परेशान न हों, हम ट्रेन पर बैठ गए हैं.. 7 दिन से नेपाल टू तेलंगाना सफर जारी


Edited By Raghavendra Shukla | नवभारत टाइम्स | Updated:

घर लौट रहे प्रवासी
हाइलाइट्स

  • नेपाल में काम करने वाले तेलंगाना के मजदूर अपने घर लौट रहे हैं
  • 7 दिन से ट्रेन में हैं यात्री, अभी भी जारी है ट्रेन का सफर
  • यात्रियों के चेहरे पर दिखी घर पहुंचने की खुशी

लखनऊ

रात के एक बज रहे थे और झांसी के पैरामेडिकल कॉलेज के परिसर में 99 लोग जाग रहे थे। मंगलवार रात उनकी आंखों में नींद नहीं थी। घर जाने की ख़ुशी है ही ऐसी चीज। और हो भी क्यों न, जब सफर खत्म होने का नाम न ले रहा हो। हर पड़ाव के बाद अगले पड़ाव के लिए जद्दोजहद हो। वैसे, इनका सात दिनों से चल रहा सफर अब भी जारी है। ये नेपाल से आए थे और तेलंगाना के नागरकुरनूल जा रहे हैं। उम्मीद है गुरुवार को किसी वक्त ये अपने घर में होंगे।

गोरखपुर से तिरुअनंतपुरम के लिए चल रही स्पेशल ट्रेन 02511 कुछ घंटे देरी से बुधवार की सुबह करीब साढ़े आठ बजे झांसी पहुंची। झांसी में ट्रेन के अंदर बैठते ही रेशमा बी ने सबसे पहला काम किया, घर फोन लगाया। उनकी खुशी छिपाए नहीं छिप रही थी। …परेशान न हों हम सब ट्रेन पर बैठ गए हैं… घर आ रहे हैं। उनके बच्चे वहीं रहते हैं। वे उनसे ही बात कर रही थीं।

रोजी-रोटी बंद तो वापस जाने का किया फैसला

तेलंगाना के महबूबनगर/ नागरकुरनूल जिले के काफी लोग नेपाल में काम करने जाते हैं। वे दस्तकार हैं। अलग-अलग जगहों पर रहते हैं और कड़ाही, देगची, चम्मच जैसे बर्तन बनाते हैं। वैसे तो हर साल रमजान में ये नेपाल से अपने गांव जाते थे लेकिन इस बार लॉकडाउन की वजह वे न जा सके। पहले से कराया ट्रेन का रिजर्वेशन भी बेकार गया। हर जगह के मेहनतकशों की तरह लॉकडाउन ने इनकी भी हालत खस्ता कर दी। काम बंद हो गए। आने जाने का रास्ता बंद हो गया। जब हालात बेकाबू हो गए और रोजी-रोटी का संकट बढ़ गया तो इन्होंने वापस जाने का तय किया।

ये नेपाल के सोनौली बॉर्डर पहुंचे। वहां से गोरखपुर। गोरखपुर से इन्हें राज्य परिवहन की बस से लखनऊ भेजा गया। इन्हें उम्मीद थी कि लखनऊ से सीधे हैदराबाद तक कोई व्यवस्था होगी। कुछ संगठन भी इनकी मदद कर रहे थे। मगर सोमवार को अचानक इन्हें झांसी भेज दिया गया। झांसी से आगे का सफर कैसे तय होगा, यह चिंता उन्हें और तेलंगाना से लेकर लखनऊ तक उनकी मदद में लगे लोगों को फिर खाने लगी। तब झांसी जिला प्रशासन आगे आया। उन्होंने इनके रुकने, खाने-पीने का इंतजाम किया। गोरखपुर से केरल जा रही ट्रेन से इन्हें तेलंगाना भेजने की व्यवस्था की।

आठ दिन की लंबी यात्रा

इस सफर में शामिल सैयद महबूब कहते हैं कि ‘बहुत अच्छा लग रहा है। बहुत खुशी लग रही है। नेपाल से चल तो दिए लेकिन तेलंगाना पहुंचते की नहीं पहुंचते, यही सोचकर बहुत परेशान थे। बहुत चिंता थी। हमें सब मना कर रहे थे। मगर वहां रह कर करते क्या? ट्रेन में बैठे हैं तो लगा अब घर पहुंच जाएगे। साहब कल हमको निकले हुए आठ दिन हो जाएंगे।’

इनकी पत्नी महबूब बी तो खाना भी नहीं खा रही हैं। वे अब बहुत बेफिक्र होकर बैठी हैं। वे कह रही हैं, इससे ज्यादा ख़ुशी क्या होगी? अब घर जाकर ही खाएंगे। हमारे दो लड़के और एक लड़की वहीं रहते हैं। उनसे मिलेंगे और साथ खाना खाएंगे।

कैसे बताएं.. कैसा लग रहा है

चांदबाबू का भी कुछ ऐसा ही हाल है। वे तो हर आधे घंटे पर ट्रेन के बारे में फोन पर बताते हैं। वे जानने को परेशान हैं कि तेलंगाना के किस जिले में ट्रेन रुकेगी? वे कहते हैं कि उन सबका बहुत शुक्रिया, जिन्होंने हमारे सफर में मदद की। कैसा लग रहा है… यह कैसे बताएं? घर जाने पर कैसा लगता है? हम तो जिस मुसीबत में जा रहे हैं, उसमें तो और भी अच्छा लग रहा है।

याकूब बी तो कल तक बेहद परेशान थीं। कब जाएंगे, कब जाएंगे, कैसे पहुंचेंगे, यही सोच-सोच कर नींद उड़ी थी। अब तो वे ट्रेन में ऐसे बैठी हैं जैसे अपने घर में हों। वे कहती हैं, अब कोई टेंशन नहीं है। हम कल घर पहुंच जाएंगे।



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