बिहार में आज से तीन चार माह बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। सभी राजनीतिक दल चुनाव की तेयारी में जुट गये है। सत्ताधारी दल जनता दल यू और भारतीय जनता पार्टी संयुक्त रूप से प्रचार में जुट गये हैं। मोदी सरकार और बीजेपी ने बिहार विधानसभा चुनाव में कोविड 19 के आपातकाल में भी वर्चुअल रैली आयोजित कर यह साबित कर दिया कि आने वाले चुनाव में बाजी उनके हाथ ही लगने वाली है। बिहार में पिछले 15 साल से नितीश कुमार ही मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। बीजेपी और जेडीयू इस चुनाव में प्रचार के लिये डिजिटल प्रमोशन पर ज्यादा फोकस करने जा रहे है।
एक सर्वे के अनुसार यह जानकारी हुई कि देश में 2015-2020 के बीच स्मार्ट फोन उपभोक्ताओं में काफी बढ़ोतरी हुई है। एक रिपोर्ट के अनुसार 2015 में मोबाइल यूजर्स की संख्या 119.08 मिलियन थी। पांच सालों में मोबाइल यूजर्स की संख्या 2020 में 442-50 होने की संभावना है। डीएनए की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के पूर्ण साक्षरता वाले प्रदेशों में मोबाइल रखने वालों की संख्या 65 प्रतिशत तक आंकी गयी है। यह प्रतिशत संख्या तमिलनाडु] महाराष्ट्र, पंजाब, दिल्ली, हिमाचल और केरल में है। बिहार और में मोबाइल फोन का उपयोग 27 से 30 फीसद लोग कर रहे है। देखने वाली बात यह है कि बिहार का नंबर मोबाइल फोन यूजर्स की सूची में दस पर आता है।
साइबर मीडिया के रिपोर्ट के अनुसार भारत में 236 मिलियन लोग स्मार्टफोन का इस्तेमाल कर रहे है। रिपेार्ट में यह भी कहा गया है कि 60 से 70 प्रतिशत लोग फीचर फोन प्रयोग कर रहे है। यह उम्मीद की जा रही है कि इस साल के अंत तक स्मार्टफोन यूजर्स की संख्या लगभग 450 मिलियन हो सकती है।
वर्चुअल रैलियों का चलन
इसकी शुरुआत अमित शाह ने वर्चुअल रैली से कर दी है। शाह ने न केवल बिहार में डिजिटल रैली बल्कि देश के अनेक प्रदेशों में बीजेपी कार्यकर्ताओं और आम जनता का संबोधित किया। यह रैली उस वक्त की गयी जब देश में कोरोना वायरस का कहर टूट रहा था। मोदी सरकार देश की जनता से सोशल डिस्टेंसिंग पर जोर दे रही थी। ऐसे में गृहमंत्री शाह ने डिजिटल प्रमोशन करने का फैसला किया। केवल बिहार में ही 72 हजार वर्चुअल स्क्रीन के जरिये गांव शहर गली मोहल्ले यहां तक कि आदिवासी इलाकों में भी संपर्क करने की सफल कोशिश की है। इन रैलियों के अनेक फायदे हैं। पहला तो बड़े मंत्रियों और नेताओं को जनता के बीच जाना नहीं पड़ता है। महामारी से ग्रस्त होने की आंशका भी नहीं रहती है। साथ इस प्रकार के आयोजनों का जनता पर काफी अच्छा प्रभाव देखा जाता है। इसके पीछे एक कारण यह भी हैं कि एक ही बार में असीमित लोगों के बीच अपनी बात और योजनाओं उपलब्ध्यिों कोे पहुचाने में सफलता मिलती है। डिजिटल रैलियों के आयोजन में अन्य राजनीतिक रैलियों के आयोजन में होने वाला खर्च काफी कम होता है।
