Working hours in up: यूपी सरकार (UP Government) ने तमाम आलोचनाओं के बाद श्रम कानून में किए गए उस बदलाव को वापस ले लिया है, जिसके तहत श्रमिकों को एक दिन में 12 घंटे काम करने की बात कही गई थी।

Edited By Nilesh Mishra | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated:

श्रम कानून में हुए संशोधन को यूपी सरकार ने लिया वापस
हाइलाइट्स

  • श्रम कानून में बदलाव पर पीछे हटी उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार
  • 8 की बजाय 12 घंटे काम कराने वाले संशोधन को सरकार ने किया निरस्त
  • इसी संशोधन के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में 18 मई को होनी थी सुनवाई
  • यूपी सरकार ने फैसला वापस लेने के बाद हाई कोर्ट को भी सूचित कराया है

लखनऊ

श्रम कानूनों (Labour laws) के तहत उत्तर प्रदेश के रजिस्टर्ड कारखानों को युवा श्रमिकों से कुछ शर्तों के साथ एक दिन में 12 घंटे तक काम कराने संबंधी छूट की अधिसूचना को शासन ने हफ्ते भर बाद ही निरस्त कर दिया है। फैक्ट्री ऐक्ट (Factory Act) में किए गए इस संशोधन की अधिसूचना को वापस लिए जाने के बाद प्रदेश में अब फिर श्रमिकों से काम कराने की अवधि अधिकतम आठ घंटे हो गई है। उल्लेखनीय है कि शासन की इस अधिसूचना को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दाखिल हुई थी, जिस पर अगली सुनवाई 18 मई को होनी है।

संशोधन की अधिसूचना को खत्म किए जाने की जानकारी प्रमुख सचिव (श्रम) सुरेश चंद्रा ने शुक्रवार को पत्र के जरिए इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य स्थायी अधिवक्ता को दे दी है। पत्र में जानकारी दी गई है कि 8 मई को इस संबंध में जारी अधिसूचना को शुक्रवार (15 मई 20) को निरस्त कर दिया गया है।



अब एक दिन में 8 घंटे ही काम करना होगा


उल्लेखनीय है कि 8 मई को श्रम विभाग की ओर से जारी अधिसूचना में रजिस्टर्ड कारखानों में श्रमिकों के काम करने के घंटे बढ़ाए गए थे। अधिसूचना के मुताबिक, कारखाने में युवा श्रमिक से एक कार्य दिवस में अधिकतम 12 घंटे और एक हफ्ते में 72 घंटे से अधिक काम नहीं लिया जाएगा। इसके निरस्त किए जाने के बाद अब एक दिन में अधिकतम आठ घंटे और एक हफ्ते में 48 घंटे काम कराने का पुराना नियम फिर प्रभावी हो गया।

​अब 12 घंटे तक काम

  • ​अब 12 घंटे तक काम

    श्रम विभाग ने श्रम कानूनों के तहत प्रदेश के रजिटर्ड कारखानों को युवा श्रमिकों से कुछ शर्तों के साथ एक दिन में 12 घंटे तक काम करवाने की छूट दी है। अभी तक श्रमिकों से काम कराने की अवधि अधिकतम आठ घंटे थी। इस छूट के बाद कारखाने में युवा श्रमिक से एक कार्य दिवस में अधिकतम 12 घंटे और एक हफ्ते में 72 घंटे से अधिक काम नहीं लिया जाएगा। कानून के मुताबिक, अब तक एक दिन में अधिकतम आठ घंटे और एक हफ्ते में 48 घंटे काम कराने का नियम था। अब ओवरटाइम की जगह मजदूरी के घंटे के हिसाब से भुगतान किया जाएगा।

  • ​15000 से कम है वेतन, तो नहीं होगी कटौती

    उत्तर प्रदेश के श्रम विभाग में 40 से अधिक प्रकार के श्रम कानून हैं। यूपी सरकार के नए अध्यादेश के तहत इनमें से लगभग आठ को बरकरार रखा जा रहा है। इनमें 1976 का बंधुआ मजदूर अधिनियम, 1923 का कर्मचारी मुआवजा अधिनियम और 1966 का अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम के अलावा महिलाओं और बच्चों से संबंधित कानूनों के प्रावधान जैसे कि मातृत्व अधिनियम, समान पारिश्रमिक अधिनियम, बाल श्रम अधिनियम शामिल हैं। इसके साथ ही मजदूरी भुगतान अधिनियम की धारा 5 को बरकरार रखा गया है, जिसके तहत प्रति माह 15,000 रुपये से कम आय वाले व्यक्ति के वेतन में कटौती नहीं की जा सकती है।

