल ऐसे कर्मचारी नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर होंगे. यह नहीं भूलना चाहिए बड़ी कंपनियां नए आइडियाज और सबको साथ लेकर चलती हैं न कि धमकी या दवाब जैसे नीतियों पर काम करती हैं.

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