भारत में कोविड19 का कहर जारी है। पूरे देश में तालाबंदी होने के कारण बहुत से लोग जहां थे वहां ही फंस गये है। ऐसे में बहुत से लोग पैदल ही अपने घरों की ओर चल दिये। ऐसे में कई लोगों की जानें चली गयी है। अफसोस इस बात का है कि सरकार इन बेबस लोगों की मजबूरी और परेशानियां समझने की बजाये मोमबत्ती और दीये जलाने का आह्वान कर रहे है। दुख की बात तो यह है कि भारत की बेवकूफ जनता बिना किसी सोच विचार के इस बात को अनुसरण करते दिख रहे हैं। तीन अप्रैल को देश के पीएम ने वीडियो संदेश में जनता से कहा कि पांच अप्रैल रविवार को रात नौ बजे नौ मिनट तक दीपक, मोमबतती मोबाइल या टार्च जलाने की बात कही। वो भी घरों की लाइट्स बंद करने के बाद। इस बात का कोई वैज्ञानिक तर्क ने बताया गया है। लोग भी सिर्फ यह मानकर कि पीएम ने कहा है तो इसके पीछे कुछ न कुछ जन कल्याण की बात होगी। कुछ लोग कह रहे हैं कि देश में कोरोना से लड़ने के लिये असपतालों में आवश्यक सामग्री यहां तक की मास्क, पीपीई किट्स और वेंटीलेटर्स की भारी कमी है। उस ओर कोई प्रभावी कदम न उठाते हुए जनता से थाली, ताली और शंख घड़ियाल बजवाया जा रहा है।
देश को इस समय अच्छे डाक्टरों, स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं और बुनियादी आवश्यकाताओं की जरूरत है लेकिन सरकार इस ओर ध्यान दे कर जनता की धार्मिक भावनाओं से खेलने का प्रयास कर रही है। ताकि जनता को ध्यान कोरोना वायरस की भयावहता से भटक जाये।
देश में 21 दिन के लॉकडाउन के बीच तमिलनाडु के नामक्कल में रहने वाले लोगेश बालसुब्रह्मण्यम ने भी पैदल अपने गांव लौटना शुरू किया था। लेकिन अब वो कभी अपने घर नहीं पहुंच पाएगा, क्योंकि लगातार 500 किलोमीटर तक पैदल चलने के बाद उसने दम तोड़ दिया है।
एक टीवी चैनल की रिपोर्ट के मुताबिक, लोगेश 23 साल का था। नागपुर में काम करता था। अपने साथी वर्कर्स के साथ पैदल नामक्कल जा रहा था। 500 किलोमीटर की दूरी तय करके सिकंदराबाद पहुंचा था। एक शेल्टर में रुका था, लेकिन 1 अप्रैल की रात वो बेहोश होकर गिर गया और उसकी मौत हो गई। पत्रकार सौमित्र रॉय के अनुसार अंकिता प्रवासी मज़दूरों की मौत की खबरों को मुस्तैदी से ट्रैक कर रही हैं। उनके मुताबिक ये 42वीं मौत है, जो भूख, थकान से हुई है। एक अनुमान के मुताबिक अभी तक 68 लोगों की जान अचानक हुए लॉक डाउन से गई है।