भारत, चीन जैसे देशों में अप्रैल-मई में लागू दो महीने का सख्त लॉकडाउन आर्थिक तौर पर उन देशों की तुलना में ज्यादा सफल रहा है, जहां चार-छह माह तक आंशिक प्रतिबंध लगा है। लंदन कॉलेज यूनिवर्सिटी और शिंगुआ यूनिवर्सिटी के 141 देशों के अध्ययन में यह सामने आया है।
स्वीडन, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने शुरुआती दौर में सख्ती से लॉकडाउन लागू नहीं किया और जब तेज उछाल आया तो वे लॉकडाउन लागू करने पर मजबूर हुए। इससे अर्थव्यवस्था को ज्यादा नुकसान से बचाने में वे नाकाम रहे हैं। शोधकर्ताओं ने दो-ढाई माह के सख्त लॉकडाउन के बाद धीरे-धीरे रियायत देने की भारत-चीन की रणनीति पर भी मुहर लगाई है। एकदम से अर्थव्यवस्था खोलने पर दोबारा लॉकडाउन लगाने की नौबत आ सकती है।
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मुख्य शोधकर्ता डैबो गुआन ने कहा कि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए लॉकडाउन की अवधि उसकी तीव्रता से ज्यादा मायने रखती है। कारोबार पुराने स्टॉक या नए बाजार खोजकर थोड़े समय का झटका सहन कर सकते हैं। ऐसा संक्षिप्त लॉकडाउन उस देश या वैश्विक आपूर्ति शृंखला को कम नुकसान पहुंचाता है। शोध के सह लेखक स्टीवन डेविस ने कहा कि दुनिया में एक रणनीति के साथ दो माह के सख्त लॉकडाउन से कम घाटे वाला होगा। जबकि विभिन्न देशों में अलग-अलग समय पर लॉकडाउन से वैश्विक अर्थव्यवस्था 60 फीसदी तक नीचे आ सकती है।
- सख्त लॉकडाउन: 80 फीसद यात्रा और श्रम से आधारित उद्योगों पर पाबंदी, भारत, चीन, जर्मनी, स्पेन, दक्षिण अफ्रीका और इटली आदि
- मध्यम लॉकडाउन: 60 फीसद यात्रा और श्रम संसाधनों पर प्रतिबंध लगा, सिंगापुर, जापान,फिनलैंड, तुर्की, ईरान, फिलीपींस आदि
- आंशिक लॉकडाउन: 40 फीसद यात्रा और श्रम से जुड़े उद्योग बंद हुए, न्यूजीलैंड, स्वीडन, दक्षिण कोरिया, ब्राजील आदि
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