  • ​ट्रेड यूनियन की अनिवार्यता नहीं

    यूपी सरकार ने ट्रेड यूनियन ऐक्ट, 1926 से भी उद्योगों को छूट दे दी है। कर्मचारियों के अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए ट्रेड यूनियन बहुत मजबूत माध्यम हैं। इन यूनियनों की मदद से ही श्रमिकों द्वारा कंपनी के मैनेजमेंट को कर्मचारियों की उचित मांगों को मनवाया जाता है। अब ट्रेड यूनियन की अनिवार्यता समाप्त हो गई है।

  • ​इनफॉर्मल इकॉनमी का खतरा

    यूपी सरकार के नए अधिनियम के तहत दी जाने वाली छूट से कई तरह के नुकसान भी होते दिख रहे हैं। श्रम संगठनों के मुताबिक, ‘इन संशोधनों के बाद इन मजदूरों को मिलने वाले कई लाभ बंद हो जाएंगे। ग्रेच्युटी के भुगतान से बचने के लिए उद्योग श्रमिकों को ठेके पर हायर करेंगे और उनको इनफॉर्मल इकॉनमी में काम कराएंगे।’

  • ​कभी भी चली जाएगी कर्मचारी की नौकरी?

    श्रमिक संगठनों का आरोप है कि नए अध्यादेश के मुताबिक, मिल या कारखाना मालिक कभी भी कर्मचारी को निकाल सकता है, जबकि अभी तक इसके लिए नोटिस देनी पड़ती थी। हालांकि इस आरोप में कितना तथ्य है, इसे लेकर अभी स्थिति साफ नहीं है क्योंकि सरकार की ओर से अभी आधिकारिक राजपत्र जारी नहीं हुआ है। सरकार द्वारा जारी बुलेट पॉइंट्स में भी इसके बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है।

  • ​खुलेंगे निवेश के नए रास्ते: मौर्य

    वहीं उत्तर प्रदेश के श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य का कहना है कि यह अध्यादेश मजदूरों और राज्य के हित में है। विपक्ष पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा, ‘मगरमच्छ के आंसू बहाने वालों को नहीं पता है कि हमने श्रमिकों के सभी हितों को ध्यान में रखते हुए निवेश के नए रास्ते खोले हैं। हमने नए निवेश और पुनर्जीवित होने वाले उद्योग, दोनों की संभावनाओं को खोल दिया है। हम चाहते हैं कि यूपी लौट रहे प्रवासी श्रमिकों को यहां रोजगार मिले और यही वजह है कि हम यह अध्यादेश लाए हैं।’

इसके साथ ही अब आठ घंटे से अतिरिक्त काम कराने पर कारखाना मालिक श्रमिक को ओवर टाइम देना होगा। नियमों के मुताबिक, ओवरटाइम मजदूरी की दरों के हिसाब से दूना होगा।

श्रम कानून में बदलाव पर RSS के संगठन ने भी किया था विरोध

RSS के भारतीय मजदूर संघ (BMS) ने श्रम कानून में इस परिवर्तन को मजदूर विरोधी बताया था। संगठन के प्रवक्ता ने कहा था कि यह अंतरराष्ट्रीय अधिकारों का उल्लंघन है। प्रवक्ता ने कहा कि सरकारों को इस फैसले को तुरंत वापस लेना चाहिए। संगठन ने यहा भी कहा है कि वह इस फैसले के खिलाफ प्रदर्शन करेगा। कोरोना संकट की वजह से ठप पड़े कारोबार को गति देने के नाम पर यूपी में औद्योगिक इकाइयों, प्रतिष्ठानों और कारखानों को एक हजार दिन (यानी तीन साल) के लिए दी गई श्रम कानूनों में छूट देदी है। मजदूर संगठनों के साथ ही विरोधी दलों का कहना है कि औद्योगिक घरानों को मिली इस छूट का खामियाजा प्रदेश का मजदूर भुगतेगा। साथ ही इस छूट से स्पष्ट हो गया है रोजगार देने का ऐलान भी बीजेपी का चुनावी जुमला था।

नए बदलावों के तहत कभी भी जा सकती है नौकरी?

श्रमिक संगठनों का आरोप है कि नए अध्यादेश के मुताबिक, मिल या कारखाना मालिक कभी भी कर्मचारी को निकाल सकता है, जबकि अभी तक इसके लिए नोटिस देनी पड़ती थी। हालांकि इस आरोप में कितना तथ्य है, इसे लेकर अभी स्थिति साफ नहीं है क्योंकि सरकार की ओर से अभी आधिकारिक राजपत्र जारी नहीं हुआ है। सरकार द्वारा जारी बुलेट पॉइंट्स में भी इसके बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है।

Web Title up government takes its decision back to to extend working hours from 8 to 12 hours(News in Hindi from Navbharat Times , TIL Network)

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