शांतिभंग कराने की मंशा से पत्रकार के खिलाफ मामला दर्ज
पिछले दस सालों में यह देखा जा रहा है कि पुलिस में गढ़े मुर्द उखाड़ कर मामले दर्ज कराने का फैशन सा चल गया है। दस बारह साल सोशल मीडिया पर डाले गये पोस्ट को आधार मान कर संप्रदाय विशेष के लोगों पर निशाना साधा जा रहा है। इसका एक कारण यह भी है कि सत्ताधारी दल के किसी भी नेता द्वारा पुलिस में शिकायत पर पुलिस मामला दर्ज कर तुरंत कार्रवाई करती है आरोपी को तुरंत गिरफ्तार कर उसे जेल के पीछे डालने से नहीं चूकती है। पत्रकार राणा अय्यूब के खिलाफ एडवोकेट अमिता सचदेवा ने दिल्ली के साकेत न्यायालय में धार्मिक आस्था पर ठेस पहुंचाने का मामला उठाया है। अदालत के आदेश पर पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है। यह मामला 2013, 2014, 2015 के ट्वीटर पर किये गये पोस्ट का आधार बना कर दर्ज कराया गया है। अक्सर देखा गया है कि कुछ पुराने पोस्ट को आधार बना कर बीजेपी कार्यकर्ता व नेता पुलिस शिकायत दर्ज कर आरोपियों का उत्पीड़न करने से चूक नहीं रही है। इसी तरह आल्ट न्यूज के संस्थापक मोहम्मद जुबेर पर भी कुछ ऐसे ही मामले पर उनकी गिरफ्तारी की गयी थी। बाद में सुप्रीमकोर्ट से राहत मिल पायी थी। दिल्ली पुलिस ने मंगलवार को साकेत स्थित सत्र न्यायालय को सूचित किया कि पत्रकार राणा अय्यूब के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की गई है। यह मामला एक वकील द्वारा लगाए गए आरोपों पर आधारित है, जिसमें कहा गया है कि अय्यूब ने सोशल मीडिया पर “भारत विरोधी भावना भड़काने” और “हिंदू देवताओं का अपमान करने” का कार्य किया है।
अदालत के आदेश पर दर्ज हुई एफआईआर
शनिवार को अदालत ने दिल्ली पुलिस को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153ए (धर्म के आधार पर वैमनस्य फैलाना), 295ए (जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य, जिससे किसी वर्ग की धार्मिक भावनाएं आहत हों) और 505 (सार्वजनिक उपद्रव फैलाने वाले बयान) के तहत एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया था।
शिकायतकर्ता वकील अमिता सचदेवा की याचिका
वकील अमिता सचदेवा, जिन्होंने दिल्ली आर्ट गैलरी में प्रदर्शित दो विवादास्पद एम एफ हुसैन की कलाकृतियों से जुड़े एक अन्य मामले में भी शिकायत दर्ज कराई थी, उन्होंने ही अय्यूब के खिलाफ अदालत का रुख किया। सचदेवा ने पिछले साल नवंबर में राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल पर शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें अय्यूब के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की मांग की गई थी। हालांकि, दिल्ली पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, जिसके बाद उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 156(3) के तहत अदालत से पुलिस जांच का अनुरोध किया।
अदालत ने कहा- एफआईआर दर्ज करना आवश्यक
साकेत कोर्ट के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट हिमांशु रमन सिंह ने 25 जनवरी को आदेश में कहा, “मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए, शिकायत संज्ञेय अपराधों की पुष्टि करती है, जिसके लिए एक एफआईआर दर्ज किया जाना आवश्यक है। वर्तमान याचिका को मंजूरी दी जाती है। साइबर पुलिस स्टेशन (दक्षिण) के एसएचओ को शिकायत की सामग्री को एफआईआर में बदलने और निष्पक्ष जांच करने का निर्देश दिया जाता है। उन्होंने आगे कहा, “यह न्यायिक शक्ति के तहत जांच का आदेश देना आवश्यक है। शिकायतकर्ता द्वारा प्रस्तुत किए गए तथ्य ऐसे हैं जो राज्य तंत्र के हस्तक्षेप की आवश्यकता को दर्शाते हैं।”
सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर आरोप
अदालत में वकील मकरंद अडकर, यादवेंद्र सक्सेना और विक्रम कुमार द्वारा प्रतिनिधित्व कर रहीं सचदेवा ने अय्यूब की 2013, 2014, 2015 और 2022 की X (पहले ट्विटर) पोस्ट अदालत में प्रस्तुत कीं।
उन्होंने आरोप लगाया कि अय्यूब ने राम का अपमान किया और रावण का महिमामंडन किया। सीता और द्रौपदी को अनुचित रूप में प्रस्तुत किया। स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर को “आतंकवाद समर्थक” बताया।
राणा अय्यूब की प्रतिक्रिया
जब इस मामले में राणा अय्यूब से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा, “मुझे मीडिया रिपोर्ट्स से पता चला है कि कुछ 10-12 साल पुराने ट्वीट्स पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया गया है। अभी तक पुलिस ने मुझसे कोई संपर्क नहीं किया है, लेकिन जब वे करेंगे, तो मैं सभी जानकारी उपलब्ध कराऊंगी। मुझे पूरा विश्वास है कि मेरे ट्वीट किसी भी कानूनी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करते।” उन्होंने आगे कहा, “यह शिकायत… मुझे डराने और चुप कराने का एक और प्रयास है। मुझे भरोसा है कि अदालत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बरकरार रखेगी।”
मामले पर नजर
इस एफआईआर के बाद अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम धार्मिक भावनाओं के टकराव की बहस फिर से तेज हो गई है। अब देखना होगा कि पुलिस इस मामले में आगे क्या कदम उठाती है और अदालत इस पर क्या रुख अपनाती है।

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