ईमेल डाइरेक्ट मार्केटिंग और इलैक्ट्रानिक डाइरेक्ट मार्केटिंग का सबसे बड़ा फायदा यह है कि कम से कम बजट में राजनीतिक दलों और कारपोरेट कंपनियों के प्रोडक्ट असीमित लोगों की जानकारी में आते है। यह बात और है कि उससे फायदा होगा या नहीं इस बात की गारंटी नहीं होती है लेकिन इस प्रकार के प्लेटफार्म का इस्तेमाल करने वालों के लिये आगे की मार्केटिंग स्ट्रैटिजी को तय करने के लिये डाटा मिल जाता है। राजनीतिक दलों के लिये भी यह काफी फायदेमंद हो गया है उन्हें गली गली मोहल्ले मोहल्ले में अपने कार्यकर्ताओं को दौड़ाना नहीं पड़ता है। स्मार्टफोन पर ही सारा प्रचार आसानी से हो जाता है। भारत में चारों ओर कोरोना का कहर दिख रहा है। ऐसे में राजनीतिक दलों को चुनाव भी लड़ने हैं। लेकिन ऐसे में सामाजिक दूरी का भी धयान रखना जरूरी है। अपनी जान को बचाना है और दूसरो की सुरक्षा का भी ख्याल रखना है। ऐसे में डिजिटल मार्केटिंग और सोशल मीडिया पॉलिटिकल पार्टीज के लिये संजीवनी बन कर उभर रहा है। आने वाले समय में डिजिटल प्लेटफार्म राजनीति में ब्रह्मास्त्र के रूप में देखा जा सकता है।
सेशल मीडिया का प्रचार सबसे पहले गुजरात में किया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनाव प्रचारों में शुरू किया था। इसका अच्छा रिजल्ट भी भाजपा के पक्ष में देखने केा मिला था। दिल्ली में लोकसभा चुनावों के प्रचार में भाजपा ने गुजरात के बाद डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया का इस्तेमाल आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के चुनावों में किया गया। यहां आप ने इस प्लेटफार्म का भरपूर फायदा उठाया और दिल्ली में तीसरी बार सरकार बनाने में सफलता प्राप्त की। दिल्ली के चुनावों में केजरीवाल और आप ने मोदी सरकार को कड़ी टक्कर देते हुए यह साबित कर दिया कि डिजिटल मार्केटिंग और सोशल मीडिया का उपयोग वो बेहतर तरीके से करना जानते है। भाजपा और आम आदमी पार्टी को सोशल मीडिया पर ऐक्टिव देख कांग्रेस ने भी सोशल मीडिया और डिजिटल मार्केटिंग पर जोर देना शुरू कर दिया है। इस प्रकार कारपोरेट कंपनियों के अलावा राजनीति में भी डिजिटल व सोशल मीडिया का प्रभाव देखा जा रहा हैं
पुराने प्रचार के तौर तरीकों पर भारी पड़ता डिजिटल मीडिया
आज से 30-40 साल पहले चुनाव के दौरान लोग घर घर जा कर लोगों से संपर्क करते थे। काफी लोग उनसे मिलने में भी ठीक समझते थे। लोगों से संपर्क करने के दौरान लोगों को अपनी योजनाओं और उपलब्धियों को भी समझाने में सफल नहीं रहते थे। साथ ही बैनर झण्डे और पोस्टर पर काफी खर्चा करना पड़ता था। साथ ही काफी समय लोगों के बीच रह कर गुजारना पड़ता था। लेकिन डिजिटल मीडिया के आने से लोगों का समय बचने लगाा है साथ इन्वेस्टमेंट भी काफी कम होता है। उनके प्रचार सामग्री के मेल और विज्ञापन डाइरेक्ट कन्ज्यूमर के हाथों तक पहुंच जाता है।
इलेक्ट्रॉनिक मार्केटिंग में किसी राजनीतिक दल के उम्मीदवार या कारपोरेट पर्सनैलिटी के प्रचार के लिये सबसे पहले उससे संबंधित डाटा को तलाश किया जाता है। फिर संबंधित व्यक्ति के पचार के लिये सामग्री तैयार कि जाती है। उस सामग्री को फेसबुक विज्ञापन, सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने के अलावा विभिन्न वेबसाइट्स व यूट्यूब चैनल्स पर किया जाता है।