Hydroxychloroquine के क्लीनिकल ट्रायल पर WHO की रोक के पीछे साजिश? ICMR ने दिया जवाब


Edited By Naveen Kumar Pandey | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated:

ICMR डीजी डॉ. बलराम भार्गव।
हाइलाइट्स

  • ICMR के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन पर स्थिति स्पष्ट की
  • उन्होंने कहा कि कई अध्ययनों के बाद पाया गया कि HCQ कोविड-19 की रोकथाम में मददगार हो सकता है
  • उनसे पूछा गया था कि WHO द्वारा HCQ के ट्रायल पर रोक लगाने के पीछे कोई साजिश तो नहीं

नई दिल्ली

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोविड-19 की रोकाथाम के लिए भारत में तैयार होने वाली मलेरिया रोधी दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (HCQ) के क्लीनिकल ट्रायल पर रोक लगा दी। क्या इसके पीछे कोई साजिश है? यह सवाल इस उठ रहा है क्योंकि अमेरिका डब्ल्यूएचओ पर लगातार चीनपरस्त होने का आरोप लगाता रहा है। अब भारतीय आर्युविज्ञान अनुसंधान संस्थान (ICMR) का कहना है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को लेकर पिछले डेढ़ महीनों में कई स्तर पर जांच हुई जिनमें उसके कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने की क्षमता की पुष्टि हुई है। साथ ही, अध्ययन में यह भी स्पष्ट हुआ है कि इस दवा के इस्तेमाल का कोई बड़ा साइड इफेक्ट नहीं है।

साजिश के सवाल पर ICMR चीफ ने नहीं दिया कोई सीधा जवाब

ICMR के महानिदेशक (डीजी) डॉ. बलराम भार्गव ने कोरोना पर प्रेस ब्रीफिंग के दौरान पूछे गए सवाल का सीधा-सीधा जवाब तो नहीं दिया कि डब्ल्यूएचओ के पीछे कोई साजिश है या नहीं, लेकिन उनके जवाबों से इतना स्पष्ट हो गया है कि क-से-कम भारत में चिकित्सा क्षेत्र के विशेषज्ञ वैश्विक संगठन के फैसले से सहमत नहीं हैं। आईसीएमआर के चीफ ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ‘अभी बायॉलजी की नजर से इसमें संक्रमण रोधी (एंटी वायरल) दवाई के रूप में काम करने की संभावना दिख रही है। जब हमने प्रयोगशालाओं में टेस्ट ट्यूब के जरिए अध्ययन किया तो रिजल्ट में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के एंटी वायरल क्वॉलिटी का पता चला। ऐसी स्टडीज पहले भी हुईं और रिजल्ट नेचर मैगजीन समेत अन्य जगहों पर भी प्रकाशित हुईं।’

पढ़ें: WHO ने कोविड-19 के इलाज के लिए HCQ का क्लीनिकल ट्रायल रोका

टेस्ट ट्यूब स्टडी में दिखी संभावना

डॉ. भार्गव आगे कहा, ‘हमने उसी तरह की स्टडी फिर से टेस्ट ट्यूब में की और पाया कि इसमें ऐंटी-वायरल कपैसिटी है। जब अमेरिकी सरकार ने भी इसे आपातकालीन दवा के रूप में इसका इस्तेमाल बढ़ा दिया तो हमें और भी लगा कि इसका इस्तेमाल संक्रमण से बचाव में किया जा सकता है।’ उन्होंने कहा कि जैविक संभाव्यता (बायलॉजिकल प्लॉजिबिलिटी), टेस्ट ट्यूब अध्ययन और दवा की उपलब्धता और सुरक्षा के आधार पर हमने डेढ़ महीने पहले हाइड्रोक्लोरोक्वीन का मेडिकल सुपरविजन में इस्तेमाल की अनुशंसा की दी थी। तब हमने यह भी कहा था कि कुछ स्टडी होनी चाहिए कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की कोविड-19 को रोकने में क्या भूमिका हो सकती है।

