मेडिकल और इमिग्रेशन स्टाफ को दी गई वैक्सीन
चीन के एनएचसी के निदेशक झेंग झोंगवेई ने कहा कि वैक्सीन को शुरुआती चरण में अभी इमिग्रेशन अधिकारियों और मेडिकल स्टाफ को ही दिया गया है। उन्होंने इसके लिए तर्क दिया कि चीन में अब कोरोना वायरस के मामले विदेशों से आ रहे हैं। इसलिए इमिग्रेशन अधिकारियों को वैक्सीन देना जरूरी था, जबकि स्वास्थ्य अधिकारी कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे हैं।
चीनी वैक्सीन कितनी सुरक्षित इसके प्रमाण नहीं

रूसी वैक्सीन की तुलना में चीन ने तीन हफ्ते पहले ही अपने लोगों को वैक्सीन की डोज देना शुरू कर दिया था। लेकिन, दोनों वैक्सीन में समानता यह है कि क्लिनिकल ट्रायल के दौरान दोनों वैक्सीन ने मानकों को साबित नहीं किया है। जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस वैक्सीन को बनाने और इंसानी जिंदगियों को सुरक्षित करने के लिए संघर्ष कर रही है तब चीन की इस चालबाजी ने फिर उसके असली चेहरे को बेनकाब कर दिया है।
वैक्सीन ट्रायल को लेकर भिड़े चीन और पापुआ न्यू गिनी

कुछ दिन पहले ही पापुआ न्यू गिनी ने ऐलान किया था कि वह चीनी खदान कर्मियों को वापस करने की तैयारी कर रहा है। इन लोगों को चीनी सरकार ने कोरोना वायरस वैक्सीन को ट्रायल के लिए लगाया था। पापुआ न्यू गिनी ने कहा कि उन्हें वैक्सीन लगे चीन के लोगों से खतरा पैदा हो सकता है। इस कारण दोनों देशों में राजनयिक विवाद भी खड़ा हो गया है।
रूस ने 11 अगस्त को लॉन्च की थी स्पूतनिक वैक्सीन

बता दें कि इसी महीने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ऐलान किया था कि उनके देश ने दुनिया की पहली कोरोना वायरस वैक्सीन को बना लिया है। उन्होंने यह भी कहा था कि रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस कोरोना वायरस वैक्सीन को अपनी मंजूरी दे दी है। इस वैक्सीन का नाम रूस की पहली सैटेलाइट स्पूतनिक से मिला है। जिसे 1957 में रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ने लॉन्च किया था। उस समय भी रूस और अमेरिका के बीच स्पेस रेस चरम पर थी। कोरोना वायरस वैक्सीन के विकास को लेकर अमेरिका और रूस के बीच प्रतिद्वंदिता चल रही थी।