तादाद 20 करोड़ तक होने का अनुमान, प्लानिंग में आ रही दिक्कत

[ ईटी ब्यूरो | नई दिल्ली ]

प्रवासी मजदूरों के पलायन और उनके जल्द नहीं लौट पाने की आशंका से इंडस्ट्री और सरकार, दोनों पसोपेश में दिखाई दे रहे हैं। सरकारें इस संबंध में कोई ठोस योजना भी नहीं बना पा रही हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह देश में माइग्रेंट वर्कर्स का डेटाबेस नहीं होना है। डेटाबेस होता तो यह पता चलता कि किस राज्य या शहर में उनकी तादाद कितनी है। जहां एक ओर जनगणना और आर्थिक सर्वे के आधार पर पूरे देश में माइग्रेंट वर्कर्स की तादाद 10-13 करोड़ आंकी जा रही है, वहीं ट्रेड यूनियन और एनजीओ यह संख्या 20 करोड़ तक बताते हैं।

केंद्रीय श्रम मंत्रालय, NSSO और आर्थिक सर्वे में माइग्रेंट वर्कर्स को लेकर जितने भी अनुमान पेश किए गए हैं, वे साल 2011 की जनगणना पर आधारित हैं। इनके मुताबिक सबसे ज्यादा ग्रॉस वैल्यू एडेड (GVA) वाले राज्यों में कुल वर्कफोर्स का 30% माइग्रेंट वर्कर्स हैं। इनमें अधिकतर कैजुअल वर्कर्स के लगातार माइग्रेट होते रहने से किसी एक अवधि में कहीं भी इनकी संख्या तय करना मुश्किल है। दिल्ली सरकार के आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय के मुताबिक राजधानी में 2018-19 में प्रवासी मजदूरों की तादाद कुल वर्किंग पॉपुलेशन का 27% थी। दिल्ली की वर्किंग पॉपुलेशन 53.5 लाख आंकी गई है, जिससे माइग्रेंट्स की संख्या करीब 14.4 लाख बैठती है। दिल्ली सरकार ने इसी महीने एक सर्वे में दावा किया था कि उसके नाइट शेल्टर्स पर माइग्रेंट वर्कर्स में से सिर्फ 10% अपने घर जाना चाहते हैं। इंडस्ट्री और ट्रेड यूनियनों ने इस सर्वे को सिरे से खारिज किया है। उनका दावा है कि दिल्ली में अकेले कंस्ट्रक्शन वर्कर्स की संख्या ही 5-7 लाख है, जबकि सरकार ने 30 हजार से भी कम को रजिस्टर किया है।

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) की जनरल सेक्रेटरी अमरजीत कौर ने बताया, ‘सरकार के पास माइग्रेंट वर्कर्स का डेटा नहीं है क्योंकि 40 साल बाद भी किसी राज्य सरकार ने इंटर-स्टेट माइग्रेंट वर्कर्स एक्ट-1978 को लागू करने की जहमत नहीं उठाई और न ही केंद्र ने कोई दिलचस्पी ली। यह कानून उनका रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करता है और दोनों ही जगहों पर सरकारों की जिम्मेदारियां तय करता है। देश में माइग्रेंट वर्कर्स की तादाद कम से कम 20 करोड़ है, जिनमें 50% अपने राज्य में ही माइग्रेट होते हैं।’ माइग्रेंट वर्कर्स के लिए काम करने वाले एनजीओ आजीविका ब्यूरो के मुताबिक सबसे ज्यादा करीब 4 करोड़ लोग कंस्ट्रक्शन, 2 करोड़ घरेलू कार्य और 1 करोड़ टेक्सटाइल से जुड़े कामों में लगे हैं।

सीएसडीएस ने अपने एक सर्वे के हवाला से कहा है कि दिल्ली में कम से कम 65% माइग्रेंट वर्कर्स अपने घर लौटना चाहते हैं। सही तादाद नहीं पता होने से ही प्लानिंग में दिक्कत आ रही है। उद्योग संगठनों का सर्वे कहता है कि 40% कैजुअल माइग्रेंट वर्कर घर जाने के बाद 6 से 12 महीने बाद ही लौटते हैं।



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