लवगुरु के नाम से विख्यात प्रोफेसर मटुकनाथ ने भागलपुर जिले के अपने पैतृक गांव जयरामपुर में एक प्रेम विद्यालय खोलने का निर्णय लिया है। भागलपुर में पत्रकारों से बातचीत करते हुए मटुकनाथ ने कहा कि इस स्कूल का नाम ओशो इंटरनेशनल स्कूल होगा। उन्होंने इस साल अप्रैल में स्कूल के शुरू हो जाने की उम्मीद जताई है। 

यह पूछे जाने पर कि ओशो के नाम से वह स्कूल का नामकरण क्यों कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि दुनिया का एकमात्र और सबसे बड़े लव गुरु ओशो हैं और मैंने उनसे ही प्रेम का पाठ सीखा है। उनकी तुलना में मैं कुछ भी नहीं हूं। फिर भी, लोग मुझे लव गुरु के रूप में पहचानते हैं। मटुकनाथ ने आगे कहा कि मैं उनके समान लव गुरु नहीं हो सकता, लेकिन हां मैं निश्चित रूप से उनका छात्र हूं। इसलिए, मैंने उनके नाम (ओशो) पर एक स्कूल खोलने का फैसला किया है।

बता दें कि साल 2020 में मटुकनाथ अपनी जूली को लाने सात समुंदर पार पहुंच गए थे। मटुकनाथ ने उस समय बताया कि पिछले दिनों जूली के एक संदेश ने उन्हें त्रिनिदाद एंड टोबैगो के सेंटगस्टीन तक पहुंचा दिया। लवगुरु ने कहा कि गृहस्थ से होकर ही संन्यास तक का रास्ता जाता है। इसके विपरीत जूली बिना गृहस्थ आश्रम जिए संन्यास की ओर चल पड़ीं। उनके स्वास्थ्य खराब होने की यह सबसे बड़ी वजह रहीं। जूली फिर से गृहस्थ आश्रम में जीवन जीना चाहती हैं और इस वजह से उन्होंने पटना वापस लाने का संदेश भेजा था। 

मटुक नाथ ने बताया कि दरअसल जूली का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य खराब चल रहा था। मीडिया में जूली को उनके हाल पर छोड़ने की खबरों का खंडन करते हुए प्रो. मटुकनाथ ने कहा कि उनके प्रति शत्रु भाव रखने वाले लोगों ने ऐसा प्रचारित करने की कोशिश की लेकिन जूली को वापस लाने पर उनका जवाब उन्हें मिल जाएगा। वे अपने शुभचिंतकों को बताना चाहते हैं कि जूली अब चल-फिर रही हैं। खाना-पीना सामान्य हो चुका है और जल्द ही पटना में रहकर स्वास्थ्य लाभ करेंगी। 

जूली के भीतर वैराग्य का भाव 2014 से ही दिखने लगा था, उन्हें छोड़ा नहीं था
यादों के पन्ने पलटते हुए प्रो. मटुकनाथ ने कहा कि जूली को उन्होंने छोड़ा नहीं था बल्कि वे उनकी निजी स्वतंत्रता के समर्थक थे। लवगुरु ने बताया कि जूली के भीतर वैराग्य का भाव 2014 से ही दिखने लगा था। वे भजनों पर नृत्य करती थीं और चिंतन-मनन में लीन रहती थीं। वर्ष 2016 तक वे आध्यात्मिक वातावरण में डूबने के लिए पटना से कभी-कभार वृंदावन, होशियारपुर व बाकी धर्मस्थलों पर जाया करती थीं। वैराग्य की ओर जूली का झुकाव उन्होंने वर्ष 2016 के आरंभ में देखा। उन्होंने जूली को सलाह दी कि वो चाहें तो निश्चिंत भाव से वैराग्य जी सकती हैं। बकौल प्रो. मटुकनाथ, जूली के मानसिक स्वास्थ्य पर वर्ष 2016 के बाद ही असर होना शुरू हुआ। 

पहले संपर्क में रहीं, अचानक फोन आना हो गया था बंद 
जूली पटना से मटुकनाथ का घर छोड़कर ईश्वर में ध्यान लगाने वृंदावन समेत दर्जनों जगहों पर भ्रमण करती रहीं। प्रो. मटुकनाथ ने बताया कि इस बीच वे फोन के जरिए संपर्क में भी रहीं लेकिन अचानक  जूली का फोन आना बंद हो गया। बाद में उन्हें जानकारी मिली कि वे अस्वस्थ हालत में त्रिनिदाद एंड टोबैगो पहुंच गई हैं। वे किसी को जीवित बुद्ध मानने लगी थीं और उनका अनुसरण करते हुए यहां इस हालत तक पहुंच गईं।



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