ये वित्त मंत्री की ग़लती नहीं है। ये अकेले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ग़लती भी नहीं है।
ये केंद्र सरकार की सामूहिक ग़लती है, जिसने भारत में डेटा इकट्ठा करने के पूरे सिस्टम को जाम कर दिया है।
आम आदमी को डेटा से कोई मतलब नहीं। लेकिन नीति निर्माताओं को मतलब है, जो इसी डेटा के आधार पर सरकार को सलाह देते हैं। ऐसा भी नहीं कि डेटा नहीं है। लेकिन सरकार में ऊंचे पदों पर बैठे निकम्मे बाबू और भांड मीडिया का इनसे कोई वास्ता नहीं।
नीति आयोग से लेकर मोदीजी के मंत्री-संतरी कुछ भी बोलकर निकल लेते हैं। बाद में हम जैसों को सिर धुनना पड़ता है। वित्त मंत्री ने आज ईपीएफओ से जुड़े कर्मचारियों के 3 महीने का बिल भरने की बात कही।
असल में यह बासी कढ़ी में उबाल जैसा मामला है। ये राहत प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण पैकेज का हिस्सा है, जिसका ऐलान पहले ही हो चुका है।
तो वित्त मंत्री ने कौन सा तीर मार लिया? नियोक्ता और कर्मचारी 12-12% हर महीने EPFO में जमा करते हैं। बस, 3 महीने के लिए इससे निजात मिल गई।
लेकिन वित्त मंत्री और भांड मीडिया यह जान ले कि यह राहत औपचारिक क्षेत्र के केवल 16% ईपीएफ खातेदारों के लिए है। भारत में 47 करोड़ से ज्यादा कामगार हैं। ये राहत केवल 1.6% को ही फायदा पहुंचाने वाली है। वित्त मंत्री महोदया आपकी राहतों का गुब्बारा यूं ही फूटता रहेगा। अगले 15 दिन। हम फोड़ेंगे।
सौमित्र रॉय