Edited By Shefali Srivastava | भाषा | Updated:
- कालापानी इलाके को लेकर नक्शे विवाद के बीच नेपाल ने कहा कि बातचीत के जरिए मलसे को सुलझाया जाएगा
- नेपाल के विदेशी मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने कहा कि भारत के साथ उनके देश का खास और करीबी रिश्ता है
- नए नक्शे में नेपाल ने लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा के कुल 395 वर्ग किमी के भारतीय इलाके को अपना बताया
काठमांडू
कालापानी इलाके को लेकर नक्शे विवाद के बीच नेपाल ने भारत से अपनी दोस्ती को याद करते हुए कहा कि बातचीत के जरिए इस मलसे को सुलझा लिया जाएगा। नेपाल के विदेशी मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने कहा कि भारत के साथ उनके देश का खास और करीबी रिश्ता है। उन्होंने आगे कहा कि इस मुद्दे का एकमात्र हल अच्छी भावना के बातचीत है। बता दें कि पिछले दिनों नेपाल सरकार ने अपने देश का नया राजनीतिक और प्रशासनिक नक्शा जारी किया है। नए नक्शे में नेपाल ने लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा के कुल 395 वर्ग किलोमीटर के भारतीय इलाके को अपना बताया है।
विदेश मंत्री ग्यावली ने अंग्रेजी दैनिक रिपब्लिका को दिए एक साक्षात्कार के दौरान कहा, ‘हमने हमेशा कहा है कि इस मुद्दे के समाधान का एक मात्र तरीका अच्छी भावना के साथ बातचीत करना है। बिना किसी आवेग या अनावश्यक उत्साह और पूर्वाग्रह के साथ नेपाल बातचीत के जरिये सीमा विवाद को सुलझाना चाहता है।’
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द्विपक्षीय बातचीत से सुलझ जाएगा मामला- विदेश मंत्री
विदेश मंत्री कहा, ‘हमें यकीन है कि यह मुद्दा द्विपक्षीय बातचीत के जरिये सुलझ जाएगा।’ उन्होंने हालांकि लिंपियाधुरा, लिपुलेख का जिक्र नहीं किया जिनके बारे में नेपाल अपना इलाका होने का दावा करता है। नेपाली अखबार को दिए अपने साक्षात्कार में ग्यावली ने कहा की सीमा विवाद नया नहीं है।
‘हम इतिहास के बोझ को खत्म करना चाहते हैं’
उन्होंने कहा, ‘यह इतिहास का अनसुलझा, लंबित और बकाया मुद्दा है जो हमें विरासत में मिला है। यह एक बोझ है और जितनी जल्दी हम इसे सुलझा लेंगे उतनी जल्दी हम अपनी निगाहें भविष्य पर जमा पाएंगे।’ उन्होंने कहा, ‘नेपाल विश्वास पर आधारित उतार-चढ़ाव से मुक्त रिश्ता चाहता है, दोस्ताना रिश्ता। हम जानते हैं कि हमारे पास इसका कोई विकल्प नहीं है। इसलिए, हमारे सभी प्रयास इतिहास के इस बोझ को समाप्त करने के लिए हैं। हमें विश्वास है कि इस मुद्दे के समाधान का एक मात्र जरिया कूटनीति बातचीत और समझौता है।’
नेपाल-भारत के बीच क्यों है विवाद?
दोनों देशों के बीच रिश्तों में तब तनाव आ गया था जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 8 मई को उत्तराखंड में लिपुलेख दर्रे को धारचुला से जोड़ने वाली रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण 80 किलोमीटर लंबी सड़क का उद्घाटन किया था। नेपाल ने इस सड़क के उद्घाटन पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए दावा किया था कि यह नेपाली सीमा से होकर जाती है। भारत ने उसके दावे को खारिज करते हुए कहा था कि सड़क पूरी तरह से उसकी सीमा में है।
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भारत ने दिया था जवाब
इसके बाद नेपाल सरकार ने संशोधित राजनीतिक और प्रशासनिक नक्शा जारी किया था जिसमें लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को उसके भू-भाग में दर्शाया गया था। इस पर नाराजगी जताते हुए भारत ने नेपाल से स्पष्ट रूप से कहा था कि वह अपने भूभाग के दावों को अनावश्यक हवा न दे और मानचित्र के जरिये गैरन्यायोचित दावे करने से बचे।
चीन के सवाल पर बोला नेपाल
वहीं चीन के समर्थन के सवाल पर ग्यावली ने कहा, ‘मैं भारत और नेपाल के सीमा विवाद के बीच किसी अन्य देश को घसीटे जाने को पूरी तरह खारिज करता हूं। लिपुलेख को लेकर चीन के साथ हमारा विवाद है और यह मुद्दा अभी लंबित है।’ उन्होंने कहा, ‘यह द्विपक्षीय मुद्दा है और भारत- नेपाल को इसे सुलझाना चाहिए।’
हालांकि ग्यावली ने यह भी कहा कि किसी बिंदु पर तीनों देशों को बातचीत के लिए बैठना होगा। उन्होंने कहा, ‘जब हम नेपाल-भारत सीमा विवाद सुलझालेंगे तब हमें तीनों के मिलन स्थल को अंतिम रूप देने के लिए काम करना होगा। लेकिन वह बाद में होगा।’ बता दें कि सेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे ने कहा था कि ऐसी आशंका है कि नेपाल ने किसी और के कहने पर सड़क को लेकर आपत्ति जताई है। उनका इशारा संभवत: चीन को लेकर था।