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ग्यारह साल में डॉलर की कीमत लगभग 28 रुपये का इजाफा
वो दिन दूर नहीं जब देश की आर्थिक व्यवस्था बद् से बदहाल हो जायेगी। महंगाई इतनी हो जायेगी कि आम आदमी को दाल रोटी के लाले पड़ जायेंगे। इतना नहीं भारत की हालत श्रीलंका और बाग्लादेश से भी बद्तर होने वाले हैं। पिछले तीन चार माह में उॉलर के मुकाबले रुपया गिरता ही जा रहा है। 2014 में जब देश में सत्ता परिवर्तन हुआ था तब डॉलर की कीमत 60 के करीब थी। आज के समय में 1 डॉलर की कीमत लगभग 88 रुपये पहुंच गयी। इसका मतलब यह है कि 10 ग्यारह साल में मोदी सरकार के चलते डॉलर की कीमत लगभग 28 रुपये का इजाफा हुआ है। दूसरी ओर भारत सरकार ने जो भी कर्ज लिया है उसे डॉलर के रूप में ही लौटाना होता है।
अर्थव्यवस्था चौपट लेकिन सरकार अमृतकाल मना रही
हालात यह है कि देश में उद्योग धंधे चौपट हो रहे हैं। युवाओं के लिये रोजगार नहीं हैं। जो भी उद्योग धंधे हैं वो भी बेहाल हैं सरकार ने स्वरोजगार के सभी रास्ते पर इतना अधिक सख्ती कर दी है कि वो बढ़ने के बजाये बंदी के कगार पर पहुंच रहे हैं। आम आदमी की आर्थिक स्थिति इतनी बदहाल है कि वो कुछ भी खरीदने की दशा में नहीं है। हालात इतने बुरे हैं कि किसी तरह दो जून की रोटी का जुगाड़ हो पाता है। पिछले दस सालों में भारत सरकार ने आयात को बेतहाशा बढ़ाया है जबकि निर्यात उस तेजी से नहीं बढ़ा है। 2014 में आयात 27.15 लाख करोड़ का था लेकिन आज के समय में आयात बढ़कर 71 लाख करोड़ तक पहुंच गया है। इस वजह से देश में उद्योगधंधे और व्यापार डूबता जा रहा है। इस समय से ज्यादा आयात चीन किया जा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि पिछले दस सालों तक मोदी सरकार चीन के उत्पादों का बहिष्कार करने का ढोंग करती रही है।
तीसरी बड़ी इकोनॉमी क दुष्प्रचार
एक तरफ देश का प्रमुख मीडिया यह प्रचार प्रसार कर रहा है कि भारत की इकोनॉमी दुनिया की तीसरे नंबर की बनने जा रही है। देश विश्व गुरु बनने की दिशा में अग्रसर है। देश विकसित भारत होने जा रहा है। लेकिन असलियत तो यह है कि देश पर विदेशी कर्जा 2.5 लाख करोड़ हो गया है। अफसोस की बात तो यह है कि इस लोन के ब्याज देने के लिये भी भारत सरकार को कर्ज लेना पड़ रहा है। पिछले एक साल में भारत की मुद्रा रुपये के मुकाबले डॉलर काफी मजबूत हो गया है। वर्तमान में डॉलर की कीमत लगभग रुपये 88 हो गयी है। डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर होता जा रहा है। अफसोस की बात तो यह है कि देश की मोदी सरकार इस हालात से सामना करने के मूड में ही नहीं दिख रही है। सरकार अमृतकाल के नशे में चूर है उनके हिसाब से देश में राम राज है महाकुंभ में पूरा देश और सरकार मशगूल है। न तो देश के बारे में जनता को कोई फिक्र है और ही बच्चों के भविष्य की चिंता है उसे तो राम नाम और धर्म की घुट्टी पिला दी गयी है। इनकी साजिश को देश का प्रमुख मीडिया फैलाने में पूरी तरह से जुट गया है।
पीएम की नाकामी से करंसी गिरती है: नरेंद्र मोदी
बात उस समय की है जब गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी होते थे। तब वो पीएम मनमोहन सिंह के बारे में कुछ भी बोलने से नही चूकते थे। 2014 के चुनाव से पहले उन्होंने देश के पीएम डा मनेमाहन सिंह के बारे में कहा था कि जिस देश की करंसी गिरती है तो वहां के पीएम की इज्जत गिरती है। वहां के पीएम की नाकामी की वजह से विदेशी करंसी बढ़ती है।

आज वहीं 11 साल से नरेंद्र मोदी देश के पीएम है और भारतीय करंसी लगातार कमजोर और गिरती जा रही है। इस मामले में न तो सरकार कुछ सजग दिख रही है और न ही बड़बोले पीएम मोदी ही कुछ प्रयास करते नजर आ रहे है। बस जनता को बरगलाने और बेवकूफ बनाने के लिये रोज नित नये जुमले फेंके जा रहे हैं। वहीं जब महंगायी की बात होती है तो सरकार और सत्तादल इस पर कोई जवाब देने को तैयार नहीं है। जब केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से पूछा जाता है तो कहती हैं कि वो प्याज नहीं खाती हैं। इसलिये वो इसके बारे में कुछ नहीं कह सकती हैं। वही भारतीय करंसी के कमजोर होने पर वो कहती हैं कि रुपया तो वही का वही है लेकिन डॉलर मजबूत हो रहा है।