कोरोना की तरह इस बार भी अमेरिका की छवि को तार-तार करने का काम डॉनल्ड ट्रंप कर रहे हैं. वो प्रदर्शन कर रहे अपने ही नागरिकों पर सेना के इस्तेमाल की धमकी दे रहे हैं.
नई दिल्ली: अमेरिका में लगी आग, प्रदर्शनकारियों का गुस्सा अमेरिकी समाज में आ चुकी दरार और दूरियों का सबूत है. जो बताता है कि यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका अब डिवाइडेड स्टेस्ट्स ऑफ अमेरिका बन चुका है, बंट चुका है. चीन को माइंड गेम खेलने बहुत अच्छे से आता है, भारत हो या अमेरिका, वो सब पर मानसिक दबाव बनाने की कोशिश करता है. लद्दाख में हमारे सामने तो उसकी दाल गल नहीं रही इसीलिए वो अब अपना ये दांव अमेरिका पर आजमा रहा है. कोरोना फैलाकर फंसा चीन अभी तक दुनिया को हांगकांग पर जवाब दे रहा था, सफाई पेश कर रहा था. लेकिन अमेरिका में पुलिस हिरासत में एक अश्वेत की मौत के बाद बने हालात ने तो मानो उसकी मुराद ही पूरी कर दी हो. अब अमेरिका से आने वाली दंगों की ऐसी तस्वीरों को चीन अमेरिका के खिलाफ इस्तेमाल कर रहा है, जिसमें उसका हथियार बना है उसका सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स. जो सोशल मीडिया पर लगातार ऐसे वीडियो ट्वीट कर रहा है, जिससे अमेरिका की छवि एक फासीवादी देश की बने.
कोरोना की तरह इस बार भी अमेरिका की छवि को तार-तार करने का काम डॉनल्ड ट्रंप कर रहे हैं. वो प्रदर्शन कर रहे अपने ही नागरिकों पर सेना के इस्तेमाल की धमकी दे रहे हैं. डॉनल्ड ट्रंप के ये तेवर हिंसा वाले राज्यों के गवर्नर को मंजूर नहीं हैं. हिंसा प्रभावित शहरों के मेयर और पुलिस चीफ इस मामले को धैर्य और अपनेपन से हैंडल करना चाहते हैं जो ट्रंप की सोच के बिलकुल उलट है. व्हाइट हाउस के बाहर ये सब लोग शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन पुलिस ने उन्हें हटाने के लिए रबर की गोलियां चलानी शुरू कर दीं. ये सब इसलिए किया गया क्योंकि राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को पास ही के सेंट जॉन चर्च जाना था. इसीलिए प्रदर्शनकारियों को जबरन हटा दिया गया. प्रदर्शनकारियों के हटने के बाद डॉनल्ड ट्रंप पैदल इस ऐतिहासिक चर्च में गए जिसे बीती रात प्रदर्शनकारियों ने नुकसान पहुंचाया था.
200 साल पुराने इस चर्च को चर्च ऑफ प्रेजिडेंट्स कहते हैं जिसके बाहर डॉनल्ड ट्रंप ने हाथ में बाइबल लेकर अपनी तस्वीरें खिंचवाई, जिसे बाद में उन्होंने ट्विटर पर पोस्ट भी किया और प्रदर्शनकारियों से सख्ती से निपटने की बात कही. अमेरिका का हाहाकार चीनी ड्रैगन को बहुत पसंद आ रहा है क्योंकि अमेरिका से आने वाली इन तस्वीरों के जरिए उसे अपना प्रोपगेंडा चलाने का मौका मिल रहा है, इसी सिलसिले में वो अपने सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स के जरिए ऐसे वीडियो ट्वीट कर रहा है, जिसमें अमेरिका की साख पर बट्टा लग रहा है. ऐसे ही एक तस्वीर में जो सीएटल की है, इस वीडियो में पुलिस वाले ने प्रदर्शनकारी के सिर को घुटने से दबा रखा है. बिलकुल ऐसे ही अश्वेत नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की मौत हुई थी जिसकी गर्दन पर शावेन नाम के पुलिस अफसर ने अपना घुटना रखा हुआ था, जिस वजह से जॉर्ड फ्लॉयड चिल्ला रहा था कि वो सांस नहीं ले पा रहा, पानी मांग रहा था.
