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महाराष्ट्र मेंं 20 नवंबर को चुनाव के लिये वोट डाले जायेंगे। 23 नवंबर को महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों के परिणाम आयेंगे। दिलचस्प बात यह है कि महाराष्ट्र में क्षेत्रीय या राष्ट्रीय पार्टी का कोई असर नहीं दिख रहा है। कोई भी ऐसा दल नहीं है जो अकेले दम पर प्रदेश में सरकार बना सके। इसके कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों का प्रदेश में कोई असर नहीं दिख रहा है।

यह राजनीतिक दल का नहीं उम्मीदवारों के निजी प्रभाव व लोकप्रियता का असर दिख रहा है। 288 सीटों वाली विधानसभा चुनाव में लगभग 50 से अधिक सीटों पर सभी प्रमुख दलों के बागियों ने उम्मीदवारी का पर्चा भर दिया है। यह बात कांग्रेस, शिवसेना शिंदे शिवसेना यूबीटी, एनसीपी शरद और एनसीपी अजित गुट बुरी तरह हिल गये है। सभी बड़े अपने अपने बागी उम्मीदवारों को पर्चा वापस लेने को मनाने में जुटे हैं। चार नवंबर को पर्चा वापस लेने का आखिरी दिन है। लेकिन हालात कुछ ऐसे हैं कि बागी नेता अपनी पार्टी के नेताओं की बात मानने से मना कर रहे हैं। इससे सभी प्रमुख दलों की सांसें उखड़ी हुई हैं। महा विकास अघाड़ी और महायुति दोनों ही दलों में इससे उहापोह की स्थिति बनी हुई है।
दिग्गज नेताओं की हालत खस्ता
भाजपा के देवेंंद्र फडणवीस, सीएम एकनाथ शिंदे, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नाना अटोले, उपमुख्य मंत्री अजित पवार और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे समेत बड़े राजनेता हैरान हैं कि ठीक चुनाव के पहले इतनी भारी तादाद में बागी उम्मीदवारों से कैसे निपटा जाये। कुछ बागियों को भाजपा के नेता यह कह कर फुसला बहला रहे हैं कि पर्चा वापस ले लें। उन्हें विधानपरिषद से विधानसभा का सदस्य बना दिया जायेगा। लेकिन बागी हैं कि मन बदलने को तैयार नहीं है। 30 साल पहले भी ऐसे ही महाराष्ट्र में ऐसे हालात उत्पन्न हुए थे। आज के समय में कोई भी राजनीतिक अपने दम पर चुनावी जंग जीतने में सक्षम नहीं दिख रहा है।

चुनाव आयोग का विपक्ष के साथ सौतेला बर्ताव
पिछले कुछ माह से देश में चुनावी माहौल चल रहा है। अक्टूबर में हरियाणा में विधानसभा चुनाव हुआ जिसमें भाजपा ने जैसे तैसे जीत हासिल की। कांग्रेस का कहना है कि हरियाणा चुनाव में तंत्र की जीत और लोकतंत्र की हार हुई। एक बार फिर चुनाव आयोग और वोटिंग मशीन ने बीजेपी को जितवा दिया। कांग्रेस की शिकायतों को एक बार फिर चुनाव आयोग ने ठंडे बस्ते में डाल कर साबित कर दिया कि वो सत्ता का गुलाम है।

महाराष्ट्र में भी सत्ता का प्रभाव देखा जा रहा है। महाराष्ट्र के साथ झारखंड का भी विधानसभा चुनाव हो रहा है। वहां भाजपा की मांग पर पुलिस प्रमुख को चुनाव आयोग ने हटवा दिया। लेकिन जब इंडिया गठबंधन ने चुनाव आयोग से महाराष्ट्र के पुलिस प्रमुख को हटाने की मांग की तो उसे हटाने से चुनाव आयोग ने अनसुना कर दिया। इंडिया गठबंधन के नेताओं का आरोप है कि महाराष्ट्र पुलिस के वाहनों में चुनावी चंदे का पैसा प्रत्याशियों तक पहुंचाया जा रहा है। एक बार फिर साबित हो रहा है कि चुनाव आयोग सत्ताधारी दल के साथ मिल कर चुनाव लड़ रहा है। यूपी में भी उपचुनाव हो रहे हैं। वहां सीएम योगी, मोदी और शाह विपक्ष को राक्षस,रावण और दुर्योधन तक बोल रहे हैं असम के सीएम हिमंता बिस्व सरमा तो अपने विवादित बयानों के लिये जग जाहिर है। सीधे सीधे उनके निशाने पर मुस्लिम समुदाय ही रहता है। लेकिन चुनाव आयोग गांधी जी के तीन बंदरों की तरह चुप्पी साधे है।