आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बैंकों को एनपीए में बदलने की आशंका वाले लोन को रिस्ट्रक्चर करने की छूट दे दी है।
अब क्या होगा ?
इंडिया रेटिंग्स के अनुसार, बैंक कुल 8.4 लाख करोड़ के उस कर्ज को पुर्नगठित करने जा रहे हैं, जिनके एनपीए में बदलने की प्रबल आशंका है।
कर्ज का पुर्नगठन क्या है ?
आरबीआई की निर्धारित प्रक्रिया में बैंक किसी कर्जदार के लोन की मियाद, ब्याज दर या ईएमआई को बदलकर उसे चुकाना आसान कर देते हैं और अपनी बही में से कर्जदार के लोन को एनपीए से हटा देते हैं। इस उम्मीद के साथ कि कर्जदार बकाया लोन चुका देगा।
इस 8.4 लाख करोड़ में से 60 फीसदी लोन एनपीए में बदलने वाला है।
भारत में कर्ज के पुर्नगठन का क्या इतिहास रहा है ?
देश में 2008-2011, 2013-2019 के दौरान कर्ज का पुनर्गठन किया गया था। लेकिन ये सारे पुर्नगठित लोन आज एनपीए में बदल चुके हैं। अब ऐसे समय में जब देश भारी आर्थिक मंदी में डूबा हुआ है, 8.4 लाख करोड़ रुपए के लोन के डूबने का खतरा है।
तो फिर मोदी सरकार के इस कदम का क्या मकसद है ?
मोदी सरकार बैंकों के एनपीए के मुद्दे को साल-छह महीने के टालना चाहती है। यानी बैंक अपने खाते में कर्जदारों को कंगाल घोषित करने की जगह पुर्नगठित लोन के रूप में दिखाएंगे। शक्तिकांत दास ने भरोसा दिलाया है कि पहले हुई गलतियों को नहीं दोहराया जाएगा, लेकिन इसमें खुद आरबीआई को भी भरोसा नहीं है।
फिर क्या होगा ?
आरबीआई की फायनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट में एनपीए के मार्च 2021 तक 14.7 फीसदी होने की आशंका जताई गई है। मार्च 2020 में एनपीए कुल लोन का 8.5 प्रतिशत है। इससे निपटने के लिए बैंकों ने 13 लाख करोड़ का रिजर्व कैपिटल जुटाया है। स्टेट बैंक, एचडीएफसी और आईीआईसीआई जैसे बड़े बैंक भी पूंजी जुटा रहे हैं। इसके बाद भी इस बात की आशंका प्रबल है कि ये सारी कोशिशें अगले वित्त वर्ष की शुरुआत में नाकाम दिखेंगी।
बैंकों को कितना खतरा है ?
इसका पता अगले मार्च में चलेगा। तब तक सांसें थामकर रखें।