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राजस्थान, जोधपुर के दिलीप प्रताप सिंह शेखावत दो बार यूपीएससी में असफल हुए. दूसरी बार तो मेन्स तक क्वालिफाई हो गया पर चयन नहीं हुआ, ऐसे में भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और लगे रहे.

Success Story Of IAS Dilip Singh Shekhawat: राजस्थान के दिलीप का न तो सिविल सर्विसेस के क्षेत्र से दूर-दूर तक कोई नाता था न उन्होंने इस फील्ड में कैरियर बनाने का सपना हमेशा से देखा था. लेकिन थोड़ी समझ आने पर देश और समाज के लिए कुछ करने के जज्बे ने उन्हें यहां तक पहुंचा दिया. दिलीप खासकर उन कैंडिडेट्स के लिये बड़ा उदाहरण हैं जिन्हें लगता है कि यूपीएससी के कैंडिडेट्स को हमेशा से बहुत ब्राइट होना चाहिए या जिनके घर में कोई पहले से इस सेवा में हो तो उसे अच्छा मार्गदर्शन मिल जाता है क्योंकि दिलीप के यहां न बहुत पढ़ाई का वातावरण था, न उनके यहां से अभी तक किसी ने सिविल सर्विसेस में जाने की सोची भी थी. न ही वे पढ़ाई में एक्स्ट्रा ऑर्डिनेरी ब्रिलियेंट थे. केवल एक सपना था और उस सपने को किसी भी हाल में पाने की जिद. जिद या लगन इतनी गहरी की कभी प्लान – बी रखा ही नहीं. एकमात्र लक्ष्य था यूपीएससी और अंततः दिलीप ने अपने नेवर डाइंग जज्बे से वो कर दिखाया जिसका लाखों स्टूडेंट्स सपना भर देखते हैं.
सोशल सर्विस की इच्छा के कारण चुना यह कैरियर –
दिलीप ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी राउरकेला से केमिकल इंजीनियरिंग में पढ़ायी की है. कॉलेज की पढ़ायी के दौरान ही वे एक क्लब से जुड़े थे जिसके तहत कई तरह की सोशल सर्विसेस में इंवॉल्व रहते थे. यहीं उन्हें अहसास हुआ की उन्हें समाज के लिये कुछ करना है. इस काम के लिये उन्हें यूपीएससी से अच्छा जरिया नज़र नहीं आया जिसका अच्छा प्रभाव समाज के बड़े तबके पर पड़ता है. बस फिर क्या था, अपने घरवालों से इस बारे में चर्चा की और जुट गये दिन-रात बस परीक्षा की तैयारी में. परिवार में अभी तक किसी ने ऐसा सपना नहीं देखा था पर दिलीप के सपने को सच करने में परिवार ने पूरा सहयोग दिया.
बहुत परीक्षा हुयी दिलीप की –
दिलीप यूपीएससी परीक्षा के कठिनाई स्तर को जानते थे और पूरी प्लानिंग के साथ बस दिन-रात पढ़ाई में लगे रहते थे. एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि यूपीएससी देश की ही नहीं दुनिया की सबसे कठिन परिक्षाओं में आती है और हर साल लाखों स्टूडेंट्स यह परीक्षा देते हैं. पर उन्होंने कभी इस परीक्षा को इस तरह देखा ही नहीं. उनके मन में बस सिविल सर्विस पास करके समाज के लिये कुछ करने का सपना पल रहा था और वे दिन-रात उसी को पूरा करने में लगे थे बिना यह जाने की इस परीक्षा का क्या गणित है. शायद इसीलिये दिलीप पहली बार से ही सफलता के बहुत करीब पहुंचने लगे थे. पहली बार में एकदम बारीक अंतर से दिलीप का प्री में नहीं हुआ और दूसरी बार तो उनकी और कड़ी परीक्षा हुयी जहां उन्होंने प्री और मेन्स दोनों पास कर लिये पर साक्षात्कार में रह गये. ये वो मौका था जब वो और उनका परिवार दोनों टूट गये और उन्हें यह सदमा बर्दाश्त ही नहीं हुआ की कोई सफलता के इतने पास आकर कैसे चूक सकता है.
दिलीप पीछे हटने वालों में नहीं थे –
हालांकि इस सदमे से दिलीप अंदर तक हिल गये थे पर हारे नहीं थे. जैसा कि वे बता चुके हैं कि उन्होंने कभी प्लान – बी बनाया ही नहीं क्योंकि उन्हें बस और बस यूपीएससी ही पास करना था. जहां इस परीक्षा की अनिश्चितता को देखते हुये अधिकतर कैंडिडेट्स दूसरे कैरियर विकल्प भी तैयार रखते हैं, वहीं दिलीप इस मामले में अपवाद थे. वे जानते थे इसमें बहुत रिस्क है फिर भी उन्होंने इस रिस्क को चुना और सिर्फ यूपीएससी परीक्षा की तैयारी की. इस दौरान स्ट्रेस और एनजाइटी से बचने के लिये वे मेडिटेशन की मदद लेते थे जिससे उनका दिमाग शांत रहता था और स्ट्रेस दूर. वे दूसरे कैंडिडेट्स को भी मेडिटेट करने की सलाह देते हैं.
क्या है दिलीप का सक्सेस मंत्रा –
दिलीप साक्षात्कार में बताते हैं कि दिन में 12 या 15 घंटे पढ़ने के फंडे पर वे यकीन नहीं करते. हर कैंडिडेट की अपनी क्षमता, अपनी समझ होती है, उसे उसी के अनुसार निर्णय लेने चाहिये. कोचिंग लेनी है या नहीं, साथ में नौकरी करनी है या नहीं, नौकरी के बिना तैयारी करनी है जो भी करना है यह हर इंडिविजुअल का अपना फैसला होना चाहिये. वे मानते हैं कि यूपीएससी में केवल पढ़ने से काम नहीं चलता. यहां प्री से लेकर साक्षात्कार तक पहुंचने के लिये पढ़ायी के साथ ही पर्सनेलिटी का भी टेस्ट देना होता है. पर्सनेलिटी निखारने के लिये कैंडिडेट को दूसरी एक्टिविटीज़ में भी ध्यान देना चाहिये. अपनी हॉबी परस्यू करें, पढ़ाई के अलावा भी समय निकालें और सबसे बड़ी बात आप सफल होंगे इस बात का कांफिडेंस हमेशा बनाये रखें. दिलीप का विश्वास ही था कि चाहे जो हो जाये, जितनी मेहनत और समय लगे पर वे यह परीक्षा पास करके ही रहेंगे. और ऐसा हुआ भी दिलीप ने साल 2018 में 72वीं रैंक के साथ आईएएस बनने का अपना सपना पूरा कर लिया. जोधपुर का ये छोरा आखिरकार कलेक्टर बन ही गया.
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