क्या चीन के इशारे पर उठ रहा है लिपुलेख दर्रे के पास तक सड़क बनाने का विवाद?


कैलास मानसरोवर रूट को जोड़ने के लिए भारत ने उत्तराखंड में लिपुलेख दर्रे पर सड़क बनाई है। इस पर नेपाल आपत्ति जता रहा है जबकि जहां सड़क बनी है, उस क्षेत्र में कभी भी दोनों देशों के बीच विवाद नहीं रहा। आर्मी चीफ के मुताबिक किसी और के इशारे पर नेपाल ऐसा कर रहा है।

हाइलाइट्स

  • उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में लिपुलेख दर्रे को भारत ने कैलास मानसरोवर रूट से जोड़ा
  • इस लिंक रोड बनने पर नेपाल ने जताई है आपत्ति, भारतीय राजदूत को तलब कर जताया विरोध
  • आर्मी चीफ जनरल नरवणे के मुताबिक किसी और के इशारे पर नेपाल कर रहा है आपत्ति
  • आर्मी चीफ ने किसी देश का नाम तो नहीं लिया लेकिन उनका इशारा चीन की तरफ है

नई दिल्ली

भारत ने कैलास मानसरोवर तक की यात्रा सुगम करने के लिए उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में चीन-नेपाल बॉर्डर के पास लिपुलेख दर्रे से 5 किलोमीटर पहले तक सड़क बनाई है। इस सड़क के उद्घाटन के बाद नेपाल ने इसे लेकर आपत्ति जतानी शुरू कर दी। हालांकि पहले इस एरिया में नेपाल से कभी विवाद नहीं रहा है।

इंडियन आर्मी चीफ जनरल एमएम नरवणे ने कहा कि इसकी संभावना है कि नेपाल ऐसा किसी और के इशारे पर कर रहा हो। जनरल नरवणे ने हालांकि किसी का नाम नहीं लिया लेकिन उनका इशारा चीन की तरफ था।

धौंस नहीं दिखा पाएगा चीन

  • धौंस नहीं दिखा पाएगा चीन

    भारतीय चौकियों तक पहुंचना अब बेहद आसाना हो जाएगा। 17000 फुट की ऊंचाई पर लिपुलेख दर्रा आसानी उत्तराखंड के धारचूला से जुड़ जाएगा। इस सड़क की लंबाई 80 किलोमीटर है। मानसरोवर लिपुलेख दर्रे से करीब 90 किलोमीटर दूर है। पहले वहां पहुंचने में तीन हफ्ते का समय लगता था। अब कैलाश-मानसरोवर जाने में सिर्फ सात दिन लगेंगे। बूंदी से आगे तक का 51 किलोमीटर लंबा और तवाघाट से लेकर लखनपुर तक का 23 किलोमीटर का हिस्सा बहुत पहले ही निर्मित हो चुका था लेकिन लखनपुर और बूंदी के बीच का हिस्सा बहुत कठिन था और उस चुनौती को पूरा करने में काफी समय लग गया। इस रोड के चालू होने के बाद भारतीय थल सेना के लिए रसद और युद्ध सामग्री चीन की सीमा तक पहुंचाना आसान हो गया है। लद्दाख के पास अक्साई चीन से सटी सीमा पर अक्सर चीनी सैनिक घुसपैठ करते आए हैं। अगर तुलना की जाए तो लिंक रोड के बनने से लिपुलेख और कालापानी के इलाके में भारत सामरिक तौर पर भारी पड़ सकता है। दो साल पहले चीनी सेना ने पिथौरागढ़ के बाराहोती में घुसपैठ की कोशिश की थी। इस लिंक रोड के बनने के बाद चीनी सेना ऐसी गुस्ताखी नहीं कर पाएगी।

  • ​क्यों अहम है कालापानी ?

