नयी दिल्ली। पिछले पांच छह माह से आम आदमी पार्टी और कांग्रेस में खिचड़ी पक रही थी कि आगामी आम चुनाव में वो एक साथ बीजेपी को टक्कर देंगे। यह गठबंधन भी सांप छछंूदर जैसा होता अगर कांग्रेस इसके लिये राजी होती। लेकिन आखिरकार कांग्रेस ने केजरीवाल के प्रस्ताव को ठुकराते हुए लोकसभा चुनाव अकेले दम पर ही लड़ने का मन बना लिया है। दूसरी ओर आम आदमी पार्टी ने भी मन मार कर अपने ही  बल बूते पर दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में आम चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है।

केजरीवाल कई बार यह संकेत दे चुके थे कि मोदी और शाह को सत्ता से बाहर करने के लिये वो कांग्रेस से भी हाथ मिला सकते हैं। कई बार वो राहुल गांधी के साथ मंच साझा कर चुके हैं। राहुल गांधी ने भी बीच में यह संकेत दिये थे कि वो केजरीवाल के साथ दिल्ली समेत दो एक प्रदेशों में चुनाव लड़ सकते हैं। लेकिन कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेता इस बात के लिये राजी नहीं हुए। इसका बड़ा कारण यह हो सकता है कि दिल्ली चुनावों में केजरीवाल ने कांग्रेस को बुरी तरह निशाने पर रखा था। यही वजह थी कि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन ने भी केजरीवाल के खिलाफ खूब धरना प्रदर्शन और घेराव किये थे। लेकिन कुछ निजी कारणों और भितर घात के कारण उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष से विदा होना पड़ा। उसके बाद प्रदेश कांग्रेस की बागडोर दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के हाथों आयी। शीला दीक्षित को यह बात गवारा नहीं हुई कि जिस दिल्ली में 15 साल उनकी सरकार रही वहीं उन्हें केजरीवाल की पार्टी से हाथ मिलाने पड़ें। यह बात उन्हें बिल्कुल भी रास नहीं आयी। 5 मार्च को इस बात पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को फैसला करना था कि केजरीवाल की पार्टी के साथ जाना है या नहीं। एंेन मौके पर कांग्रेस ने केजरीवाल के प्रस्ताव को नकार दिया। ऐसे में बीजेपी को केजरीवाल पर हमला करने का मौका मिल गया। प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने तंज कसते हुूए कहा कि केजरीवाल को कांग्रेस से बड़ा सदमा मिला है। अतः उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया। उन्हें किसी अच्छे मनोचिकित्सक के इलाज की जरूरत है।

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