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पिछले साल जब से आम चुनाव के रिजल्ट आये हैं तभी से बिहार की राजनीति में उथल पथ मच गयी है। आम चुनाव में जहां भाजपा को सदमा लगा है वहीं नितीश कुमार की हालत पहले से बेहतर हुई है केन्द्र में एनडीए की सरकार तो बनी लेकिन भाजपा का कद गिर गया है। वहीं बिहार में जेडीयू को 12 सांसद मिले हैं। इस समय केन्द्र में सरकार जेडीयू और टीडीपी की बैसाखियों के दम पर है। इस समय केन्द्र सरकार और पीएम मोदी को इन्हीं की सख्त जरूरत है। दोनों ही दल केन्द्र सरकार की कमजोर नस बन गये हैं। टीडीपी के 16 सांसद हैं। दोनों बाबुओं की नाराजगी से केन्द्र सरकार भरभरा कर गिरने की कगार पर है। चंद्रबाबू नायडू और नितीश कुमार दोनों ही मोदी शाह की कमजोर नस को समझ कर अपनी शर्तों पर समर्थन दे रहे हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि दोनों ही एक नंबर के घाघ और मौकापरस्त नेता हैं। ये बात उन्होंने कई बार साबित कर दी है। नितीश कुमार भी भाजपा की फितरत को समझते हैं। पिछले दस सालों में भाजपा ने जेडीयू को तोड़ने की कई बार कोशिश की है। अभी भाजपा इसी फिराक में है कि जेडीयू में दो फाड़ करवाया जाये। शिवसेना और एनसीपी कर तर्ज पर एकनाथ शिंदे और अजित पवार को तलाशा जाये।
बिहार में मौके की तलाश में हैं नितीश और भाजपा
बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं। नितीश कुमार इसी बात की चिंता में हैं कि उनका सीएम पद खतरे में पड़ सकता है। वहीं दूसरी ओर भाजपा पिछले एक दशक से अपनी सरकार बनाने को तरस रही है। बिहार में न तो भाजपा के पास कोई कद्दावर नेता है और न अपना कोई जनाधार। कहने को सुशील मोदी थे लेकिन उनका भी निधन हो गया है। इसके बाद भाजपा के नेताओं में केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह हैं लेकिन भाजपा उनके चेहरे पर जुआ नहीं खेल सकती है। भाजपा को मालूम है कि वो बिना नितीश की बैसाखी के बिहार में चुनाव नहीं जीत सकती है। वैसे भाजपा नितीश की काट के लिये चिराग पासवान को तैयार कर रही है। चिराग की पार्टी के 5 सांसद एनडीए सरकार को समर्थन दे रहे हैं। लेकिन वो ये भी जानते हैं कि चिराग पासवान नितीश कुमार को पटखनी नहीं दे सकते हैं। ये बात जग जाहिर है कि नितीश कुमार एक घाघ नेता हैं इसी वजह से पिछले बीस सालों से वो बिहार की राजनीति के धुरी बने हुए हैं। बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की सीटें ज्यादा थीं। इसके बावजूद सीएम पद नितीश कुमार को दिया गया। ये बात और है कि सरकार में रहने के बाद भी भाजपा विधायक सरकार की आलोचना करने से चूक नहीं रहे थे। दो साल बाद नितीश कुमार ने पल्टी मारते हुए महागठबंधन से हाथ मिला कर सत्ता पर पकड़ बनाये रखी।

भाजपा और नितीश कुमार के बीच रस्साकशी
लेकिन पल्टी मारने की फितरत से मजबूर नितीश ने आम चुनाव के ठीक पहले महागठबंधन का हाथ झटक कर एक बार फिर एनडीए का साथ पकड़ लिया। लेकिन सरकार बनने के कुछ माह बनने के बाद नितीश कुमार एनडीए से भी ऊब गये दिख रहे हैं। आज कल वो बिहार में प्रगति यात्रा को सफल बनाने में लगे हैं। इस बात से लग रहा है कि वो बिहार में अपनी पकड़ मजबूत बनाये रखना चाह रहे हैं। वहीं दूसरी ओर बिहार में अपने दम पर सरकार बनाने की बात अब बिहार के नेता करने लगे हैं। अटल बिहारी की जयंती पर उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने एक समारोह में कहा कि अटल जी को सच्ची श्रद्धांजलि बिहार में भाजपा की अपने दम पर सरकार बनने पर ही होगी। इस बात पर जेडीयू को लगा कि भाजपा की मंशा नितीश कुमार को चलता करने की है। बाद में शीर्ष नेतृत्व से झाड़ पड़ने पर विजय सिन्हा ने अपने बयान से यू टर्न मारते हुए कहा कि बिहार में चुनाव नितीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ा जायेगा।
बिहार में तू तू मैं मैं का दौर शुरू
जहां भाजपा बिहार में अपना विस्तार करने की फिराक में है इसी कड़ी में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को बिहार में राज्यपाल के रूप में भेज दिया गया है। इनका काम भाजपा का विस्तार और जेडीयू को कमजोर करना है। इस काम में राज्यपाल खान काफी माहिर हैं। खान विद्वान होने के साथ घाघ राजनेता भी हैं। खान को बिहार का राज्यपाल बनाने के पीछे एक कारण यह है कि मुसलमानों के मतों में सेंध लगाने की योजना है। सामान्यत: यह माना जाता है कि भाजपा पर मुसलमानों का विरोधी माना जाता है। इस धारणा पर भी शिकायत दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।

बिहार में इस बात की चर्चा है कि कहीं महाराष्ट्र की तरह बिहार में भी नितीश कुमार के साथ भी एकनाथ शिंदे जैसा बर्ताव किया जा सकता है। क्यों कि महाराष्ट्र में चुनाव के दौरान यह प्रचारित किया गया चुनाव शिंदे के नाम और नेतृत्व में लड़ा जायेगा। ऐसा हुआ भी लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद शिंदे को दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल कर मुख्यमंत्री से उपमुख्यमंत्री बना दिया। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बिहार में भी इस बात की पुनरावृत्ति नहीं होगी। नितीश कुमार ने सभी विकल्प खुले रखे हैं। एक तरफ वो एनडीए को समर्थन दे रहे हैं वहीं अपनी सत्ता कायम रखने के लिये तैयारी में तप्परता से जुटे हैं।