    नेपाल ने कहा कि उसने हमेशा यह साफ किया है कि सुगौली समझौते (1816) के तहत काली नदी के पूर्व का इलाका, लिंपियादुरा, कालापानी और लिपुलेख नेपाल का है। उसका कहना है, ‘नेपाल सरकार ने कई बार पहले और हाल में भी कूटनीतिक तरीके से भारत सरकार को उसके नया राजनीतिक नक्शा जारी करने पर बताया था। सुगौली संधि के तहत ही नेपाल कालापानी को अपना इलाका मानता है। पिछले साल जब जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून के तहत इसे दो अलग-अलग भागों में बांट दिया गया तब आधिकारिक तौर पर नया नक्शा जारी किया गया था। उस समय भी नेपाल ने आपत्ति जताई और कालापानी को अपना हिस्सा बताया। कालापानी 372 वर्ग किलोमीटर में फैला इलाका है। इसे भारत-चीन और नेपाल का ट्राई जंक्शन भी कहा जाता है।

  • ​सुगौली संधि और कालापानी का पेंच

    नेपाल और ब्रिटिश इंडिया के बीच 1816 में सुगौली संधि हुई थी। सुगौली बिहार के बेतिया यानी पश्चिम चंपारण में नेपाल सीमा के पास एक छोटा सा शहर है। इस संधि में तय हुआ कि काली या महाकाली नदी के पूरब का इलाका नेपाल का होगा। बाद में अंग्रेज सर्वेक्षकों ने काली नदी का उदगम स्थान अलग-अलग बताना शुरू कर दिया। दरअसल महाकाली नदी कई छोटी धाराओं के मिलने से बनी है और इन धाराओं का उदगम अलग-अलग है। नेपाल का कहना है कि कालापानी के पश्चिम में जो उदगम स्थान है वही सही है और इस लिहाज से पूरा इलाका उसका है। दूसरी ओर भारत दस्तावजों के सहारे साबित कर चुका है कि काली नदी का मूल उदगम कालापानी के पूरब में है।

  • ​कालापानी का सामरिक महत्व

    भारतीय सेना के लिए चीन के पैंतरे पर निगाह रखना जरूरी है। इस लिहाज से कालापानी सामरिक तौर पर बहुत ही अहम है। 1962 की लड़ाई के बाद से ही यहां इंडो तिब्बतन बॉर्डर पुलिस (ITBP) पेट्रोलिंग करती है। चीन बहुत पहले ही अपनी सीम तक सड़क बना चुका है। हिमालय को काट कर सीमा तक बुनियादी संरचना विकसित करने पर चीन ने काफी पैसा बहाया है। इसे देखते हुए भारत के लिए भी जरूरी है कि वो सीमा पर सैन्य संतुलन कायम करने के जरूरी उपाय करे। भारत के साथ दोस्ती के बावजूद हाल के दिनों में नेपाल और चीन करीब आए हैं। ऐसी स्थिति में कालापानी पर मजबूत पकड़ भारत के लिए और जरूरी है।

  • Youtube-मानसरोवर रूट से जुड़ा लिपुलेख दर्रा, चिनूक हेलिकॉप्टर की मदद से बनी सड़क
  • सुस्ता पर भी है भारत-नेपाल विवाद

    हिमालय की गोद से निकलने वाली नदियां धारा बदल लेती है। ये भी अंतरराष्ट्रीय विवाद का कारण बनता है। कालापानी के अलावा सुस्ता इसका एक और उदाहरण है। सुगौली संधि के तहत ही गंडक नदी को को भारत-नेपाल के बीच की सीमा मान लिया गया। उसी समय गंडक ने धारा बदली और सुस्ता नदी के उत्तर में आ गया। इस लिहाज से यह भारत का हिस्सा है लेकिन नेपाल इस पर भी दावा करता रहा है। हालांकि दोनों देशों में सीमा विवाद खत्म करने पर सहमति बनी हुई है। इसे आपसी बातचीत से हल करना है।

लिपुलेख दर्रे के पास तक सड़क बनाने पर नेपाल की तरफ से जताए गए ऐतराज पर आर्मी चीफ जनरल एमएम नरवणे ने कहा कि मुझे इसे लेकर कोई विवाद नहीं दिखता। नेपाल के राजदूत ने भी कहा कि काली नदी के ईस्ट साइड का एरिया उनका है इसे लेकर कोई विवाद नहीं है। आर्मी चीफ ने कहा कि जो रोड बनी है वह नदी के पश्चिम की तरफ बनी है। तो मुझे नहीं पता कि वह असल में किस चीज को लेकर विरोध कर रहे हैं।

