कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) संगठन में योगदान देने वाली कंपनियों की संख्या, पहली तिमाही के नतीजे और मोबाइल क्षेत्र में निर्माण के लिए होड़ से देश की अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने के संकेत दिखने लगे हैं। जुलाई में ईपीएफओ में योगदान देने वाली कंपनियों की संख्या में इजाफा हुआ है जो इस बात का संकेत है कि कंपनयों की स्थिति धीरे-धीरे सुधर रही है।
नियमों के मुताबिक 20 से अधिक कर्मचारी वाली कंपनियों को मूल वेतन का 12 फीसदी योगदान कर्मचारी के ईपीएफओ खाते में आशंदान के तौर पर करना पड़ता है। वहीं निर्माण और सेवा क्षेत्र से जुड़ी सूचीबद्ध करीब एक हजार कंपनियों के तिमाही नतीजे निराश करने वाले हो सकते हैं। लेकिन आईटी, दवा और सीमेंट सहित कुछ अन्य क्षेत्रों की कंपनियों के नतीजे अर्थव्यवस्था में रिकवरी का संकेत दिखा रहे हैं। दवा और सीमेंट कंपनियों का मुनाफा 50 फीसदी तक बढ़ा है। विशेषज्ञों का कहना है कि रोजगार भी आर्थिक तेजी का संकेत देते हैं। मोबाइल, आईटी, दवा और रियल एस्टेट में नौकरियों की मांग तेजी से बढ़ी है।
क्या कहते हैं आंकड़े
153,500 कंपनियों ने जुलाई और अगस्त में फिर से ईपीएफओ में अंशदान देना शुरू किया
549,037 कंपनियां दे रहीं थी फरवरी में अंशदान जो अप्रैल में घटकर 332,773 रह गई थी
3.8 करोड़ व्यक्तिगत अंशधारकों की संख्या रह गई थी अप्रैल में जो अब अगस्त में बढ़कर 4.6 करोड़ पर पहुंच गई
50 हजार नई नौकरियां मिलेंगी मोबाइल क्षेत्र में साल के अंत तक
60 फीसदी लाभ बढ़ा है पहली तिमाही में केमिकल कंपनियों का
50.4 फीसदी मुनाफा बढ़ा है इस पहली तिमाही में सीमेंट कंपनियों का
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ईपीएफओ में योगदान देने वाली कंपनियां बढ़ीं
सरकार ने कोरोना संकट को देखते हुए कंपनियों को ईपीएफओ में योगदान में कुछ रियायत दी थी। जुलाई में करीब डेढ़ लाख कंपनियों ने ईपीएफओ में अंशदान किया है जो एक सकारात्मक संकेत है। इसमें 64 हजार वह कंपनियां भी शामिल जिन्होंने फरवरी में अंशदान किया था। एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने कहा कि जुलाई में ईपीएफओ के योगदान को देखकर लग रहा है कि अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रही है। अर्थशात्री और एक्सएलआरआई के प्रोफेसर के.आर. श्यामसुंदर का कहना है कि अर्थव्यवस्था में सुधार एक धीमी प्रक्रिया होती है और कंपनियों को कारोबार पटरी पर लाने में वक्त लगता है। हालांकि, इसके बाजवदू निर्माण, कपड़ा और ई-कॉमर्स में तेज रिकरवी एक अच्छा संकेत है। रियल एस्टेट और कपड़ा क्षेत्र में रिकवरी साफ दिख रही क्योंकि प्रवासी वापस शहर आने लगे हैं।
लॉकडाउन के बावजूद इन कंपनियों के कारोबार पर ज्यादा असर नहीं
कोरोना संकट का असर कंपनियों के तिमाही नतीजों पर भी पड़ा है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही अप्रैल-जून में 717 सूचीबद्ध निर्माण कंपनियों का राजस्व और शुद्ध लाभ घटकर 22 तिमाही के निचले स्तर पर पहुंच गया। सेवा क्षेत्र की 253 कंपनियों का भी कमाई में बड़ी गिरावट दर्ज की गई। इसके बाजवदू आईटी, फार्मा, सीमेंट, बैंकिंग और केमिकल क्षेत्र की कंपनियों ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया। बैंकिंग क्षेत्र ने खर्च कटौती के मद्देनजर लॉकडाउन में टेक्नोलॉजी पर ज्यादा जोर दिया जिसका फायदा आईटी कंपनियों को मिला। दवा और केमिकल क्षेत्र की वृद्धि कोरोना संकट में स्वास्थ्य क्षेत्र की बढ़ती मांग से हुई। इस अवधि में दावा क्षेत्र का मुनाफा 20 फीसदी से अधिक बढ़ा है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि इस अवधि में सीमेंट क्षेत्र की वृद्धि चौंकानी वाली है और यह अर्थव्यवस्था में रिकवरी का मजबूत संकेत है।
मोबाइल कंपनियों ने निवेश और रोजगार की होड़
उत्पादन आधारित निर्माण योजना के तहत मेक इन इंडिया अभियान में शामिल होने के लिए नामचीन कंपनियों में निवेश करने और रोजगार देने की होड़ लग गई है। दूरसंचार मंत्रालय को 22 कंपनियों ने आवेदन दिया है। इसके तहत तीन लाख प्रत्यक्ष और नौ लाख अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेंगे। सूत्रों के मुताबिक एप्पल के लिए फोन बनाने वाली ताइवान की व्रिस्टॉन ने बेंगलुरु स्थित कंपनी के नारासापुरा प्लांट में नए आईफोन का उत्पादन शुरू कर दिया है। इस प्लांट में कंपनी ने करीब 2,900 करोड़ रुपये का निवेश किया है उसकी इस नए प्लांट में करीब 10 हजार कर्मचारियों को रखने की योजना है। इसी तरह अन्य कंपनयों ने भी नौकरियां देने की योजना बनाई है जिसके तहत साल के अंत तक कम से कम 50 हजार लोगों को नौकरियां मिलेंगी।
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