हाइलाइट्स:
- लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र को लेकर एक बहस छिड़ी हुई है
- लालकिले की प्राचीर से पीएम मोदी ने किया था इशारा
- भारतीय वयस्कता अधिनियम 1875 की धारा 3 के मुताबिक 18 वर्ष की आयु पूरी हो जाने पर व्यक्ति वयस्क
- पीएम मोदी ने लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र को 18 से बढ़ाकर 21 कर देने का इशारा दिया
भारत में इस वक्त लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र (Minimum Marriage Age of Girls) को लेकर एक बहस छिड़ी हुई है। इस बहस ने जन्म तब लिया जब स्वतंत्रता दिवस (Independence Day PM Modi Speech) के दिन लाल किले की प्राचीर से पीएम मोदी ने एक इशारा किया। पीएम मोदी ने लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र को 18 से बढ़ाकर 21 कर देने का इशारा दिया। अब देश के अलग-अलग हिस्सों में इसको लेकर बहस हो रही है कि क्या अभी जो नियम है जिसमें कि लड़कियों के 18 साल होते ही वो शादी के लिए वैध हो जाती हैं इसमें कोई फेरबदल होगा या नहीं।
भारत में कुप्रथाएं
इतिहास के पन्नों को अगर कुरेदा जाए तो भारत में ये एक बड़ी समस्या थी। यहां पर कुप्रथाओं का अंबार था। बहुत पहले जब दो महिलाएं गर्भवती होती थीं तो दोनों परिवारों के बीच एक रिश्ता तय कर दिया जाता था। दोनों के बीच ऐसा होता था कि जिसके भी लड़का होगा और जिसके भी लड़की होगी आगे कुछ सालों के बाद दोनों की शादी कर दी जाएगी। इसके अलावा यहां बहुत छोटी उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती थी। जिसके बाद एक कानून लाया गया और इस कानून ने तमाम लड़कियों की जिंदगी बचाई।
कानून की शुरूआत
‘बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम (Child Marriage India laws) 1929 28 सितंबर 1929 को इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ऑफ इंडिया में पारित हुआ। इसमें लड़कियों की शादी की उम्र (Child Marriage India laws) 14 साल और लड़कों की उम्र 18 साल तय की गई जिसे बाद में लड़कियों के लिए 18 और लड़कों के लिए 21 कर दिया गया। इसके प्रायोजक हरबिलास सारडा के बाद इसे शारदा अधिनियम के नाम से जाना जाता है। यह 1 अप्रैल 1930 को छह महीने बाद लागू हुआ और यह केवल हिंदुओं के लिए नहीं बल्कि ब्रिटिश भारत के सभी पर लागू होता है।
क्या कहता है कानून
बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम (Child Marriage India laws), 2006 के तहत 21 साल से कम का लड़का और 18 साल से कम उम्र की लड़की कानून विवाह योग्य नहीं है। भारतीय वयस्कता अधिनियम 1875 की धारा 3 के मुताबिक 18 वर्ष की आयु पूरी हो जाने पर व्यक्ति वयस्क हो जाता है। इस आयु के बाद कानून की दृष्टि में वह अपना भला-बुरा खुद समझता है। इस आधार पर एक वयस्क लड़का अथवा लड़की अपनी इच्छानुसार कहीं आ-जा सकते है एवं किसी के साथ भी रह सकते हैं।
1978 में शारदा ऐक्ट में बदलाव
1978 में शारदा ऐक्ट में बदलाव के बाद शादी के लिए लड़कियों की न्यूनतम उम्र को 15 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष किया गया था। सन् 1928 में बाल विवाह पर पूर्णतया रोक रोक लगाने हेतु एक कानून पारित किया गया जिसे शारदा के नाम से जाना जाता है। बाल विवाह रोकने के लिए शारदा एक्ट अधिनियम भी प्रभावी नहीं रहा। जिसके कारण सन 1978 में शारदा एक्ट अधिनियम में संशोधन किया गया। यह अधिनियम अब बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1978 के नाम से जाना जाता हैं। लड़कों के विवाह हेतु न्यूनतम आयु 21 वर्ष और लड़कियों के लिए न्यूनतम आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई।
मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Ratio (MMR))
पीएम मोदी की चिंता जायज है और उसका कारण है Maternal Mortality Ratio यानी मातृ मृत्यु दर। भारत में कम उम्र में शादियों की वजह से लड़कियां गर्भवती होती है और जब वह बच्चे को जन्म देती हैं तो उनकी मौत तक हो जाती है। इसी को मातृ मृत्यु दर कहते हैं। भारत सरकार के नीति आयोग की वेबसाइट से खंगाले गए आंकड़ों के मुताबिक भारत में प्रति लाख जन्म देने वाली माताओं में 2014-2016 के आंकड़ों के मुताबिक 130 माताओं की मौत हो जाती है। ये आंकड़ा अभी कुछ सालों में सुधरा है वरना 2004-06 में ये आंकड़ा 254 हुआ करता था। भारत के अंदर सबसे ज्यादा मातृ मृत्यु दर आसाम में है। जहां पर एक लाख महिलाओं में बच्चे पैदा करते वक्त या उसके तुरंत बाद 237 महिलाओं की मौत हो जाती है। वहीं ये रेशियों केरल में सबसे कम है। केरल में प्रति लाख महिलाओं में 46 महिलाएं मौत की नींद सो जाती हैं।