ग्लोबल टाइम्स के एडिटर वीडियो बनाकर अमेरिका की इस नस्लीय हिंसा की तुलना हांगकांग से कर रहे हैं. ग्लोबल टाइम्स के एडिटर को आपने भी भारत को धमकाते हुए देखा होगा. चीन के इस अखबार को चीन की सरकार की आवाज माना जाता है जो दुनिया के सामने अमेरिका को एक अलोकतांत्रिक और फासीवादी देश साबित करना चाहता है, जो असल में चीन है. ये सच है कि अमेरिका में अश्वेत की मौत से लोग गुस्से में हैं, वहां पर लूटपाट भी हो रही है और इसी लूटपाट में कई ऐसी घटनाएं भी हो रही हैं जिनकी कल्पना अमेरिका में कम से कम नहीं की जाती है. चीन अपने मीडिया के जरिए दुनिया में ऐसी तस्वीरों को फैलाकर अमेरिका को एक अराजक समाज और बुरा सिस्टम साबित करने में लगा है, जहां मानवाधिकार सिर्फ दिखावा है. सोमवार को वॉशिंगटन से प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए अमेरिकी सेना के हेलिकॉप्टर ने नीचे उड़ान भरी.
अमेरिका ही नहीं चीन भारत को भी एक कमजोर लोकतंत्र साबित करने में लगा रहता है. ये सब चीन इसलिए करता है ताकि बंदिशों में कैद अपनी जनता को दिखा सके कि लोकतंत्र में तस्वीर कुछ अलग नहीं है. लेकिन चीन जानबूझकर ये नहीं दिखाता है कि कैसे अमेरिका के अलग राज्यों में पुलिस प्रदर्शनकारियों से सहानुभूति जता रही है, उनका भरोसा जीत रही है, जो चीन में असंभव है. अमेरिकी पुलिस पानी की बोलत बांटकर भी प्रदर्शनकारियों को शांत कर रहे हैं, विरोध के दौरान सुरक्षित होने की बात कहकर प्रदर्शनकारियों के गुस्से को शांत कर रहे हैं. लेकिन ये भारत और अमेरिका जैसे लोकतांत्रिक देशों में ही संभव है, चीन में तो इसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता, जहां के नागरिकों को कुछ भी करने की आजादी नहीं है जिसमें बिना पूछे घरेलू जानवर पालने पर ऐसा सलूक किया जाता है. रही बात हांगकांग की तो वहां पर चीन की पुलिस मौका मिलते ही सीधे प्रदर्शनकरने वालो नौजवानों को गोली मारती है.
ये बात सिर्फ अमेरिका को एक नाकाम देश या बुरा सिस्टम साबित करना भर नहीं है. कोरोना की वजह से अमेरिका की इकॉनमी को 597 लाख करोड़ रुपये की चपत लग चुकी है, ये रकम भारत की अर्थव्यवस्था से दोगुनी है. अमेरिका में इतने बड़े पैमाने पर दंगे से कंपनियां नया निवेश करने से हिचकिचाएंगी, जिससे कोरोना की वजह से 4 करोड़ अमेरिकी बेरोजगारों को नई नौकरी मिलने में देरी होगी. नया निवेश नहीं होगा, रोजगार न मिलने पर मार्केट में जिस मांग की उम्मीद थी वो नहीं आएगी, जिससे इकॉनमी की रिकवरी देर से होगी. इस हिंसा से लोगों की सेहत भी खतरे में आएगी, क्योंकि लोगों के खुलेआम निकलने से कोरोना के मामले और बढ़ेंगे. कुल मिलाकर अमेरिका का सारा ध्यान अपने घर को संभालने में ही लग जाएगा जिसका सीधा फायदा चीन को होगा, जो अपनी इकॉनमी को दोबारा पटरी पर लाने की कोशिशों में लग गया है. शायद इसीलिए अमेरिका का ये हाल देखकर चीन कहीं न कहीं खुश नज़र आता है.