लॉकडाउन का असर जिंदगी और मौत दोनों पर ही देखने को मिल रहा है. हालात ये हैं कि अब अस्थि कलशों को बाहर रखना पड़ रहा है. मोक्ष के इंतजार में लगे अस्थि कलशों के अंबार से लोगों की भावनाएं भी आहत हुई हैं.
जयपुर: कोरोना संक्रमण ने दुनियाभर में आर्थिक हानि तो पहुंचाई ही हैं साथ ही सामाजिक ताना-बाना भी छिन्न-भिन्न कर दिया है. संक्रमण से मरने वाले कई लोगों का अंतिम संस्कार सरकार ने ही किया है. वहीं कई जगह सामान्य मौत होने पर भी लोग अंतिम संस्कार के बाद की क्रियाएं पूरी नहीं कर पा रहे हैं.
कोटा शहर के मुक्तिधामों में अस्थि कलश रखने की लॉकर्स फुल हो गए हैं. साधन नहीं होने से अस्थियां अंतिम क्रियाओं का इंतजार कर रही हैं क्योंकि हिंदू समाज मे मान्यता है की अंतिम क्रिया के बाद अस्थियों को गंगा या अन्य किसी नदी की धारा मैं प्रवाहित किया जाता है, लेकिन कोरोना वायरस की वजह से ऐसा नहीं हो पा रहा है.
कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन में राज्यों से बाहर जाने की इजाजत नहीं दी जा रही है, जिससे मोक्ष स्थल में अस्थि कलश जमा होते जा रहे हैं. आदर्श सेवा समिति स्टेशन मुक्तिधाम के अध्यक्ष हरि प्रकाश अग्रवाल ने बताया कि कोटा में सबसे पहले अस्थि कलश रखने की शुरूआत यहां की गई थी जिसमें 16 लॉकर अस्थि कलश रखने के लिए बनाए थे, जो फुल हो चुके हैं. दाह संस्कार के बाद फूल चुनकर उनकी अस्थियां अस्थि कलश में रख देते हैं.
हिंदू मान्यता के अनुसार वे इन अस्थि कलश को हरिद्वार या कहीं और विसर्जन के लिए ले जाते हैं, ताकि मृतक को मोक्ष मिल सके, लेकिन लॉकडाउन में उन्हें इसकी इजाजत नहीं मिल रही है, जिसके चलते कई लोग तो अपने घर ही अस्थि कलश लेकर जा रहे हैं और कईलोग मुक्तिधाम में ही अस्थि कलश को लॉकर में रख रहे हैं, लेकिन अब लॉकर फुल होने पर कई लोग पेड़ के तो कई वाटर कूलर में ही अस्थि कलश को बांध गए. इसके साथ कुछ परिजन ने केशवराय पाटन में ही अस्थियों का विसर्जन कर दिया.
कोटा के अन्य मुक्तिधाम में जहां व्यवस्था है वहां लोगों ने अस्थि कलश मुक्तिधाम में रखे हुए हैं. जहां व्यवस्था नहीं हैं ऐसे में लोग अपने घर पर ही अस्थि कलश ले गए और अब लॉक डाउन खुलने का इंतजार कर रहे हैं. कोटा में करीब एक हजार से अधिक अस्थि कलशों को विसर्जन का इंतजार है.
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