कैलास मानसरोवर यात्रा होगी आसान

  • कैलास मानसरोवर यात्रा होगी आसान

    गडकरी ने कहा कि पहली बार सीमावर्ती गांवों को सड़क मार्ग से जोड़ा जा रहा है और कैलास मानसरोवर के यात्रियों को 90 किमी का पैदल रास्ता तय नहीं करना पड़ेगा। वे गाड़ियों से चीन सीमा तक जा सकते हैं। साथ में उन्होंने इस प्रोजेक्ट की कुछ तस्वीरें भी साझा की। इसमें एक तस्वीर में चिनूक हेलीकॉप्टर को गूंजी तक मशीनरी ले जाते हुए दिखाया गया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इन लिंक रोड का उद्घाटन किया।

  • 11 टन तक वजन उठा सकता है चिनूक

    2015 में भारत के 15 चिनूक हेलिकॉप्टर्स खरीदने के लिए अमेरिका के साथ करार किया था। चार हेलिकॉप्टरों की पहली खेप पिछले साल फरवरी में भारत को मिली थी। यह हेलिकॉप्टर किसी भी मौसम में सेना की टुकड़ियों और साजोसामान को दुर्गम और ऊंचे इलाकों में पहुंचा सकता है। इसकी खूबी यह है कि इसे छोटे हेलीपैड और संकरी घाटियों में भी उतारा जा सकता है। यह तेजी से उड़ान भरने में सक्षम है और बेहद घनी पहाड़ियों में भी बखूबी अपना काम करता है। चिनूक में दो रोटर इंजन लगे हैं जो इसे बेहद शक्तिशाली बनाता है। यह 11 टन तक भार उठाने में सक्षम है।

  • दुर्गम इलाकों में साजोसामान पहुंचाने में चिनूक का सानी नहीं

    सैन्य के साथ-साथ इसका असैन्य गतिविधियों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। पहाड़ी राज्यों में दुर्गम और ऊंचाई वाले इलाकों में इसके जरिए आसानी से साजोसामान पहुंचाया जा सकता है। खासकर दुर्गम इलाकों में सड़क निर्माण की परियोजनाओं में यह काफी मददगार साबित हो सकता है।

  • सैन्य अभियान के साथ इन्फ्रा प्रोजेक्ट्स में भी इस्तेमाल

    चिनूक के भारतीय एयरफोर्स के बेड़े में शामिल होने से न केवल सेना की क्षमता बढ़ी है बल्कि कठिन रास्ते और बॉर्डर पर इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को बनाने में भी इसका अहम योगदान रह सकता है। नॉर्थ ईस्ट में कई रोड प्रोजेक्ट सालों से अटके पड़े हैं और उन्हें पूरा करने के लिए बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन लंबे समय से एक हैवी लिफ्ट चॉपर का इंतजार कर रहा था। इससे इन घनी घाटियों में सामग्री और जरूरी मशीनों को पहुंचाया जा सकता है। अमेरिकी सेना पहाड़ी क्षेत्रों में ऑपरेशन के लिए इन्हें इस्तेमाल करती है। साथ ही आपदा राहत अभियानों में भी यह अपना काम अच्छी तरह करता है।

सेना प्रमुख ने कहा कि नदी से आगे जब जाते हैं तो ट्राई जंक्शन है (भारत, नेपाल और चीन का बॉर्डर )। वहां पर हो सकता है कभी कोई छोटा-मोटा विवाद रहा हो, इसलिए हो सकता कि उन्होंने (नेपाल) यह दिक्कत और यह मसला किसी और के इशारे पर उठाया हो, इसकी काफी संभावना है।

Web Title does china want to create tension between india and nepal over lipulekh link road(News in Hindi from Navbharat Times , TIL Network)



Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here