चीनी सामान पर निर्भरता खत्म करने और आत्मनिर्भर भारत अभियान को बढ़ावा देने के लिए वाहन कंपनियों ने ऑटो पार्ट्स बनाने वाली सहायक कंपनियों को तकनीक और कौशल से सहयोग देने का फैसला किया है।
वाहन उद्योग से जुड़े सूत्रों ने बताया कि मारुति, टाटा, महिंद्रा समेत हीरो मोटोकॉर्प, बजाज ऑटो और टीवीएस मोटर ने अपनी जरूरत का ज्यादातर सामान देश में तैयार करने का फैसला किया है। कोरोना संकट के बीच चीन से सप्लाई चेन प्रभावित होने के बाद वाहन कंपनियों ने घरेलू पार्ट्स बनाने वाली कंपनियों को हर संभव मदद देने को तैयारी कर रही है।
डिजाइन और टेक्नोलॉजी की साझेदारी पर जोर
ऑटोमोटिव कंपोनेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एक्मा) के महानिदेशक विन्नी मेहता ने बताया कि वाहन कंपनियां सिर्फ चीन से नहीं बल्कि दुनिया के दूसरे देशों पर से भी निर्भरता कम करना चाहती है। जिस तरह से कोरोना के कारण सप्लाई चेन प्रभावित होने से वाहन कंपनियों का प्रोडक्शन प्रभावित हुआ है वह भविष्य में न हो इसके लिए घरेलू पार्ट्स बनाने वाली कंपनियों को डिजाइन से लेकर टेक्नोलॉजी में मदद देने को तैयार हैं। इसके साथ ही कई ऐसे कम्पोनेंट होते हैं जो सभी दोपहिया में इस्तेमाल होते हैं। इस तरह के पार्ट्स का आर्डर कई वाहन कंपनियां एक ग्रुप बनाकर देने की योजना में है। इससे घरेलू कंपनियों की लगात कम करने में मदद मिलेगी जो एक प्रमुख वजह रही है चीन से सामान आयत करने की। इस पहल से घरेलू कंपनियों के पास बड़े ऑर्डर आएंगे और सामान बनाने के बाद बिक्री करने की चिंता नहीं होगी।
शानदार बढ़त के साथ सोना चमका, जानिए आज का सोने का भाव
पार्ट्स की बढ़ी लागत वहन करने को राजी
राय इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश छाबड़ा ने हिन्दुस्तान को बताया कि बदले हालत में वाहन कंपनियां चीन के मुकाबले घरेलू पार्ट्स बनाने कंपनियों से अपनी जरूरत के पार्ट्स खरीदने के साथ बढ़ी लागत वहन करने को भी राजी हैं। इसके लिए वह छोटी कंपनियों को टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन और डाई की लागत खर्च उठाने को तैयार हैं। उन्होंने बताया कि कुछ डाई की लागत 30 लाख से एक करोड़ तक आती है। अगर, वाहन कंपनियां यह वहन कर लेंगी तो ऑटो पार्ट्स को बड़ी मदद मिलेगी। अभी तक चीन से मुकाबला करने में मुख्य समस्या टेक्नालॉजी अपग्रेडेशन की रही है। इसमें वाहन कंपनियों की ओर से मदद मिलने से अच्छे पार्ट्स सस्ते में बनाना आसान हो जाएगा।
तीन महीने में पूरा खाक करने की योजना
वाहन कंपनियां और बड़े ऑटो पार्ट्स निर्माता छोटी कंपनियों से संपर्क कर रहे हैं। वह यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि उनकी चीनी सामान पर निर्भरता कितनी है। अगले तीन महीने में वह एक पूरा खाका तैयार करने की योजना बना रहा है जिसमें चीन से आयात खत्म कर कोरिया, जापान और यूरोपीय देशों से बढ़ाया जाए। वाहन कंपनियां इस पर आने वाले कुल खर्च को भी वहन करने को तैयार हैं।
कोरोना से आंखे खुली
कोरोना वायरस महामारी की वजह से वाहन उद्योग को महत्वपूर्ण कलपुर्जों की कमी से जूझना पड़ा था। चीन से बाहर की कंपनियां वाहन कलपुर्जों की प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं। वित्त वर्ष 2018-19 में भारत ने 17.6 अरब डॉलर के वाहन कलपुर्जों का आयात किया था। इसमें से 27 प्रतिशत यानी 4.75 अरब डॉलर का आयात चीन से हुआ था। करीब 57 अरब डॉलर का वाहन कलपुर्जा उद्योग स्थानीयकरण तथा चीन के आयात से जोखिम को कम करने की पहल कर रहा है।
9 हफ्तों के पीक पर पहुंची राष्ट्रीय बेरोजगारी दर, ग्रामीण क्षेत्र ने बढ़ाई चिंता