पाकिस्तान, तुर्की, बांग्लादेश, सऊदी अरब, ईरान सहित दुनियभार में इन दिनों मुसलमान फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से बेहद खफा हैं। जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे हैं, मैक्रों के पुतले जलाए जा रहे हैं। फ्रांस के उत्पादों का बहिष्कार किया जा रहा है तो कई इस्लामिक देश राजनयिक रिश्ते तोड़ने पर विचार कर रहे हैं। आखिर ऐसा क्या होगा गया? मैक्रों से मुसलमान इतने नाराज क्यों हैं? आइए आपको पूरी बात विस्तार से बताते हैं। लेकिन इससे पहले जानते हैं कि इस्लामिक देशों में किस तरह हंगामा बरपा है।

तुर्की के राष्ट्रपति रिसेप तैयप एर्दोगान ने मैक्रों की आलोचना करते हुए कहा है कि फ्रांस के राष्ट्रपति को इस्लाम के प्रति उनके रवैये को लेकर मानसिक जांच करानी चाहिए। सऊदी अरब, ईरान और पाकिस्तान सहित इस्लामिक देशों के नेता कुछ इसी अंदाज में मैक्रों को खरी-खोटी सुना रहे हैं, जबकि बांग्लादेश, फिलिस्तीन जैसे देशों में हजारों लोगों ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया और फ्रेंच सामानों के बहिष्कार का ऐलान किया।  

ईरान ने फ्रेंच राजदूत को किया तलब
ईरान के विदेश मंत्रालय ने इस्लाम और मुसलमानों को लेकर मैक्रों के बयान से नाराज होकर फ्रांस के राजदूत को तलब किया। ईरान के विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि राजदूत के सामने मैक्रों के बयान पर कड़ी आपत्ति जाहिर की गई और कहा गया कि इस्लाम के पैगंबर और इस्लाम के सिद्धांतों का अपमान स्वीकार नहीं किया जाएगा, चाहे ऐसा करने वाला किसी भी पद पर हो। 

सऊदी अरब ने की निंदा, पाकिस्तानी संसद में प्रस्ताव पास
सऊदी अरब कहा है कि वह पैगंबर मोहम्मद के कार्टून बनाने और इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ने के प्रयास की निंदा करता है। हालांकि, सऊदी ने फ्रांस में पैगंबर की तस्वीरों को दिखाए जाने को लेकर इस्लामिक देशों द्वारा कार्रवाई की अपील को लेकर कुछ नहीं कहा है। विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में यह भी कहा गया है कि सऊदी अरब हर आतंकी घटना की निंदा करता है, चाहे जिसने भी यह किया होगा। दूसरी तरफ पाकिस्तान के दोनों सदनों में इस मुद्दे पर निर्विरोध प्रस्ताव पारित किया गया। नेशनल असेंबली में पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी की ओर से पेश किया गया। विपक्षी दलों ने फ्रांस से पाकिस्तान के राजदूत को वापस लेने की मांग करते हुए प्रस्ताव पास किया। हालांकि, फ्रांस में तीन महीने से पाकिस्तान के राजदूत का पद खाली है।

फ्रांस के उत्पादों के बहिष्कार की अपील
फ्रांस के राष्ट्रपति से खफा दुनियाभर के मुलसमान अब उन्हें सबक सिखाने की बात कर रहे हैं और इसके लिए उन्होंने फ्रांस के उत्पादों के बहिष्कार की मुहिम छेड़ दी है। सोशल मीडिया के अलावा सड़कों पर हो रहे प्रदर्शनों में यह मांग जोरशोर से उठाई जा रही है। मध्य पूर्व के देशों में इस अपील ने काफी जोर पकड़ लिया है। फ्रांस ने कई मध्य पूर्वी देशों में अपने उत्पादों के बहिष्कार को आधारहीन बताते हुए कहा है कि “अल्पसंख्यक कट्टरपंथी” यह मुहिम चला रहे हैं। 

आखिर क्या है कलह की जड़?
असल में इस विवाद की शुरुआत 16 अक्टूबर को हुई जब फ्रांस में सैमुअल पैटी नाम के एक शिक्षक की स्कूल के पास ही गला काटकर हत्या कर दी गई। सैमुअल पैटी ने अपने स्टूडेंट्स को पैगंबर मोहम्मद के कार्टून दिखाए थे। पेरिस से 24 किलोमीटर की दूरी पर इस नृशंस हत्या को 18 साल के एक नवयुवक ने अंजाम दिया। गिरफ्तारी के बाद आरोपी ने बताया कि वह पैंगबर मोहम्मद के कार्टून बनाए जाने को लेकर खफा था। 

मैक्रों से क्यों नाराज हैं मुसलमान?
सैमुअल पैटी की हत्या से फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों बेहद नाराज हुए और उन्होंने पैटी के प्रति सम्मान जाहिर किया। इसके बाद पैटी को मरणोपरांत फ्रांस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया गया और इस समारोह में खुद मैक्रों शामिल हुए। उन्होंने इसे इस्लामिक आतंकवाद करार दिया था। कई इस्लामिक देशों को यह नागवार गुजरा और उन्होंने पैगंबर का अपमान करने वाले को सम्मानित किए जाने की निंदा की।

पिछले हफ्ते मैक्रों की टिप्पणी से मुस्लिम-बहुल देश नाराज हो गए, जिसमें उन्होंने पैगंबर मुहम्मद के कार्टून के प्रकाशन या प्रदर्शन की निंदा करने से इनकार कर दिया था। फ्रांस धार्मिक व्यंग्य को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आने वाली चीजों में से एक मानता है, जबकि कई मुसलमान पैगंबर पर किसी भी कथित व्यंग्य को गंभीर अपराध मानते हैं। पैटी की हत्या से पहले ही मैक्रों और मुसलमानों के बीच दरार बढ़ गई थी जब उन्होंने 2 अक्टूबर को इस्लामिक अलगाववादियों के खिलाफ मुहिम छेड़ने का ऐलान किया और कहा कि केवल उनके देश में नहीं बल्कि दुनियाभर में इस्लाम खतरे में है। उस दिन उन्होंने घोषणा की कि उनकी सरकार 1905 के उस फ्रेंच कानून को मजबूत करेगी जो चर्च और राज्य को अलग करता है। अपने भाषण में, मैक्रों ने दावा किया कि फ्रांस में शिक्षा और अन्य सार्वजनिक क्षेत्रों से धर्म को अलग करने के लिए मुहिम में “कोई रियायत” नहीं दी जाएगी। नया बिल दिसंबर में आने की उम्मीद है।

पहले से चौड़ी हो रही है खाई
शिक्षक की हत्या के बाद सरकार पर मुस्लिम संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने का आरोप है। कई जगहों मस्जिदों पर हमले की बात भी कही जा रही है। फ्रांस सरकार और मुसलमानों के बीच खाई काफी पहले से बढ़ती आ रही है। 2004 में फ्रांस पहला यूरोपीय देश बना जिसने हिजाब को बैन कर दिया। कुछ साल बाद उसने हिजाब पहनने और चेहरा ढकने के खिलाफ कानून बना दिया। पेरिस से प्रकाशित होने वाली व्यंग्य पत्रिका में भी पैगंबर का कार्टून छापा गया था जिसको लेकर पत्रिका के दफ्तर पर आतंकी हमला हुआ था। हाल ही में इस पत्रिका ने एक बार फिर पैगंबर के कार्टून को छापा है। इसको लेकर भी दुनियाभर के मुसलमान नाराज हुए थे।





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