उन्होंने कहा, ‘पिछले छह हफ्तों में एम्स, ICMR समेत दिल्ली के तीन सरकारी अस्पतालों में ऑब्जर्वेशनल स्टडीज, इनमें कुछ केस कंट्रोल स्टडीज की गईं। हमने इन स्टडीज के आंकड़े मिले जो हमें बताते हैं कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन कोविड-19 की रोकथाम में काम आ सकते हैं। हमें इसका कुछ खास साइड इफेक्ट भी सामने नहीं आया। कुछ लोगों ने कभी-कभार उल्टी आने जैसी शिकायतें जरूर कीं।’

अध्ययन के आधार पर जारी हुई अडवाइजरी

ICMR डीजी ने कहा कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल की अनुशंसा यूं ही नहीं की गई बल्कि अब तक हुए अध्ययन के नतीजे इसके आधार बन हैं। उन्होंने बताया, ‘हमने इन अध्ययनों के आधार पर तय किया है कि संक्रमण से बचाव के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का इस्तेमाल जारी रखना चाहिए क्योंकि इसका कोई नुकसान नहीं है, फायदे की संभावना रहती है। दूसरी बात यह है कि दवाई को खाने के बाद लेना है क्योंकि उल्टी खाली पेट दवाई लेने से हो रही है। तीसरी बात यह है कि ट्रीटमेंट के दौरान एक ईसीजी करना जरूरी है।’

उन्होंने कहा स्टडीज के रिजल्ट से इतना भरोसा पैदा हुआ कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल का दायरा बढ़ा दिया गया है। उन्होंने कहा, ‘हमने अडवाइजरी में कहा कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को न केवल स्वास्थ्यकर्मी बल्कि अग्रिम मोर्चे पर तैनात (पुलिसकर्मी आदि) भी ले सकते हैं। वो पहले दिन 2 टैबलेट और फिर अगले आठ सप्ताह तक हर सातवें दिन 1-1 टैबलेट ले सकते हैं। हमने यह भी कहा है कि पीपीई पहनते रहना है। यह नहीं कि दवाई ले रहे हैं तो पीपीई नहीं पहनेंगे।’

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कोविड-19 अध्ययन की दृष्टि से एक उभरता क्षेत्र

ICMR चीफ ने कहा कि कोविड-19 मेडिकल स्टडी का उभरता क्षेत्र है। हमें अभी नहीं पता कि कौन सी दवाई काम कर रही है, कौन सी नहीं। दूसरी बीमारियों में इस्तेमाल आने वाली कई दवाइयों को कोविड-19 के इलाज में आजमाया जा रहा है, वो चाहे कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के मकसद से हो या फिर कोविड-19 महामारी के इलाज में।

उन्होंने कहा, ‘हम सभी को पता है कि क्लोरोक्वीन बहुत पुरानी मलेरिया रोधी दवा है और इसका इस्तेमाल करीब 100 वर्षों से हो रहा है। हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन ज्यादा सुरक्षित है। हमारी पीढ़ी के लोगों को पता है कि अंतरदेशीय पत्र में गोले बने रहते थे और बताया जाता था कि मलेरिया की गोली पहले दिन चार, दूसरे दिन दो, तीसरे दिन लेनी है। मतलब, इस दवाई का मलेरिया के लिहाज से बहुत व्यापक उपयोग होता रहा है और आज भी हो रहा है।’

द लैंसेट की रिपोर्ट और WHO का फैसला

दरअसल, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का कोविड-19 के मरीजों पर क्लीनिकल ट्रायल अस्थायी तौर पर रोकने का फैसला किया है। उससे पहले स्वास्थ्य के क्षेत्र में दुनियाभर के रिसर्च प्रकाशित करने वाली मशहूर पत्रिका द लैंसेट ने एक शोध रिपोर्ट प्रकाशति कर दावा किया था कि कोविड-19 मरीजों के इलाज में मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल आने वाली दवा क्लोरोक्वीन और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (HCQ) से फायदा मिलने का कोई सबूत नहीं मिला है।



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